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hindu mythology stories by joganiya dham pushkar-हवाओं में फाल्गुन का माहौल ना था - Sabguru News
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हवाओं में फाल्गुन का माहौल ना था

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हवाओं में फाल्गुन का माहौल ना था

सबगुरु न्यूज। बदलता हुआ काल चक्र ऋतुओं का भेदन करता हुआ बसंत और फाल्गुन को ले आया पर बसंत तथा फाल्गुन अपनी रूहानियत का माहौल नहीं बना पा रहा है। बसंत व फाल्गुन के कुछ पक्षधर भले ही माहौल को फूलों से सजाने तथा रंग गुलाल से खेलने का बना रहे हैं पर जमीनी हकीकत में हवाएं उस माहौल को बनाने में सफल नहीं हो पा रही जिसमें यह भान हो जाए कि अब ऋतुओं का राजा बंसत आ गया है। ऐसा लगता है कि कुदरत का तंत्र अभी बसंत को राजा बनाने में अपनी इच्छा को प्रकट नहीं कर पा रहा है और चन्द जिज्ञासु ही बंसत को राजा बनाने में जुटे हुए हैं और उसका बढ चढ़कर गुणगान कर रहे हैं।

गरमी में झुलसा जीव और तूफानी वर्षा में पीटा हुआ मन तथा शिशिर में सिकुड़ा और मार खाया जीव अभी तक अपनी पीड़ा से उभर नहीं पा रहा है तथा धीरे-धीरे अपने तंत्र को सुधारने में लगा हुआ है। बंसत की उमंग तथा फाल्गुन की मस्ती से वह अभी परे है और हर नए मौसमी धोखे से बचना चाह रहा है। बसंत तो फिर भी बदलेगा ही पर मन में फाल्गुन की मस्ती का माहौल नहीं बन पा रहा, कारण हर अच्छा होने की आस में जीव हर बार घायल हो रहा है।

हर एक पल गुजर गया हर एक अच्छे पल की तलाश में। चंद माहौल बदलने वालों ने मानो ऐसा ठेका ले लिया है कि वे सब कुछ बदल देंगे और बसंत को सुहाना व फाल्गुन को मस्ताना बना देंगे। जीवन के कई बसंत निकल गए और फाल्गुन की मस्ती में चंद लोग संवर गए जो बंसत को अपने अनुकूल बदलने की क्षमता रखते थे। शेष बसंत और फाल्गुन की मस्ती को ढूंढते ही रह गए ओर ढूंढते ढूंढते थक गए तथा हर बसंत ओर फाल्गुन से डरने लग गए।

फाल्गुन तो अपने समापन की ओर बढ रहा है तथा ॠतुराज बंसत आने के बाद अपना माहौल अपने अनुसार नहीं बना पा रहा है क्योंकि वह फाल्गुन के धोखे में अंधा होकर अपनी झूठी जय जय कार करवा रहा है, भले ही माहौल ठंडा व ठिठुरने वाला बनता जा रहा है। वह तो सूरज की बढ़ती गरमी में ही बस खुश हुए जा रहा है।

संत जन कहते हैं कि हे मानव, ऋतुएं और महिने तो बदल जाते हैं पर वह अपने नाम और गुणों के अनुसार अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाते तो कभी भी उस माहौल का निर्माण नहीं हो पाता जिससे जीव व जगत सुखी हों। भले ही चंद लोग इस माहौल का कृत्रिम निर्माण करने में लगे रहे।

इसलिए हे मानव, तू शरीर के माहौल को देख, वह किस ऋतु से मार खाया हुआ है और उसे ठीक करने का प्रयास कर तथा मन को बहने मत दे उस धारा में जो शरीर का नुकसान करे ताकि शरीर के स्वस्थ होने पर तू बदलने वालीं ऋतुओ का आनंद ले सके।

सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर