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Devshayani Ekadashi kyu banai jati hai - Sabguru News
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देवशयनी एकादशी क्यों मनाई जाती है

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देवशयनी एकादशी क्यों मनाई जाती है
देवशयनी एकादशी
देवशयनी एकादशी
देवशयनी एकादशी

एकादशी | सनातन धर्म व्यवस्था में मूल रूप से 24 एकादशियों का उल्लेख धर्म शास्त्रों में मिलता है। मल-मास के समय इनकी संख्या बढ़ कर 26 हो जाती है। 13 कृष्ण पक्ष की और 13 शुक्ल पक्ष की। यहां हम आषाढ़ (Ashadh) मास की शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के विषय में आपको संक्षिप्त जानकारी देंगे।

इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी (Ekadashi) आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यन्त यानि चातुर्मास पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करते हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, नहीं करते। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण हो जाती है।

आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी माना है कि कि चातुर्मास्य में विशेष रूप से वर्षा ऋतु मे विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं। जल की मात्रा ज्यादा होने के कारण और सूरज की रौशनी ज़मीन पर कम आने की वजह से रोग पनपते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया था।

पुराण की एक कहानी के अनुसार – “भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा।”
इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर दैत्य बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगो। बलि ने वर मांगते हुए कहा – “भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें।”

लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन तीनों देवता चार माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक, और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।

व्रत से जुड़ी एक कथा के अनुसार सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट की कहानी ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाई थी। उसके राज्य में तीन वर्षों से अकाल के कारण जनता बेहाल हो गई थी। राजा ने यह व्रत किया और फिर सब कुछ ठीक हो गया।

देवशयनी एकादशी को स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करके पूजा करें। प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें।

ऐसा कहा जाता है कि आज के दिन मधुर स्वर के लिए गुड़ का, दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्र की प्राप्ति के लिए तेल का, शत्रु के नाश के लिए कड़वे तेल का, सौभाग्य के लिए मीठे तेल का, स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्प आदि भोगों का त्याग करें। इसके अलावा पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।