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कहानी | चालाकी से बड़ी बुद्धिमानी | बल और चालाकी पर बुद्धि की विजय

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कहानी | चालाकी से बड़ी बुद्धिमानी | बल और चालाकी पर बुद्धि की विजय
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चालाकी से बड़ी बुद्धिमानी | एक समय की बात है कि एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था उसका एक पुत्र था जिसका नाम संतो था लेकिन उस गांव में कुछ ऐसे लोग भी थे जो खुद को ब्राह्मण कहते थे पर स्वभाव से नहीं चोरी डकैती करना उनकी फितरत थी क्योंकि वो जिस स्थान से आए थे वहां लुटेरे रहते थे इनमें एक बड़ा लुटेरा था और एक छोटा बड़े लुटेरे के कोई पुत्र नहीं था और उसने जो धन कमाया था वह उसने अपने छोटे भाई छगन लाल की पत्नी को दे दिया था । और छोटा भाई जिसकी एक पत्नी थी उससे उसके चार पुत्र पैदा हुए जिनमें से एक पुत्र उस संतो का मित्र था ।

छगन लाल के पुत्र डरपोक थे पर छगन कि पत्नी से उसके बड़े भाई द्वारा एक पुत्र बिरजू भी था जो चालाक और बदमाश किस्म का था जिसको सभी छगन का पुत्र समझ ते थे पर वह बड़े लुटेरे का पुत्र था जिसकी आदत भी लुटेरों जैसी थी और छगन का दूसरा पुत्र जो की उसके स्वयं के पुत्रों में सबसे बड़ा था बहुत सीधा था बिरजू अपने छोटे भाइयों उस गांव के पुराने महलों में खुदाई करवाता था क्योंकि उसे लगता की इनमें अपार धन घड़ा हुआ है। पर वहां के लोग उन पुराने महलों को अपना शौचलय बना चुके थे जिनमें सिर्फ मल के सिबा कुछ नहीं था।

सुरहाे अपने अन्य भाईयों की चालाकी को नहीं समझ पाता था पर उसकी की किस्मत अच्छी थी क्योंकि संतो ने उसे अपना मित्र बना लिया था क्योंकि लुटेरों के कारनामों को उस सूरोह के माध्यम से ही जाना जा सकता था उस सुरोह का एक मित्र और था सिंघो जो की सबसे चालाक था और सरोह को बहुत पसंद करता था। और सामझता था कि उसके भाई भी उसी की तरह होंगे। लेकिन वह उसके भाईयो की करतूत नहीं जानता था तब संतो उसे सचेत करता था।लेकिन वह खुद को चतुर समझता और उसकी बात को नाकार देता था समय बदलने पर संतो और सुरोह के परवार के मध्य रिश्ते खराब हो गए थे क्योंकि सुरहो के भाई डरपोक भी थे और जब कोई उनको मारने का प्रयास करता तो वह संतो की मदद लेते थे। और उसे मूर्ख समझते पर वह बुद्धिमान था क्योंकि जब भी कोई गुनाह होता तो पुलिस उन लुटेरों के डेरे पर पहुंच जाती थी और उन लुटेरों का प्रयास रहता था कि वह संतो को फंस वा दे पर उसकी हिम्मत और चतुराई के कारण न तो पुलिस उसके घर पहुंच ती थी और न ही वह पुलिस के हाथ लगता था पर छगन लाल ने पुलिस के खूब डंडे खाए और उसका पुत्र सूरोह पुलिस के चंगुल में फस गया क्योंकि वह बहुत मोटा होने के कारण तेज भाग नहीं पाता वो दिन चले गए लेकिन बात उस समय की थी।

जब संतो ने लुटेरों के पारवार से नाता तोड दिया और फिर उस सूरहो का मित्र सिंघो जो कि वैश्य था उसे उसके घर लुटेरों ने इसलिए पहुंचाया ताकि लुटेरा गांव के मुखिया बनने का चुनाव लड़ सके पर सिंघो को यह नहीं पता था कि ये लुटेरे किसी के बाप के भी सगे नहीं होते है। और वह संतो के घर जाकर अपनी चतुराई दिखा रहा था कि आपके मन में क्या है आप चुनाव लड़ना चाहते हो कि नहीं अर्थात वह उसे उस लुटेरे के डेरे पर ले जाने आया था और संतो निडर होकर वहां चला जाता है। संतो ओर बिरजू की चालाकी थी कि हम इसे बहला फुसलाकर चुनाव लडने नहीं देंगे पर संतो उनकी बातों में नहीं आया किंतु बिरजू ने दूसरा षड़यंत्र रच लिया था। सिंघो तो चला गया क्योंकि चालक होने के कारण उसे लगा कि कहीं में न मारा जाऊ। उस बड़े लुटेरे का पुत्र बिरजू जिसने संतो से झूठ कह दिया कि वह उसके साथ है ।

इसलिए उसने चुनाव के नतीजे आने से पहले घोषणा करबा दी की संतो चुनाव गया और जशन मानने लगे बिरजू और उसके पुत्र एवम संतो का परिवार। सुरहो और उसका मित्र वैश्य मन ही मन में सोच रहे थे कि परिणाम उन्हें पता है की संतो चुनाव नहीं जीत पाएगा पर वह चुनाव जीत गया और अब बारी थी सिंघो की जिसने अपनी बुद्धि उस लुटेरे के साथ मिलकर लगाई थी लेकिन सिंघो चतुर होने के कारण दूर हो गया और अब प्रयास में लगा था कि अपनी बुद्धिमानी से मैं फिर सुरहों की संतो से मित्रता करा दूंगा। पता नहीं लुटेरों का सिंघो पर क्या एहसान है कि उनकी गुलामी में वह अपना फक्र महसूस करता है। और अपनी बुध्दि चलाकर अपनी चतुराई दिखाता है आखिर इतनी बुध्दि अगर अपने जीवन पर लगाई होती तो आज उसकी शयाद किसी स्त्री से शादी हो गई होती जो उसे लुटेरों से बचाती क्योंकि पत्नि पति को विपदा से बुद्धिमानी के द्वारा बचाती है।

सारांश -बुद्धिमानी मनुष्य को बचाती है और चालाकी उसे मरवा ती है।

लेखक : शुभम शर्मा