अयोध्या। विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह पंकज ने विवादित स्थल के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय की पहल से हो रही मध्यस्थता वार्ता पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि जहां रामलला विराजमान हैं वही उनकी जन्मभूमि है। ऐसे में न्यायालय किस बात पर मध्यस्थता करा रहा है।
कारसेवकपुरम् में विहिप मुख्यालय से गुरुवार को जारी बयान में श्री पंकज ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय आगे आकर इस बात की घोषणा करे कि हाईकोर्ट ने जमीन का जो विभाजन किया था वह गलत है और जहां रामलला विराजमान हैं वही उनकी जन्मभूमि है।
उन्होंने कहा कि मध्यस्थता तो लेन-देन के लिए होती है। हिन्दू समाज से आखिर क्या अपेक्षा है क्योंकि हिन्दू समाज पांच सौ वर्ष से अपने प्रभु की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर देखने के लिए तरस रहा है।
उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय से पूछा था कि क्या 1528 से पूर्व इस स्थान पर हिन्दुओं का कोई धार्मिक स्थान था? अदालत ने उनका प्रश्न ज्यों का त्यों वापस करके इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच को निर्देशित किया कि रामजन्मभूमि से सम्बन्धित सभी मुकदमों को एक साथ करके विचार किया जाए और इस विचार में इस प्रश्न का भी उत्तर ढूंढा जाए कि 1528 से पूर्व इस स्थान पर हिन्दुओं का कोई धार्मिक स्थान था या नहीं।
पंकज ने बयान में कहा कि सभी पक्षों की सहमति के बाद हाईकोर्ट ने सुनवाई शुरू की और सितम्बर 2010 में निर्णय दिया कि जहां रामलला विराजमान हैं वही उनकी जन्मभूमि है। परन्तु इस निर्णय के साथ ही सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के वाद को खारिज करने के बाद विवादित परिसर को तीन हिस्सों में विभाजित करके एक हिस्सा निर्माेही अखाड़ा और एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड और मध्य का हिस्सा रामलला को देने का निर्णय दिया।
विहिप के केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि 70 साल से उलझी न्यायिक प्रक्रिया से हिन्दू समाज को मुक्ति मिलनी चाहिए। भगवान श्रीराम आखिर कब तक न्याय की चौखट पर याची बनकर गुहार लगाते रहेंगे।
उन्होंने कहा कि संत, धर्माचार्य और करोड़ों हिन्दुओं की यही पुकार है कि जहां रामलला विराजमान हैं वहीं भव्य मंदिर का निर्माण होगा। उन्होंने यह भी कहा कि अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा में किसी भी प्रकार से नई मस्जिद का निर्माण नहीं होने दिया जाएगा।