सबगुरु न्यूज। ऋगवेद के ऋषियों ने प्राकृतिक शक्तियों और जन कल्याण के लिए कई ऋचाएं प्रस्तुत की हैं। इन ऋचाओं में ना केवल धार्मिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक वरन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र यथा सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत सभी विषयों के बारे में ऋग्वेद की ऋचाओं में बताया गया है। ऋग्वेद के मुख्य देवताओं में अग्नि, इन्द्र, सूर्य, वरुण, मित्र, सविता, मरूत, आश्विनो, पर्जन्य, विष्णु, रूद्र, सोम, आदित्य, उषस, अदिति है।
ऋगवेद में इन्द्र को प्रमुख देवता मानते हुए 250 सूक्त इनके सम्मान में कहे गए हैं। ऋग्वेद में इनकी प्रकृति रहस्यमयी बताई गई हैं। ये अपने आकार को अपनी इच्छा के अनुसार बदल सकते हैं। द्यो इनके पिता तथा गाय इनकी माता है। इन्द्राणी इनकी पत्नी है तथा सोमरस पान के यह प्रिय देवता है। इन्द्र को सृष्टि कर्मो का कर्ता श्रेष्ठ वीर तथा देवताओं का राजा माना गया है।
वरूण देव बारह स्तुतियों में यह बताया गया है कि वरूण प्रकृति के शाश्वत नियमों के रक्षक हैं। इसी के नियमों के कारण सभी आकाशीय पिंड अपने अपने स्थान पर बने हुए हैं। पृथ्वी पर दिन मास ऋतु परिवर्तन सभी को नियंत्रित करते हैं और प्रकृति के नियमों की खिलाफत करने वालों को दंड देते हैं।
कही पर वरूण देव को आकाश ही मान लिया है और कही पर वर्षा और जल से सम्बन्ध होने के कारण इनकी गणना अतिरिक्त देवों में कर ली गई हैं। मित्र देव भी वृष्टि करके अन्न को उत्पन्न करते हैं तथा दिन के देवता के रूप में माना जाता है। पर्जन्य को ऋग्वेद में वृष्टि का देवता माना गया है। ये भूमि को ऊपजाऊ बनाते हैं। पर्जन्य अपने आप को मिटा कर दूसरों का कल्याण करते हैं। मरूत को भी देवताओं के रूप में माना जाता है। वर्षा करना इनका प्रधान कर्म है।
ऋगवेद के ऋषि देवराज इंद्र से प्रार्थना करते हैं कि हे देवराज आप सृष्टि कर्मो के करता है अतः आप मरूत पर्जन्य और मित्र के साथ पृथ्वी पर खूब वर्षा करें ताकि यह पृथ्वी अपने ऋतु परिवर्तन के गुण धर्म को निभा सके और प्राणियों को सुखी ओर समृद्ध बना सके।
संतजन कहते हैं कि हे मानव, धार्मिक और आध्यात्मिक जन देवराज इंद्र से प्रार्थना करते हैं कि हे बरस बरस म्हारा इन्द्र राजा। नहीं बरसने पर सर्वत्र त्राहि त्राहि मच जाएगी। क्षमा और दया करना राजा का गुण होता है। अगर वरूण अपने पाशो से दंड भी दे रहा है, हमारे द्वारा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध व्यवहार करके पेड पौधों को काटने तथा नदी नालों व पहाडों के अस्तित्व को मिटा देने के बाद भी तू हमें क्षमा दान देकर धरती पर खूब बरसो।
इसलिए हे मानव, वर्षा के आने के मार्ग मत रोक और पेड पौधों तथा नदी नालों व पहाडों के अस्तित्व को बनाए रख। ताकि प्रकृति पीडित न हो और वरूण के दंड देने का पाश भी रूके।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर