भगवान शिव की कहानी | कहते हैं कि भगवान शिव कण-कण मे संसार में विघमान हैं। यही कारण है कि भगवान शिव की पूजा भारत में ही नहीं वरन् देश-विदेश में में भी होती है। सावन के महीने को भगवान शिव की आराधना हेतु पावन माना गया है। सावन के महीने में शिवलिंग की पूजा अर्चना विषेश रूप में की जाती है। देशों और विदेशों में भक्तों की अन्नय श्रद्धा और भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। सावन के महीने में शिवलिंग पर जल, बेलपत्र और दुध चढ़ाकर पूजा अर्चना की जाती है। और कांवरियों के द्वारा भोले शंकर को प्रसन्न करने के लिए जल स्त्रोतों से जल भरकर कर जल चढ़ाया जाता है।
झारखंड में बाबा वैद्यनाथ धाम में लाखों की संख्या में भक्त जल चढ़ाते हैं। बाबा वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मनोकामना लिंग कहा जाता है। फागुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन श्रृष्टि का प्रारंभ हुआ था। शिव का विवाह पार्वतीजी के साथ हुआ था। साल में होने वाले 12 शिवरात्रियों में महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
महाशिवरात्रि हमारे देश भारत के सबसे बड़े और पवित्र उत्सव में से एक है। कहा जाता है कि महाशिवरात्रि साल की सबसे अंधेरी रात होती है। भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र फूल आदि चढ़ाकर यह उत्सव भारत में मनाया जाता है। शास्त्रों में शिव को देवाधिदेव और आदिगुरु गुरु कहा गया है। भगवान शंकर को जल्दी प्रसन्न होने वाला देव कहा गया है। और मनोकामना को पूर्ण करने वाला भी कहा गया है।
भगवान शिव भक्तों की थोड़ी सी आराधना और पूजा-अर्चना से प्रसन्न हो जाते है।और उनका बेल पत्र बहुत प्रिय है। धार्मिक मान्यता है कि जिस घर में बेलपत्र का वृक्ष लगा होता है। उस घर में विशेष रूप से शिव की कृपा बनी रहती है और सुख-शांति बनी रहती है। धार्मिक मान्यता यह भी है कि सोमवार को बेलपत्र चढ़ाने से शिव की विशेष अनुकंपा बनी रहती है।
सनातन धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म माना जाता है। और ब्रम्हा विष्णु महेश को सनातन धर्म देव कहा गया है। शिव की पूजा भी कही गई है। सनातन का अर्थ होता है कभी नहीं खत्म होने वाला शाश्वत जो हमेशा बना रहने वाला है जिसका कभी अंत नहीं होगा वही सनातन धर्म है । इस तरह शिव जी का भी कभी अंत नहीं होगा। उन्हें ही प्रकृति का पालनहार और सूत्रधार माना गया है। भगवान शिव प्रकृति के कण-कण मे संसार में विघमान हैं। शिव का विवाह पार्वतीजी के साथ हुआ था।
शास्त्रों में शिव को देवाधिदेव और आदिगुरु गुरु कहा गया है। भगवान शंकर को जल्दी प्रसन्न होने वाला देव कहा गया है और मनोकामना को पूर्ण करने वाला भी कहा गया है। धार्मिक मान्यता यह भी है कि सोमवार को बेलपत्र चढ़ाने से शिव की विशेष अनुकंपा बनी रहती है। सनातन धर्म विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म माना जाता है। और ब्रम्हा, विष्णु महेश को सनातन धर्म देव कहा गया है। विश्व के हर कोने में जगतव्यापी भगवान शंकर का मंदिर प्रसिद्ध है। जिनके साथ कई रोचक कथाएं भी जुड़ी हुई है।
ऐसा ही मंदिर बिहार के मधुबनी जिला के भवानीपुर गांव में स्थित है। जिसे उगना महादेव या उग्र नाथ महादेव मंदिर कहा जाता है। ऐसी धार्मिक मानता है कि इस मंदिर में भगवान शिव ने स्वयं विद्यापति के यहां नौकरी की थी। उनका नौकर व सेवक बनकर उनकी सेवा की थी। पौराणिक कथा के अनुसार सन 1352 ईस्वी में जन्मे महाकवि विद्यापति भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और उन्होंने शिव पर अनेक गीतों की रचना की।
धार्मिक मान्यता है पौराणिक कथा के अनुसार भगवान भोलेनाथ विद्यापति की भक्ति से बहुत खुश थे। उनकी रचनाओं से बहुत खुश थे इसलिए विद्यापति के यहां नौकर रहने की इच्छा करते हुए उनके यहां नौकरी मांगने गए। भगवान भोलेनाथ कवि विद्यापति के यहां एक साधारण व्यक्ति के रूप में गए और नौकरी की इच्छा जाहिर की। कवि विद्यापति की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहने के कारण वह भगवान भोलेनाथ को नौकरी पर रखने से मना कर दिए उसके पश्चात।
भगवान शिव महाकवि विद्यापति को केवल दो वक्त की रोटी पर नौकरी पर रखने के लिए मना लिए और उनके यहां नौकर के रूप में रहकर विद्यापति की सेवा करने विद्यापति साहित्यकार कवि थे इसलिए वे राजा के दरबार में जा रहे थे । उस दिन उगना भी उनके साथ जा रहे थे रास्ते में विद्यापति को बहुत तेज प्यास लगी उनका गला सूखने लगा। विद्यापति ने इधर-उधर देखा आसपास जल का कोई स्रोत नहीं था। उगना से एक लोटा जल लाने के लिए बोले। शिवजी थोड़ी दूर जाकर अपनी जटा खोल कर और एक लोटा गंगाजल निकालकर लाकर विद्यापति पीने के लिए दिये।
विद्यापति जब जल पी रहे थे तो उन्हें जेल में गंगाजल का स्वाद लगा और उन्हें आश्चर्य लगा कि इस जंगल में गंगा जल कहां से आया। उसके पश्चात महाकवि विद्यापति को संदेह हो गया कि उगना कोई और नहीं भगवान शंकर हैं स्वयं। कवि विद्यापति ने उगना को भगवान शंकर कहकर संबोधित किया और अनन्य भक्ति भाव से उनके चरणों में गिर पड़े माफी मांगने लगे और भगवान से वास्तविक रूप के दर्शन देने को कहा। भगवान शंकर को प्रेम के बस में वशीभूत होकर विद्यापति को अपने वास्तविक रुप का दर्शन देना पड़ा और विद्यापति को अपना शिव रूप दिखाकर भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो गए।
इस प्रकार अनेक पौराणिक कथाएं हैं। जिसमें भगवान शिव के रूपों का वर्णन किया गया है। भक्त के बस में है भगवान अक्षरसह: सही वाक्य सत्य है कि यदि प्रेम से समर्पण से पूजा की जाए तो भक्तों के यहां भगवान नौकर तक के रूप में रहते हैं। इससे हमें यही शिक्षा मिलती है कि भगवान सिर्फ भाव के भूखे होते हैं उन्हें दिखावा से प्रेम नहीं है । भगवान भोलेनाथ देवाधिदेव देव हैं ।वह अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं । उन्हें जल, गंगाजल, एवं बेलपत्र चढ़ाने से मनोवांछित मनोकामना पूर्ण होती है। रुद्राभिषेक करने से भी भगवान भक्तों को मनोवांछित फल देते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही सृष्टि की शुरुआत हुई थी ।भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करने वाले देवाधिदेव महादेव हैं। सावन के शुभ महीने में भगवान शिव सभी भक्तों को दर्शन देकर मनोवांछित फल प्रदान करें।