अजमेर। मेयो कॉलेज में आयोजित हार्टफुलनेस वर्कशॉप में जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. विकास सक्सेना ने कहा कि अन्तःप्रेरणा से जीने की कला का नाम हार्टफुलनेस है।
डॉ. सक्सेना ने कहा कि दिल की आवाज सुनकर इसके अनुरूप जीवन जीना सही अर्थों में मानववीयता है। भावनाओं को साथ लेकर अन्तःप्रेरणा के साथ जीने की कला हार्टफुलनेस है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस कर सकता है। आंतरिक स्तर से आया बदलाव स्थायी तथा उपयोगी होता है।
उन्होंने कहा कि भारतीय परम्परा में मेडिटेशन के कई प्रकार है। अष्टांग योग में भी बहीरंग योग के अन्तर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम जैसे भाग है। इसी प्रकार अन्तरंग योग में ध्यान, धारणा एवं समाधि को शामिल किया जाता है। हार्टफुलनेस पद्धति में ध्यान पर विशेष फोकस किया जाता है। ध्यान के साथ संगीत का उपयोग ध्यान में सहायक हो सकता है। लेकिन यह परिपूर्ण ध्यान नहीं है।
उन्होंने कहा कि एकाग्रता एवं ध्यान में बुनियादी अंतर है। एकाग्रता के अन्तर्गत मन को एक स्थान पर स्थिर करना होता है। जबकि ध्यान एक स्वतः स्फूर्त प्रक्रिया है। एकाग्रता से ध्यान का संधान नहीं हो सकता लेकिन ध्यान से एकाग्रता को प्राप्त किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि हार्टफलनेस पद्धति की विलक्षणता प्राणाहुति है। प्राणाहुति के माण्यम से दिव्य ऊर्जा मानव मात्र को उपलब्ध करवायी जाती है। ब्रह्माण्ड को ऊर्जा प्रदान करने वाले मुख्य स्त्रोत से प्राप्त दिव्य ऊर्जा को मानव मात्र के लिए सहज रूप से उपलब्ध करवाया गया है।
कार्यशाला में निदेशक अकेदमिक नवीन कुमार दीक्षित, हैडमास्टर प्रमोद कुमार चतुर्वेदी सहित 75 शिक्षक तथा हार्टफुलनेस प्रशिक्षक अंकुर, तिलक गहलोत एवं ब्राइटर माईंड प्रशिक्षक नेहा कपूर उपस्थित थे।