गुरु पूर्णिमा की महिमा | भारतीय संस्कृति में ऐसा कहा गया है कि अगर व्यक्ति के जीवन में गुरु नहीं तो उसे मोक्ष प्राप्ति नहीं होती,प्राचीन काल से ही गुरु पूर्णिमा का पर्व अषाढ़ शुक्ल पक्ष पुर्णिमा के दिन मनाया जाता है गुरु को ज्ञान दाता,मोक्षदाता और भगवान के समान माना गया है इसी अवधारणा के तहत ये भी कहा गया है ।
गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वर:।
गुरु : साक्षात परं ब्रह्मा तस्में श्री गुरुवे नमः।।
अर्थात जन्म देने वाला गुरु है गुरु हमेशा एक श्रेष्ठ , सदाचारी व्यक्ति को जन्म देता है,व्यक्ति गुरु का मानस पुत्र होता है।
रक्षा करने वाला भी यानी विपत्ति आने पर आप कैसे अपने आप को संकट से बचा सकते हैं ये गुरु ही आपको समझा सकता है।
शिष्यों के दोष भी गुरु दूर करने वाला है।
हमें बचपन में एक कहानी सुनाई गई थी गुरु चाक के पास बैठे कुम्हार की तरह है जो सुंदर घड़े बनाते समय बीच में आये कंकड़ को निकाल फेंकता है।
शास्त्रों में गु का अर्थ अज्ञान है और रु का अर्थ निरोध यानी रोकना है, इसलिए गुरु को अज्ञान तिमिर का नाश करने वाला भी कहा जाता है अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला गुरु ही है।
यह पुर्णिमा को ही क्यों मनाया जाता है इसके पीछे कई किंवदंतियां भी है,इस दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है उन्होंने अपनी विद्ववता से चारों वेदों की रचना की थी इसलिए उन्हें वेद व्यास कहा जाता है।
ऐसी अवधारणा है इस समय साधु संत और गुरु जन के अध्ययन का अवधि होता है,इस समय वे अपनी ज्ञान का संचार करते हैं जैसे सुर्य के ताप से तप्त भुमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है इसी दिन शिष्यों को गुरुओं की वन्दना और उनके उपदेशों को ग्रहण करने से असीम ज्ञान की प्राप्ति होती है।
गुरु तत्व की प्रसंशा सभी शास्त्रों ने कि है,ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है किंतु गुरु के लिए कोई मतभेद नहीं धर्मों में गुरु की तुलना ईश्वर से की गई है, गुरु ही नैतिकता के राह पर चलना सीखाती है पूर्व काल से ही राजाओं के दरबार में गणमान्य व्यक्ति के तौर पर होती है बगैर उनके सलाह के कोई काम नहीं होता, राजनीति में अगर कोई संकट आ जाय तो मुख्यत सलाहकार से सलाह लेकर का शुरु किया जाता है, इसलिए माता पिता से भी ऊंचा गुरु को माना गया है।