मुंबई। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का सोमवार को ऐलान करने वाले धुरंधर ऑलराउंडर युवराज सिंह ने विदाई मैच का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
युवराज ने संन्यास की घोषणा करते हुए कई सवालों के जवाब दिए। यह पूछने पर कि क्या वह कोई विदाई मैच चाहते थे, युवराज ने कहा कि मैंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में किसी से नहीं कहा था कि मैं अपना आखिरी मैच खेलना चाहता हूं। यदि मेरे अंदर क्षमता होगी तो मैं उसी के दम पर मैदान में जाऊंगा। मैं इस अंदाज में क्रिकेट नहीं खेल सकता कि मुझे कोई विदाई मैच चाहिए।
उन्होंने कहा कि मुझसे कहा गया था कि यदि मैं यो-यो टेस्ट पास नहीं कर पाता हूं तो मैं एक विदाई मैच खेल सकता हूं। मैंने तब कहा था कि मैं कोई विदाई मैच नहीं खेलना चाहता। यदि मैं यो-यो टेस्ट पास नहीं कर पाता हूं तो मैं चुपचाप घर निकल जाऊंगा।
बल्ले और गेंद के इस खेल में यो-यो टेस्ट की जरुरत के बारे में पूछने पर युवराज ने कहा कि मुझे विश्वास है कि मेरे पास जीवन में इतना समय रहेगा कि मैं इन बातों पर चर्चा कर सकूं।
मुझे काफी कुछ कहना है लेकिन मैं इस समय कुछ नहीं कहना चाहता हूं क्योंकि भारत विश्वकप में खेल रहा है। मैं खिलाड़ियों को लेकर कोई विवाद नहीं चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि खिलाड़ी अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में रहे ताकि वे खिताब तक पहुंच सकें।
युवराज ने कहा कि ऐसे मुद्दों पर बोलने के लिए मेरा समय भी आएगा। मैंने इस समय संन्यास इसलिए लिया है कि मैं जीवन में आगे बढ़ना चाहता हूं। मुझे विश्वास है कि मेरा समय आएगा और तब मैं इन बातों पर बोलूंगा।
भविष्य में कोचिंग या मेंटरशिप में उतरने के बारे में पूछने पर युवराज ने साफ तौर पर कहा कि अभी कुछ नहीं। मैंने अभी संन्यास लिया है। मैं एक-दो वर्ष तक खुद का आनंद लेना चाहूंगा और उसके बाद ही इस बारे में कुछ सोचूंगा। मैं क्रिकेट को कुछ वापस देना चाहता हूं और भविष्य में युवा पीढ़ी के लिए काम करुंगा।
युवराज ने साथ ही कहा कि उन्हें इस बात का कोई अफसोस नहीं है कि वह वनडे में 10 हजार रन पूरे नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि मेरे लिए 10 हजार रन बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण विश्वकप जीतना था और विश्वकप की जीत सबसे ज्यादा खास थी।
उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को लेकर कहा कि उन्हें इस बात का अफसोस रहेगा कि वह टेस्ट में ज्यादा नहीं खेल पाए। उन्होंने कहा कि मैं ऐसे समय खेल रहा था जब टेस्ट टीम में स्थान बनाना बहुत मुश्किल था। हमें खुद को साबित करने के लिए एक या दो टेस्ट ही मिल पाते थे।