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Pashupati Kumar Paras inherited legacy of elder brother not only in Lok Sabha - पशुपति कुमार पारस ने विधानसभा ही नहीं लोकसभा में भी संभाली बड़े भाई की विरासत - Sabguru News
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पशुपति कुमार पारस ने विधानसभा ही नहीं लोकसभा में भी संभाली बड़े भाई की विरासत

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पशुपति कुमार पारस ने विधानसभा ही नहीं लोकसभा में भी संभाली बड़े भाई की विरासत
Pashupati Kumar Paras inherited legacy of elder brother not only in Lok Sabha
Pashupati Kumar Paras inherited legacy of elder brother not only in Lok Sabha
Pashupati Kumar Paras inherited legacy of elder brother not only in Lok Sabha

पटना। लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने खगड़िया के अलौली (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र का सात बार प्रतिनिधित्व करने के बाद इस बार के लोकसभा चुनाव में हाजीपुर (सु) सीट पर जीत का परचम लहराकर अपने बड़े भाई की विरासत भी संभाल ली है।

पारस ने बिहार के खगड़िया संसदीय क्षेत्र के अलौली (सु) विधानसभा क्षेत्र का सात बार प्रतिनिधित्व किया, जहां से उनके बड़े भाई रामविलास पासवान पहली बार वर्ष 1969 में विधायक चुने गये थे। वहीं, वर्ष 2019 में पारस अपने बड़े भाई का गढ़ माने जाने वाले हाजीपुर (सु) क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़कर न केवल पहली बार सांसद बने बल्कि पासवान की राजनीतिक विरासत को सुरक्षित रखने में भी कामयाब रहे।

बिहार के खगड़िया जिले में अलौली थाना क्षेत्र के सहेरबनी गांव में जामुन पासवान और सीया देवी के घर वर्ष 1953 में जन्मे पारस की स्कूली शिक्षा-दीक्षा गांव से ही हुई। उन्होंने वर्ष 1972 में भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर से स्नातक (प्रतिष्ठा) और वर्ष 1974 में इसी विश्वविद्यालय से बीएड की डिग्री हासिल की। इसके बाद वह अपने बड़े भाई से विरासत में मिली राजनीति में सक्रिय हो गये।

पारस का राजनीतिक जीवन काफी सफल रहा। उन्होंने वर्ष 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर अलौली से पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद वह सफलता की सीढ़िया चढ़ते चले गए। उन्होंने वर्ष 1985, 1990, 1995, 2000, फरवरी 2005 के उप चुनाव और अक्टूबर 2005 के विधानसभा चुनाव में भी अलौली का लगातार छह बार प्रतिनिधितव किया। हालांकि वह वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाईटेड के रामचंद्र सदा से पराजित हो गए।

इसके बाद वह लोजपा संगठन को मजबूत बनाने के लिए सक्रिय रहे। इस बीच जुलाई 2017 में मुख्यमंत्री एवं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के महागठबंधन से नाता तोड़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल होने से बिहार की राजनीति में हुए नाटकीय उथल-पुथल में पारस के सितारे एक बार फिर बुलंदियों पर पहुंच गए। बिहार की राजग सरकार में उन्हें पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री पद की जिम्मेवारी सौंपी गई। बाद में उन्हें राज्यपाल कोटे से विधान परिषद् का सदस्य बनाया गया।

ठीक दो साल बाद सतरहवें लोकसभा चुनाव (2019) की अधिसूचना जारी हुई और लोजपा ने पारस को हाजीपुर (सु) सीट से पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया, जहां से उनके बड़े भाई पासवान आठ बार वर्ष 1977, 1980, 1989, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 का संसदीय चुनाव जीत चुके थे। इस सीट पर बड़े भाई का उत्तराधिकारी बनना पारस के लिए चुनौतीपूर्ण था। लेकिन, किसे पता था कि वर्ष 2019 में भी उनके सितारे बुलंदियाें पर ही हैं।

वैशाली से टिकट काटे जाने से नाराज लोजपा के पूर्व सांसद रामा सिंह और जदयू नेता नरेंद्र सिंह के विरोधी तेवर जैसी चुनौतियों के बीच पारस ने 539665 मत हासिल कर अपने निकटतम प्रतिद्वंदी राष्ट्रीय जनता दल प्रत्याशी एवं बिहार के पूर्व मंत्री शिवचंद्र राम को न केवल 204382 मतों के भारी अंतर से पराजित कर दिया बल्कि वह इस क्षेत्र से सर्वाधिक मत हासिल करने वाले दूसरे सांसद बन गए। इससे पूर्व इस सीट पर रामविलास पासवान अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में 615129 वोट मिले थे।