कर्नाटक संकट से असली नुकसान | पिछले साल तेरह महीने पहले से आज तक कोई दिन ऐसा नहीं गया जब इस सरकार पर संकट नहीं रहा। कहीं न कहीं से आवाजें उठतीं रहीं। उठा-पटक होती रही। कुमार स्वामी मुख्यमंत्री क्या बने कोई न कोई मुसीबत दरवाजे पर खड़ी रहती है।ऊपर से लोक सभा चुनाव के परिणाम और उसके बाद तेजी से बदले घटनाक्रम ने आग में घी का काम कर दिया|1989 में केन्द्र की चन्द्रशेखर की बनी सरकार की तरह बिधान सभा में कम सीटों वाला मुख्यमंत्री और बिधानसभा में अधिक सीटों वाला समर्थन कर रहा है। अधिक के पाले में सिद्धारमैया जी का ऐसा ऐसा कद है जिसके लिए किसी न किसी रूप में सुर छिड़ते रहते हैं।इस बार तो गजब हो रहा है जब 13 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं। मनाने की कोशिशें लगातार जारी हैं।
सरकार बचे इसके लिए डिप्टी सीएम जी परमेश्वर सहित कांग्रेस के सभी 21 मन्त्रियों ने इस्तीफा दे दिया है।उनके साथ बैठक कर हालात पर चर्चा भी हो रही है।पर अभी तक सारे आफर ठुकराने के ही संकेत हैं।दूसरी ओर निर्दलीय विधायक नागेश ने मंत्रीपद से इस्तीफर देकर भाजपा के लिए समर्थन का ऐलान कर दिया है। भाजपा कुमार स्वामी से अल्पमत में होने की बात कहकर इस्तीफा मांग रही है।हालांकि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व देखो और उचित समय का इन्तजार करो की नीति पर है।भसलपा नेता व केन्द्रीय मन्त्री सदानन्द गौड़ा ने साफ कर दिया है कि अगर भाजपा की सरकार बनती है तो बीएस यदुरप्पा ही मुख्यमंत्री होंगे। यह बहुत दूर तक जाने वाली बात है।
अब सवाल यह है कि कर्नाटक में विधानसभा के परिणाम आने वाले दिन से ही सरकार बनने बिगडने का समाकरण बैठ गया।सबसे बड़ा दल होने से राज्यपाल से भाजपा को अवसर दिया।कांग्रेस ने आधीरात में सर्वोच्च न्यायालय से आदेश करवाकर जल्दी बहुमत सिद्ध करवाया।यदुरप्पा जी बहुमत सिद्ध न करपाने से पद छोड गये।उसके बाद कांग्रेस ने तीसरे नम्बर के दल जनता दल सेक्युलर की सरकार समर्थन से बनवा दी। हालांकि कांग्रेस के अधिकांश विधायक सिद्धारमैया को चाहते थे पर नेतृत्व के दबाव में दबे मन से स्वीकार कर लिया।यह चिन्गारी कहीं न कहीं दबी रही और जब राहुल जी ने इस्तीफे का आरम्भ किया तो शायद यहां भी असर आ गया। जैसाकि आज रक्षामंत्री राजनाथसिंह जी ने संसद में कहा।कांग्रेस और जेडीएस ने प्रयास आरम्भ कर दिये हैं। बैठकों का दौर जारी है।
मामला कांग्रेस ने लोकसभा में भी उठा दिया। केन्द्रीय नेतृत्व चाहे पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवैगौड़ा हों या राहुल-सोनिया गांधी इस मुद्दे पर मौन हैं। दूसरी ओर रामदास अठावले कुमार स्वामी जी को सीधे सीधे एनडीए में आने को कह रहे है।सरकार बचेगी या जायेगी। यदुरप्पा मुख्यमंत्री होंगे अथवा विधान सभा स्थगित होगी यह कुछ दिनों में साफ हो जायेगा। अपने-अपने रणनीतिकार व अपने-अपने चाणक्य अन्दर खाने काम कर ही रहे होंगे। चैनलों पर चर्चांयें आरम्भ हैं। जनता बेचैन है।
वर्तमान की राजनीति में सरकारों को चलाने-बचाने के लिए मंत्री पद का आफर विशेष पैकेज की बात कहां तक न्यायसंगत है।उसमें भी बसपा विधायक द्वारा जाति आधारित अधिक फंड की मांग यह कहां जाने का संकेत है।इससे जनता के विश्वास का कितना भला होता है।राज्य के समग्र विकास पूर्व से चल रही योजनाओं पर क्या प्रभाव हो सकता है।जो विधायक मंत्री नहीं बन पायेंगे या जिनके क्षेत्र को पैकेज नहीं मिलेगा अथवा जो विपक्ष में होंगे प्रभावित हुए बिना न रह सकेंगे ।
मतदान तो इस सरकार के लिए पूरे कर्नाटक के हर वर्ग समुदाय तथा क्षेत्र ने किया है तो इस तरह की बातें कर यह सब राज्य को कहां ले जाना चाहते हैं। राज्य और देश की राजनीति की दिशा व दशा पर इस सबका क्या असर होने वाला है सोचना पड़ेगा। कर्नाटक की एक बार फिर रिजार्ट पालिटिक्स राज्य को कहां ले जायेगी।दक्षिण का महत्वपूर्ण राज्य जोकि हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है। उसको लेकर उसके निवासियों के विश्वास और देखे जा रहे सपनों को लेकर चिन्ता स्वाभाविक है।
पिछले कार्यकालों की सरकारें आज की सरकार की सरकार उसमें बैठे या बैठने की तैयारी में लगे लोगों के साथ-साथ राज्य के भाग्यविधाता मतदाताओं को अपने लिए न सही राज्य के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए गम्भीर चिन्तन किये जाने की आवश्यकता है।ताकि न राज्य का किसी प्रकार से अहित हो और न ही आस पास के पड़ोसी राज्यों तक कोई गलत संदेश जाये। वे मौसमी परम्परा का आरम्भ हो। भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर मतदाताओं को मतदान करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना पड़ेगा कि उनका निर्णय क्या कर सकता है।राज्य और राज्य के लोगों के लिए कौन कौन से दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।