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Mount abu building bylaws wil notidfied soon - Sabguru News
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अंतिम पड़ाव पर माउण्ट आबू का 33 साल का इंतजार

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अंतिम पड़ाव पर माउण्ट आबू का 33 साल का इंतजार
Nakki lake mount abu
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सबगुरु न्यूज-सिरोही। पिछले 33 सालों से पर्यावरण कारणों से मकानों व भवनों के निर्माण मरम्मत व संवर्धन की समस्या झेल रहे माउण्ट आबू की समस्या का निस्तारण इसी सप्ताह हो सकता है। लम्बे अर्से से अटके माउण्ट आबू के बिल्डिंग बायलॉज को राज्य सरकार शीघ्र ही नोटिफाइड कर सकती है।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार माउण्ट आबू नगर पालिका और ग्रामीण आबादी क्षेत्र के सेंचुरी क्षेत्र से बाहर होने के कारण वन विभाग की इसमें कोई भूमिका नहीं होने की अनापत्ति दे दी है। वहीं पर्यावरण विभाग ने इस पर अपनी टिप्पणी देने को कहा था, जिसे मुख्य सचिव की अध्यक्षता में तीन दिन पहले हुई बैठक में स्वीकृति देते हुए कहा शीघ्र टिप्पणी देने को कहा। यह टिप्पणी मिलते ही बिल्डिंग बायलॉज को नोटिफाइड करके लागू करने की पूरी संभावना है।
-आठ साल पहले ये नहीं होता तो होती समस्या
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश की करीब पांच दर्जन जंगलों को सेंचुरी घोषित किया जाना था। इसके लिए साठ के दशक से ही सुप्रीम कोर्ट लगातार सरकारों पर दबाव बना रहा था। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट आने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रवैया सख्त हुआ और राजस्थान सरकार को माउण्ट आबू को भी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी घोषित करना पड़ा। वन विभाग ने जंगल के उनके इलाके के अलावा शहरी क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों को भी सेंचुरी क्षेत्र में डाल दिया।

इसके नोटिफिकेशन के लिए भी यह निकल गया, लेकिन नोटिफिकेशन से पहले जिला कलक्टर की संस्तुति के कारण यह हो न सका। तत्कालीन जिला कलक्टर सिद्धार्थ महाजन ने जब वन विभाग द्वारा आबादी क्षेत्र को ही सेंचुरी में डालने की रिपोर्ट पढ़ी तो उन्होंने इस माउण्ट आबू नगर पालिका और ग्राम पंचायत के आबादी इलाकों के सात गांवों को सेंचुरी से बाहर कर दिया।

इसके इस सात गांवों को सेंचुुरी क्षेत्र से बाहर रखते हुए माउण्ट आबू वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का क्षेत्र नोटिफाइड किया। जून, 2009 को आबादी क्षेत्र को ईको सेंसेटिव जोन घोषित करने का नोटिफिकेशन जारी होते ही जोनल मास्टर प्लान और बिल्डिंग बायलॉज लागू होने तक यहां निर्माण, मरम्मत, संवर्धन आदि पर रोक लगा दी गई।
-वन विभाग के जवाब पर बैठक में नाराजगी
माउण्ट आबू के बिल्डिंग बायलॉज को लेकर वहां की संघर्ष समिति के लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से भी मुलाकात की थी, लेकिन वह इसका निस्तारण नहीं करवा सकी। सरकार बदलने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से फिर मुलाकात की और विस्तृत रूप से इस पर चर्चा की।

हजारों लोगों की समस्या के इस मुद्दे को कानून के दायरे में करने के लिए आदेश मिलते ही सबसे पहले एलएसजी के शासन सचिव ने इस पर बैठक की और बाद में मुख्य सचिव ने।पूर्ववर्ती सरकार द्वारा टालने के लिहाज से इस मामले में वन विभाग को शामिल करने के लिए पत्र जारी किया था। माउण्ट आबू वन विभाग द्वारा बायलॉज पर दी गई अस्पष्ट और गोलमाल टिप्पणी पर वन विभाग के जयपुर स्थित अधिकारियों के समक्ष नाराजगी भी जताई गई।

इस पर वन विभाग ने इस क्षेत्र के सेंचुरी क्षेत्र से बाहर होने कारण इसमें अपनी भूमिका को नगण्य माना। जिस पर माउण्ट आबू अभयारण्य के अधिकारियों की टिप्पणी को शामिल न करते हुए इसे लागू करने परह सहमति बनी, लेकिन पर्यावरण विभाग द्वारा अपनी टिप्पणी देने की बात पर उन्हें बायलॉज की प्रति देकर शीघ्र टिप्पणी मांगी गई।
-इनका कहना है…
मुख्यमंत्री से माउण्ट आबू की समस्या के निस्तारण के लिए विस्तृत चर्चा करके उन्हें बताया था कि इसमें देरी होने से स्थानीय लोग प्रताडि़त हो रहे हैं। वही बाहरी लोगों के अवैध निर्माण जारी हैं। मुख्यमंत्री ने इसे गंभीरता से लेते हुए इसके लिए विशेष बैठकें बलवाने के निर्देश दिए।
रतन देवासी
पूर्व उप मुख्यम सचेतक, राजस्थान सरकार।