सबगुरु न्यूज। हिंदू धर्म में हर एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हर महीने 2 एकादशी आती है लेकिन इन सबमें निर्जला एकादशी का महत्व सबसे जय है।
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते है। इस व्रत में पानी का पीना वर्जित होता है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी भी कहते हैं।
निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेन एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। इस व्रत से व्यक्ति को दीर्घायु और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए मंदिर में या किसी भी विप्र या निर्धन को पानी की मटकी भरकर उस पर ढकन लगाकर आम, शक्कर, एक पंखा रखकर दान करें जिससे आप के पूर्वज (पित्र) तृप्त होते हैं और नमो भगवते वासु देवाय या श्री कृष्णा शरणम का जप करने से अक्षय फल मिलता है।
इतना ही नहीं बल्कि निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित साल की 25 एकादशी व्रत का फल मिलता है। जहां साल भर की अन्य एकादशी व्रत में आहार संयम का महत्त्व है। वहीं निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ ही जल का संयम भी ज़रूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है यानि निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। व्रत का विधान है।
कैसे करें निर्जला एकादशी पर पूजा
इस दिन सुबह शीघ्र उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का ध्यान लगाकर व्रत का संकल्प लें और मंदिर जाएं। भगवान विष्णु की आराधना करें और पूजा अर्चना करें। इस दिन गरीबों को दान दक्षिणा देना न भूलें. अगले दिन मंगलवार को सुबह स्नानादि के बाद पूजा करने के उपरांत व्रत को खोलें।
दिनभर इन बातों का ध्यान रखें
1. पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अलावा अगले दिन सूर्योदय तक पानी नहीं पीएं।
2. दिनभर कम बोलें और हो सके तो मौन रहने की कोशिश करें।
3. दिनभर न सोएं।
4. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
5. झूठ न बोलें, गुस्सा और विवाद न करें।
निर्जला एकादशी व्रत की कथा
एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यासजीके मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से निवेदन किया कि ‘महाराज! मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता। दिन भर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी ही रहती है। अतः आप कोई ऐसा उपाय बताइए जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाए। तब व्यासजी ने कहा कि ‘तुमसे वर्षभर की सम्पूर्ण एकादशी नहीं हो सकती तो केवल एक निर्जला कर लो, इसीसे सालभर की एकादशी करने के समान फल हो जाएगा। तब भीम ने वैसा ही किया और स्वर्ग को गए। इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जानी जाती है।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला यानि यह व्रत बिना जल ग्रहण किए और उपवास रखकर किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तप और साधना के समान महत्त्व रखता है। हिन्दू पंचाग अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि पांच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन किया था और वैकुंठ को गए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी हुआ।