पहली बार चाँद पर | “21 जुलाई का वो दिन, सारी दुनिया की नज़रें उस ओर लगीं थीं। सांसें थमी हुई-सी थीं। एक-एक पल भारी था। हर कोई ये जानने का इच्छुक था कि क्या ऐसा हो सकता है ? और यदि कामयाबी नहीं मिली तो ? कुछ हौसला बुलंद किए हुए थे। एक ऐसा मुकाम हासिल होने जा रहा है जो इस सभ्यता के इतिहास में गौरवशाली पृष्ठों पर स्वर्णिम अक्षरों से दर्ज किया जाएगा।”
मुकाम हासिल हुआ। निगाहों ने देखा वो मंजर। एतबार भी किया। क्योंकि इंसान ने रच दिया था एक ऐसा नया अध्याय जिसके बारे में हजारों साल पहले हमारे ऋषियों ने बिना आधुनिक यंत्रों के अपने मंत्रों से ही “चांद की पृष्ठभूमि” के रहस्यों से पर्दा उठाया था। पश्चिमी जगत के वैज्ञानिक तो हजारों साल पहले स्वर्णांकिंत शब्दों का सफर वहां पहुंच कर ही देखना चाहते थे। बस इसी मकसद को पूरा करने के लिए इंसान ने रख दिए 21 जुलाई,1969 “चांद पर कदम“।
शीत युद्ध के दौरान एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की जिद में अमरीका ने सोवियत संघ की अंतरिक्ष योजना को एकदम पीछे धकेलते हुए 20 जुलाई, 1969 को 20:17 यूईसी पर अमरीका की अंतरिक्ष संस्था “नेशनल एरोनाॅटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन” यानि “नासा” दर्शाया संचालित अंतरिक्ष यान “अपोलो-11” को चांद की सतह पर उतारा। इसके लगभग 6 घंटे बाद 21 जुलाई, 1969 को 02:56:15 यूईसी समय पर सबसे पहले अंतरिक्ष यात्री “नील आर्मस्ट्रांग” ने चंद्रमा की सतह पर पहला कदम रखा। इसके बाद 19 मिनट बाद उनके सहयात्रियों “एडविन एल्डिन” फिर “माइकल कोलिन्स” के पैर चांद की सतह पर पड़े।
चंद्रमा यात्रा 16 जुलाई, 1969 को अमरीका के फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस स्टेशन से 13:32 यूटीसी समय पर अंतरिक्ष यान अपोलो-11 की उलटी गिनती खत्म होते ही शुरू हुई थी। इसके 102 घंटे 45 मिनट और 43 सेकेंड बाद अपोलो-11 चांद पर उतरा।
नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्डिन ने चांद की सतह पर 21घंटे 36 मिनट बिताए। दोनों ने चंद्रमा की 22 किलोग्राम मिट्टी एवं चट्टानों के 50 टुकड़ो के नमूने लिए और यान में वापस आ गए। चंद्रमा की मिट्टी दानेदार है। जबकि वहां दो तरह की चट्टान-बेसाल्ट और ब्रैकियस मिलीं। ये बेहद ज्वालामुखी के पिघले हुए लावा का ठोस रूप है। धरती और चांद के बेसल एक-समान है। ब्रैकियस पुरानी चट्टानों के हैं।
चंद्रमा की जिस सतह पर अपोलो-11 उतरा था उस जगह को नाम दिया गया – “सी ऑफ़ ट्रॅक्विलिटी”। अमरीका में अपोलो अभियान या मिशन स्वर 1962 में शुरू हुआ था। अपोलो-1 21 फरवरी, 1967 को अंतरिक्ष में भेजा गया था। ये अपोलो की मानवरहित उड़ान थी। इस कड़ी में 17 अपोलो शामिल थे लेकिन अपोलो-2 से अपोलो-6 कार्यान्वित नहीं हुए।
अपोलो श्रृंखला की एक खास बात ये है कि मानवयुक्त अपोलो-8 चंद पर जाने वाला पहला यान था। लेकिन अपोलो-8 को चंद्रमा की सतह पर उतारने की योजना नहीं थी। उसने चांद का चक्कर लगाया और वापस धरती पर आ गया। यूं तो पहला अंतरिक्ष यात्री सोवियत संघ का यूरी गगारिन था। लेकिन अपोलो-1 के तीन अंतरिक्ष यात्रियों और सोवियत संघ के दो अंतरिक्ष यात्रियों की बलि लेने के बाद ही ब्रह्माण्ड़ ने अपने क्षेत्र में मानव को सैर करने की इजाजत दी। आगामी 21 जुलाई, 2019 को चांद पर पैर रखने का स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित किया जाएगा।