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Punjab : Promising wrestlers forced by poverty to transplant paddy-मजदूरी करने को मजबूर 10 स्वर्ण पदक विजेता महिला पहलवान - Sabguru News
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मजदूरी करने को मजबूर 10 स्वर्ण पदक विजेता महिला पहलवान

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मजदूरी करने को मजबूर 10 स्वर्ण पदक विजेता महिला पहलवान

जालंधर। राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर दस से अधिक स्वर्ण पदक जीतने वाली पंजाब के मोगा की दो महिला पहलवान गरीबी के चलते अपना तथा अपने परिवार का पेट पालने के लिए धान के खेतों में मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं।

केन्द्र तथा राज्य सरकारें नौजवानों को खेलों के लिए प्रेरित करने के लिए कईं प्रकार की योजनाओं का ऐलान करती हैं लेकिन इन्हें देखकर पता चलता है कि वास्तविकता इसके विपरीत है।

जिला मोगा के कस्बा निहाल सिहंवाला और रणसिंह कलां से सम्बन्धित यह दोनों महिला खिलाड़ी सरकार के रवैया से बेहद निराश हैं। ये लड़कियाँ वह रेसलर हैं जिन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर दस स्वर्ण पदक जीते हैं और आज सरकार की अनदेखी के कारण मजदूरी करके अपनी खेल कला को आगे बढ़ाने के लिए यत्नशील हैं।

ऐसे में सहज ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश के राज्यों की सरकारें भारत का नाम दुनिया भर में रौशन करने वालों की कितनी कद्र करती हैं। उल्लेखनीय है कि 28 जून को निहाल सिंहवाला में ज़िला कुश्ती संस्था मोगा की ओर से जूनियर पंजाब कुश्ती चैंपियनशिप का आयोजना करवाया जा रहा है।

पंजाब स्तर पर कुश्ती में 10 बार स्वर्ण पदक और राष्ट्रीय स्तर पर पाँच बार कांस्य पदक जीत चुकी अरशप्रीत कौर अपने परिवार के साथ खेतों में मजदूरी करने के लिए मजबूर है। उसने बताया कि मै हर रोज़ प्रेक्टिस करती है परन्तु ख़ुराक के लिए पैसे नहीं हैं। दो समय की रोटी के लिए मां -बाप खेतों में मज़दूरी करते हैं। वह मुझे वाजिब ख़ुराक नहीं दे सकते। इस लिए मैं भी हर रोज़ खेतों में काम करती हूं और दिहाड़ी के पैसों के साथ ख़ुराक खाती हूं।

दसवीं कक्षा की छात्रा अरशप्रीत कौर ने बताया कि उसने सात साल पहले तथा बारहवीं पास कर चुकी सन्दीप कौर ने छह साल पहले कुश्तियां लड़ने की महारत हासिल करनी शुरू की थी। ज़िला मोगा अधीन गांव रणसींह कलां की निवासी अरशप्रीत कौर और सन्दीप कौर 53 किलोग्राम भार वर्ग से ले कर 72 किलोग्राम भार वर्ग तक की कुश्ती लड़ कर मैडल जीत चुकी हैं। दोनों ने बताया कि उन्हें सरकारी सहायता का इंतजार है।

खेतों में दिहाड़ी करके ही सही, परन्तु ये पहलवान लड़कियाँ दिन -रात मेहनत करके अपने हुनर को ओर चमकाने में लगीं हुई हैं। अपने माँ बाप के साथ खेतों में दिहाड़ी पर धान की पनीरी उखाड़ते और लगाते हुए इन पहलवान लड़कियों को इस बात की चिंता है कि गोल्ड और ब्राउन मैडल जीतने के बावजूद उनकी आर्थिक दशा ऐसी नहीं कि वह अच्छी ख़ुराक खाकर अपनी ताकत को बढ़ा सकें।

अरशप्रीत कौर ने बताया कि उसने ‘खेलो इंडिया’ में कांस्य पदक जीता था। उस समय पर ऐलान हुआ था कि पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले खिलाड़ियों को 5-5 लाख रुपए की राशि दी जाएगी परन्तु अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है।

उसने बताया कि अकेले धान की फ़सल ही नहीं, बल्कि वह तो मक्का और गेहूं के खेतों में भी काम करती है। हर साल अपने मां बाप के साथ गेहूं काटने भी जाती है। उन्होंने बताया कि ‘घर की गरीबी के कारण प्रैक्टिस भी सुबह चार बजे उठ कर करती है। दिन -भर खेतों में काम करके थक -हार जाती हूं परन्तु शाम को 7 बजे प्रैक्टिस करने के लिए फिर अखाड़े जाती हूं।

अरशप्रीत का कहना है कि उसने पांच साल पहले 65 किलोग्राम भार में कुश्ती लड़ कर स्वर्ण पदक जीता था। उसने 68, 69, 70 और 72 किलोग्राम भार वर्ग में गोल्ड मैडल जीते हैं। अरशप्रीत ओलंपिक जीतने का इरादा रखती है लेकिन डर इस बात का है कि कहीं घर की गरीबी उसके इस लक्ष्य के रास्ते का रोड़ा न बन जाए। अरशप्रीत कौर की माता परमजीत कौर ने कहा कि मेरी बेटी खेलने के साथ साथ हमारे साथ खेतों में धान की फ़सल लाने जाती है।

पहलवान सन्दीप कौर भी रणसिंह खुर्द में मजदूरी करके अपने लिए ख़ुराक लायक पैसे जोड़ती है। सन्दीप ने बताया कि उसने 53 किलोग्राम भार वर्ग में राष्ट्रीय स्तर पर दो बार कांस्य पदक और पंजाब स्तर पर तीन बार गोल्ड मैडल जीते हैं। उसने बताया कि घर की गरीबी के कारण उसे मज़दूरी करनी ही पड़ती है। अब धान की फ़सल लगा रही हूं। धान से पहले दिन समय पर माता-पिता के साथ दिहाड़ी लगा कर चार पैसे कमाए थे, जिससे अब ख़ुराक का प्रबंध हुआ है। अगर सरकार हमें अकेली ख़ुराक का ही प्रबंध कर दे तो हम एशिया तो क्या ओलंपिक भी जीत सकतीं हैं।

ज़िला खेल अधिकारी बलवंत सिंह ने बताया कि पंजाब सरकार की खेल नीति बनी हुई है। इस नीति मुताबिक जो भी खिलाड़ी जिस तरह का मैडल जीतता है, उसे उसी तरह का नकद इनाम दिया जा रहा है। सरकारी स्पोर्टस शाखा में दिन के समय पर प्रेक्टिस करने वाले खिलाड़ियों को प्रति दिन प्रति खिलाड़ी 100 रुपए ख़ुराक के लिए दिए जाते हैं जबकि रिहायशी शाखा में प्रति खिलाड़ी यह राशि 200 रुपए है।