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केर पर्व की पूजा और विशेषता - ढाई दिन का पर्व - Sabguru News
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केर पर्व की पूजा और विशेषता – ढाई दिन का पर्व

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केर पर्व की पूजा और विशेषता – ढाई दिन का पर्व
ker ki puja kese kare
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भारत के पूर्वोत्तर में त्रिपुरा नामक राज्य है। जहां की अधिकांश आबादी त्रिपुरी जनजाति की है। आप जानते ही हैं कि पूर्वोत्तर के आठ सूबों में रहने वाली आदिवासी और वनवासी जनजातियां है और उनके अपने-अपने तीज-त्यौहार हैं। त्रिपुरा में रहने वाली हालम आदिवासी जनजाति बड़े धूमधाम से केर महोत्सव मनाते हैं। इस पर्व पर हालत जनजाति के स्त्री-पुरूष साथ मिलकर नृत्य करते हैं। लकड़ियों के ढेर में आग जला कर उसके चारों ओर घुम-घुमकर नाचते और लोकगीत गाकर मनोरंजन करते हैं। इस दौरान किसी को भी चप्पल-जूते पहनने की इजाजत नहीं होती।

केर यानि एक निश्चित सीमा रेखा के अंदर “वास्तु देवता” की पूजा करना। ये पर्व खार्ची महोत्सव के दो हफ्ते बाद आता है। केर महोत्सव के प्रतीक के रूप में मोटे-से बांस या बंबू को सुंदर सा सजाया जाता है। आज ये माना जाता है कि हालम जनजाति के पूर्वज जनकल्याण और साम्राज्य की सलामती के लिए केर का त्यौहार मनाते थे।

केर त्यौहार एक निश्चित सीमा के अंदर मनाया जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि जिस जगह स्त्री-पुरूष नाचेंगे उस जगह की सीमा तय कर दी जाती है। किसी को भी इस सीमा रेखा से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती। ठीक वैसे ही जैसे लक्ष्मण ने कुटिया के बाहर एक अर्धव्यास रेखा खिंचकर सीता को उस रेखा से बाहर निकलने की मनाही की थी।

ढाई दिन चलने वाले इस पर्व का मुख्य आधार ये है कि हमें एक सीमा में रहकर अपने आराध्य की पूजा अर्चना करनी चाहिए। आगामी 23 जुलाई को त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में केर महोत्सव धूमधाम से मनाया जायेगा।