सबगुरु न्यूज। अपशगुन की दुनिया के बार बार फडफडाते कुत्तों और रात भर रोती बिल्लियों की दुनिया को कुचलकर अपने लक्ष्य पर आगे बढने वाला खिलाड़ी हार जीत की चिंता किए बिना अपने खेल को आखिरी तक बखूबी से अंजाम देता है।
उस खेल में विरोधी खेमे के हर कारनामों की गहरी साजिश का पर्दाफाश कर देता है और बता देता है कि सफेद चशमों से ढंकी मैली आंखों में कितने षडयंत्र छिपे हुए हैं और वे खेल को किस तरह जीतना चाहता है। हर हथक॓ंडों से दहशत देता विरोधी भले ही अपनी जीत के नगाड़े बजा ले पर खेल देखने वाले, हारने वाले खिलाड़ी के लिए ही तालियां बजाते हैं क्योंकि जीतने वाला आखिर षडयंत्रकारी था।
जीवन में कई बार व्यक्ति अपने कर्म में भले ही असफल हो जाए लेकिन उसके पास खुद अपना व्यवहार ही होता है जो असफल होने के बाद भी उसे सर्वत्र विजयी सम्मान दिलाता रहता है। भले ही उसके पास कुछ भी नहीं हो पर उसका व्यवहार ही वास्तविक जीवन में उसे विजयी बनाए रखता है। असफलता भले ही उसे चिढाती रहे और अपनी विजयी होली मनाती रहे पर दीवाली की रोशनियों में असफलता अंधेरे में गुम हो जाती है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, कर्म के अखाडे में फल की चिन्ता करने वाला बेवजह ही अपने आप को कमजोर बना लेता है और कर्म को अपने अंजाम तक पहुंचने के पहले ही धारणा बना लेता है। यही धारणा उसे कर्म करने में बाधा पहुंचाने लगती है और शनैः शनैः कमजोर बनाने लगती है।
इसलिए हे मानव, तू बिना धारणा बनाए कर्म को बखूबी अंजाम दे और अपने आप को कमजोर मत बना। खेल में हार जीत तो देव के अधीन होती है। तेरे उचित कर्म की हार भी तुझे विजेता मान सबका दिल जीत लेगी। इसलिए तू हार जीत की चिंता छोड़ और अपने कर्म को बखूबी से अंजाम दे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर