मुख में चाबे नागर पान, म्हारा वीर हनुमान
सबगुरु न्यूज। अति बलशाली और वानर रूपधारी वीर हनुमान की शक्ति का भान तब हुआ जब कोई भी पराक्रमी वीर लंका नगरी जाने को तैयार नहीं हुआ। लंका नगरी अथाह जल समुद्र के बीच टापू पर बसी हुई थी। वहां का राजा रावण पराक्रमी एवं अहंकारी था। उसने अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम की धर्मपत्नी सीताजी का वन में हरण कर लिया था तथा लंका नगरी में कैद करके रखा था। लंका नगरी पहुंचना नामुमकिन था ऐसे में श्रीराम के सामने भारी संकट पैदा हो गया था। कोई भी वीर इस चुनौती को स्वीकार नहीं कर पाया।
श्रीराम, लक्ष्मण, वानर, वीर, रीछ आदि सभी असमर्थ और हताश हो गए थे तब वानर परम शक्तिशाली हनुमान जी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और अपने बल बुद्धि से वे संकटों को पार करते हुए लंका नगरी पहुंच गए। सीता जी का पता लगा लिया तथा रावण को भी चुनौती दे डाली कि अब हम श्रीराम के साथ सेना सहित आएंगे ओर सीता जी को ले कर जाएंगे।
वानर सेना के साथ हनुमान जी ने समुद्र में रास्ता बनाया और लंका नगरी पहुंच गए। वहां पर रावण के साथ श्रीराम लक्ष्मण का युद्ध हुआ तो रावण ने दोनों को ही नागपाश में बांध कर उन दोनों को मारने की चाल चली लेकिन हनुमान जी के बुद्धि बल से नागपाश कटा। उसके बाद लक्ष्मण के शक्ति बाण लगा और वे मरणासन्न हो गए तब वीर हनुमान जी ने द्रोणागिर पर्वत की जड़ी बूटी संजीवनी बूटी लाकर उनके प्राण बचाए। अंत में राम लक्ष्मण दोनों की ही बली देने के लिए रावण ने उन्हें पाताल में पहुंचवा दिया।
हनुमान जी ने यहां भी अपने महापराक्रम का परिचय दे राम व लक्ष्मण को अपने कंधों पर बैठाकर वापस लंका में रावण से युद्ध करने के लिए खड़ा कर दिया। आखिरकार अजेय रावण मारा गया। श्रीराम के कारण ही हनुमान जी को लंका में जाना पड़ा और अपनी पूर्ण वीरता ओर बुद्धि बल के साथ राम को रावण से जीतने का मार्ग प्रशस्त किया। इसकी ऐवज में उन्होंने श्रीराम से कुछ भी नहीं लिया ओर लगातार राम की सेवा में लगे रहे।
संत जन कहते हैं कि वीर हनुमान जी का पराक्रम ओर बुद्धि बल ही नहीं उनकी निस्वार्थ सेवा के कारण सदा पूजा जाता रहा है। पान का बीड़ा उन्हें अर्पण कर अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए अरदास की जाती है।
इसलिए हे मानव, हनुमान जी के जन्मोत्सव पर अपने पराक्रम और बुद्धि बल को निस्वार्थ भाव से सेवा व जन कल्याण में लगा। भले ही तुझे बदले में कुछ भी नहीं मिले क्योंकि ऐसे श्रम ही भक्ति का प्रमाण देते हैं और जय जय कार कराते हुए बहुत कुछ दे जाते हैं और सदा सम्मान के सिंहासन पर विराजमान करा जाते हैं।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर