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Devi Singh Bhati creating more problems with Congress for Arjunram Meghwal - अर्जुनराम मेघवाल के लिए कांग्रेस से ज्यादा मुश्किलें पैदा कर रहे है देवीसिंह भाटी - Sabguru News
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अर्जुनराम मेघवाल के लिए कांग्रेस से ज्यादा मुश्किलें पैदा कर रहे है देवीसिंह भाटी

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अर्जुनराम मेघवाल के लिए कांग्रेस से ज्यादा मुश्किलें पैदा कर रहे है देवीसिंह भाटी
Devi Singh Bhati creating more problems with Congress for Arjunram Meghwal
Devi Singh Bhati creating more problems with Congress for Arjunram Meghwal
Devi Singh Bhati creating more problems with Congress for Arjunram Meghwal

बीकानेर। राजस्थान में बीकानेर संसदीय क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार केंद्रीय राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल का सीधा मुकाबला भले ही कांग्रेस के मदनगोपाल मेघवाल से हो, लेकिन उनके लिए भाजपा के ही दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी बड़ी बाधा बनकर उभरे हैं।

चुनावों की घोषणा से पहले ही भाटी पार्टी के शीर्ष नेताओं से केंद्रीय राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल को टिकट नहीं देने की मांग कर रहे थे। अपनी मांग पर बल देते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ने तक की धमकी दी, लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनकी मांग को नकारते हुए मेघवाल पर ही भरोसा जताया। इससे भाटी बुरी तरह से भड़क गए और उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देकर अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ मुहिम छेड़ दी है।

अर्जुन राम मेघवाल लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। राजस्थान में चूरू के जिला कलेक्टर के पद से इस्तीफा देकर वर्ष 2009 में पहली बार भाजपा के उम्मीदवार के रूप में बीकानेर के सांसद चुने गए। दरअसल इससे पहले बीकानेर सीट सामान्य वर्ग में थी। वर्ष 2009 में यह सुरक्षित घोषित हुई। इसके बाद भाजपा ने उन्हें मौका दिया था।

उन्होंने संसद में सर्वाधिक सक्रिय सांसद के रूप में अपनी छवि बनाई और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की निगाह में चढ़ गए। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वह राजस्थान में सर्वाधिक मतों से जीतने वाले चुनिंदा सांसदों में शुमार हुए। बाद में उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया।

उधर, पिछले दो चुनाव में अर्जुनराम के बराबरी का उम्मीदवार नहीं ढूंढ़ पाई कांग्रेस ने इस बार भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी मदनगोपाल मेघवाल को उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है। खास बात यह है कि मदनगोपाल अर्जुनराम के मौसेरे भाई हैं। एक ही परिवार के होने के नाते उनमें राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भले ही हो, लेकिन उनमें कटुता नजर नहीं आ रही है। दोनों एक दूसरे पर किसी तरह की टिप्पणी से परहेज करते हुए शालीनता से चुनाव प्रचार कर रहे हैं।

इसके विपरीत देवीसिंह भाटी ने अर्जुनराम को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। शहर में वह जगह जगह नुक्कड़ सभाएं करके र्जुनराम को घोर जातिवादी बताते हुए उन्हें हराने का आह्वान कर रहे हैं तो उनके समर्थक अर्जुन राम के पुतले जला रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में उनके समर्थक अर्जुनराम का कड़ा विरोध करके उनकी सभाओं में बाधा पहुंचा रहे हैं। उनके डर से ग्रामीण भी उनकी सभाओं से दूरी बना रहे हैं।

सोशल मीडिया पर भी उनके समर्थकों ने अर्जुनराम के खिलाफ अभियान छेड़ा हुआ है। जानकारों के अनुसार भाटी का बीकानेर संसदीय क्षेत्र के कोलायत, बीकानेर पूर्व और नोखा विधानसभा क्षेत्रों में खासा असर माना जाता है। इन क्षेत्रों में भाटी की मुहिम से अर्जुनराम को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। फिलहाल अर्जुनराम अब भी भाटी की उग्रता को नजरअंदाज करते हुए खामोशी से चुनाव प्रचार में जुटे हैं।

भाटी की अर्जुनराम से नाराजगी की खास वजह है। दरअसल भाटी वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले कोलायत से लगातार सात बार चुनाव जीत चुके थे। क्षेत्र में वह दबंग नेता के रूप में जाने जाते हैं। पार्टी में भी उनका खासा दबदबा था। पार्टी में उनका प्रभाव ही था कि वह आसपास की दो तीन सीटों पर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में कामयाब होते थे। वर्ष 2013 में कांग्रेस के भंवर सिंह भाटी से 1100 से कुछ अधिक मतों के सामान्य अंतर से पहली बार चुनाव हारने से उन्हें गहरा झटका लगा।

उस समय उन्हें अर्जुनराम से शिकायत थी कि उन्होंने उनके क्षेत्र में प्रचार नहीं किया जिसकी वजह से उन्हें दलितों के वोट नहीं मिले। उस समय अर्जुनराम उनकी नाराजगी दूर करने में सफल हो गए। इसक बाद भाटी ने चुनाव नहीं लड़ने घोषणा की। वर्ष 2018 के चुनाव में उनकी पुत्रवधु पूनम कंवर चुनाव लड़ी।

उस समय अर्जुनराम ने केंद्रीय मंत्री होते हुए उनके क्षेत्र में एक बार भी उनके पक्ष में प्रचार नहीं किया। इससे उनकी पुत्रवधु पूनम कंवर करीब 11 हजार मतों से हार गईं। इससे भाटी बुरी तरह से उखड़ गए और उन्होंने अर्जुनराम मेघवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

उधर, भाजपा नेतृत्व अर्जुन राम का टिकट काटकर दलितों की नाराजगी का जोखिम नहीं ले सकता। इसकी खास वजह है कि सांसद के रूप में उनका बेहतरीन रिकार्ड के साथ ही राजस्थान में वह पार्टी का चमकदार दलित चेहरा भी हैं। लिहाजा पार्टी नेतृत्व ने भाटी की मांग अनसुनी करते हुए उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया। पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ता भी बंट गए हैं।

वैसे भी भाटी ने पार्टी को कभी तवज्जो नहीं देते। पार्टी कार्यक्रम से वह दूर ही रहते हैं। पार्टी से हटकर उनकी खुद की कार्यकर्ताओं की फौज है। लिहाजा भाजपा के स्थानीय नेता उनसे दूरी बनाए रखते हैं। इधर, भाजपा के इन दोनों दिग्गजों की लड़ाई कांग्रेस खामोशी से देख रही है। उनके लिए यह बिन मांगी मदद है।