नयी दिल्ली । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद के केन्द्रीय कक्ष में मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के तैलचित्र का अनावरण किया और उन्हें भारतीय राजनीति के महानायकों में से एक बताते हुए कहा कि उन्होंने सत्ता हासिल करने एवं बचाने के लिए लाेकतंत्र के सिद्धांतों एवं आदर्शों से समझाैता नहीं किया।
संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित एक संक्षिप्त समारोह को उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडु, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और संसदीय कार्य मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी संबोधित किया।
राष्ट्रपति ने वाजपेयी का तैलचित्र बनाने वाले चित्रकार किशन कन्हाई को अंगवस्त्र पहना कर सम्मानित किया। यह तैलचित्र लोक अभियान संस्था ने तैयार कराया है। इस माैके पर केन्द्रीय मंत्री, सांसद एवं अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
इस मौके पर वाजपेयी के परिवार के सदस्य – श्रीमती नमिता भट्टाचार्य, रंजन भट्टाचार्य, सुश्री निहारिका भट्टाचार्य एवं सांसद अनूप मिश्रा भी अगली पँक्ति में बैठे थे। राष्ट्रपति ने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा कि भारतीय राजनीति के महानायकों में अटल जी को हमेशा याद किया जाएगा।
राजनीति में विजय और पराजय को स्वीकार करने में जिस सहजता और गरिमा का परिचय उन्होंने दिया है, वह अनुकरणीय है। वह विपरीत परिस्थितियों में धैर्य की मिसाल थे। वह जितने गंभीर थे, उतने ही विनोदप्रिय भी। वह उदार और क्षमाशील भी थे। उन्होंने कहा कि वाजपेयी समकालीन राजनीति की पाठशाला थे। वह मानते थे कि अगर राजनेता की आस्था कविता में है तो उसकी राजनीति में मानवीय संवेदना होगी।
उन्होंने कहा कि वाजपेयी ने चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में निर्णायक नेतृत्व प्रदान किया। पोखरण में 1998 का परमाणु परीक्षण और 1999 का कारगिल युद्ध, राष्ट्र-हित में लिए गए उनके दृढ़तापूर्ण निर्णयों के उदाहरण हैं। पूरे विश्व में भारत को शांतिप्रिय परंतु शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करना वाजपेयी के अनेक बहुमूल्य योगदानों में शामिल हैं।
कोविंद ने वाजपेयी के कार्यकाल की अनेक उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा कि दिवंगत नेता ने लोकतंत्र के आदर्शों एवं सिद्धांतों को सत्ता हासिल करने या बचाने के लिए कभी छोड़ा नहीं। संसद से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक उन्होंने आत्मगौरव एवं वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत रत्न से अलंकृत वाजपेयी अजातशत्रु थे। वह विरोधी दल को प्रतिस्पर्द्धी मानते थे, दुश्मन नहीं। उनके जैसे दूरदर्शी नेता बहुत कम हुए हैं। वह कनेक्टिविटी को विकास का मूल मानते थे। उनके कार्यकाल में इसी पर उन्होंने सबसे ज्यादा बल दिया था।
नायडु ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि राजनीतिक विमर्श में गिरावट आ रही है। राजनीतिक दलों को समझना चाहिए कि वे एक दूसरे के शत्रु नहीं हैं। उन्होंने कहा कि वाजपेयी सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों के लिए आधुनिक समय के महानतम रोल मॉडल थे। उन्होंने सिखाया कि अन्य लोगों तथा जनादेश के प्रति सहिष्णु कैसे रहना चाहिए।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने अपने संबाेधन में कहा कि वाजपेयी संसद के केन्द्रीय कक्ष में इस नये रूप में हम सबको आशीर्वाद एवं प्रेरणा देते रहेंगे। उन्होंने कहा कि वाजपेयी की विशेषता थी कि उनके भाषणों के अधिक उनके मौन में भी संवाद की अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने व्यक्तिगत हित के लिए कभी रास्ता नहीं बदला। वह आदर्शों एवं विचार से समझौता किये बिना लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। उनका मानना है कि कभी ना कभी तो परिणाम मिलेगा।
मोदी ने कहा कि वाजपेयी ने एक प्रकार से परिस्थितियों को साध लिया था। उसे अपने भीतर समाहित करने की ताकत थी। वह पूरा जीवन लोकतंत्र के लिए समर्पित रहे। लोकतंत्र में प्रतिपक्ष दुश्मन नहीं होता है। उसकी तीव्र आलोचना करते हुए भी आदर एवं सम्मान बनाये रखने की सीख दी। उन्होंने सिखाया कि हम प्रतिस्पर्द्धी को कठोर प्रहार करने के बावजूद उसे आदर सम्मान से देखें।
लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि एक सर्वप्रिय नेता कैसा होता है तथा राजनीति कैसी करनी चाहिए, वाजपेयी इसका उदाहरण हैं। कठोरता से निर्णय लेते हुए भी अत्यंत संवेदनशील रहे। अपनी बात की स्पष्टता एवं दृढ़ता से रखने के बाद वह बहुमत के साथ रहे। महाजन ने कहा कि सदैव हंसमुख, हृदय में दया रखने वाले, अमृत के समान मधुर बोलने वाले तथा सदैव परोपकार करते हुए देश एवं समाज के लिए जीने वाले राजनेता रहे वाजपेयी सबके लिए वंदनीय हैं।
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष ने वाजपेयी को महायोद्धा की संज्ञा देते हुए कहा कि उन्होंने होंठों पर विपक्ष के लिए विरोध अवश्य रखा लेकिन मन में उसके प्रति क्रोध नहीं रखा। उन्होंने वाजपेयी के दो तीन उद्धरण दिये जिनमें वाजपेयी ने 1997 में आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर कहा था कि 50 साल में हमने प्रगति की है इससे इन्कार नहीं कर सकते हैं। चुनाव में सरकार की आलोचना की जाती है। लेकिन यह कहना कि प्रगति नहीं हुई है, हमारे किसानों, मजदूरों के प्रति अन्याय होगा और आम आदमी के लिए अच्छा नहीं होगा।
आज़ाद ने इसके साथ ही राजनीति में धर्म एवं जाति के नाम पर ध्रुवीकरण के विरोध तथा धर्मनिरपेक्षता बिना भारत, भारत नहीं रहेगा, संबंधी वाजपेयी के बयानों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके बताये रास्ते पर अगर चल सकें तो उनके प्रति बड़ी श्रद्धांजलि होगी। आजाद ने वाजपेयी की एक कविता की कुछ पंक्तियां भी पढ़ी, “मेरे प्रभु, मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना। गैरों को गले ना लगा सकूं ….” इससे पूर्व तोमर ने समारोह में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष का स्वागत किया।