दारचेन | अगले साल से कैलास मानसरोवर आने वाले यात्रियों के लिए तिब्बत का प्रशासन कैलास पर्वत के परिक्रमा मार्ग में ऑक्सीजन बार लगाने की तैयारी कर रहा है और यात्रा के आधारशिविर दारचेन और भारत एवं नेपाल की सीमा के समीप तकलाकोट या पुरांग में चिकित्सा सुविधा भी शुरू करेगा।
भारत से हर साल विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित यात्रा में करीब डेढ़ हजार यात्री भगवान शंकर के धाम आते हैं जबकि नेपाल के निजी टूर ऑपरेटरों के माध्यम से ल्हासा या हिल्सा सिमीकोट के रास्ते भी हजारों यात्री आते हैं। अधिकांश यात्री मैदानी इलाकों के होते हैं और समुद्रतल से करीब 15 हजार फुट की ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी के कारण कई लोग बीमार भी पड़ जाते हैं।
कैलास मानसरोवर की यात्रा में यात्री सुविधाओं के विस्तार का जायजा लेने आये भारतीय पत्रकारों के एक प्रतिनिधिमंडल से बातचीत में तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र में अली प्रीफैक्चर के विदेश विभाग के महानिदेशक आवांग ने कहा कि यात्रा के मार्ग में कुछ स्थानों पर ऑक्सीजन बार लगाने का फैसला हुआ है। इस समय वैज्ञानिक ढंग से इस बात का अध्ययन किया जा रहा है कि किस किस बिन्दु पर इन्हें लगाया जाये जिससे किसी भी यात्री को तत्काल ऑक्सीजन की सुविधा मिल सके। उन्होंने बताया कि कुछ होटलों में ऑक्सीजन बार की सुविधा उपलब्ध करायी जा चुकी है।
दारचेन एवं पुरांग में चिकित्सा सुविधा की भारतीय यात्रियों की मांग के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि चीन की केन्द्र सरकार एवं तिब्बत प्रशासन कैलास मानसरोवर क्षेत्र में करीब 380 करोड़ रुपए की लागत से समग्र विकास के क्रम में चार अतिथिगृहों का निर्माण तथा विभिन्न सुविधाओं का निर्माण करा रहा है और उसमें चिकित्सा सुविधाएं भी शामिल है। उन्होंने कहा कि बहुत जल्दी संभवत अगले साल से ऑक्सीजन बार और चिकित्सा सुविधा मिल सकेगी।
आवांग ने यह भी बताया कि दारचेन, डेरापुक, ज़ुटुरपुक और मानसरोवर के निकट चार अतिथिगृह बनाये गये हैं जिनमें आधुनिक शौचालय एवं रसोईघर भी है। उन्होंने परिक्रमा मार्ग में पहली रात के विश्राम के लिए तय डेरापुक तथा दूसरी रात्रि विश्राम के लिए निर्धारित आधारशिविर ज़ुटुरपुक में पत्रकारों को नवनिर्मित अतिथिगृह दिखाये जिनमें ये सुविधायें थीं। मानसरोवर झील में गत वर्ष स्नान करने पर लगायी गयी रोक को आंशिक रूप से हटाया गया है। यात्रियों को झील में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। उन्हें बाल्टी में पानी लेकर अलग से स्नान करने की छूट दे दी गयी है।
इस मौके पर विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित यात्रा में लिपुलेख दर्रे से होकर आये भारतीय यात्रियों के 13वें जत्थे और नाथू ला दर्रे से होकर आये नौवें जत्थे के यात्रियों से भी पत्रकारों की भेंट हुई। तकरीबन हर यात्री यात्रा के इंतजामों और क्षेत्र में चीन के प्रशासन द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों से संतुष्ट नज़र आया।
चीनी अधिकारी भारतीय पत्रकारों के दल को शनिवार को पुरांग या तकलाकोट से लिपुलेख दर्रे तक ले गये जहां लिपुलेख दर्रे तक सड़क निर्माण का काम तेजी से चल रहा था। इस मौके पर भारतीय यात्रियों के 12वें जत्थे के 42 यात्रियों ने चीन की सीमा से भारत की सीमा में वापसी की जबकि 14वें जत्थे में आये 58 यात्रियों ने चीन की सीमा में प्रवेश किया। इस मौके पर सीमा पर भारत तिब्बत सीमा पुलिस के अधिकारी भी मौजूद थे।
ल्हासा में चीन की विदेश सेवा के अधिकारी एवं तिब्बत स्वायत्तशासी प्रशासन के विदेश विभाग के उप महानिदेशक सुन शिआओबो ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि भारत के साथ रिश्ते चीनी कूटनीति में प्राथमिकता में है और तिब्बत का भारत के साथ संस्कृति एवं धर्म के आदान प्रदान का बहुत लंबा इतिहास रहा है। पहले भी यात्रा पर आ चुके यात्रियों ने पत्रकारों को बताया कि चीन की ओर उन्हें तीन किलोमीटर जा कर सड़क मिलती थी।
सुन शिआओबो ने कहा, “कैलास मानसरोवर यात्रा दोनों देशों के बीच आदान प्रदान के सिलसिले का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है। हम भारतीयों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने का महत्व समझते हैं। हम इस नीति को बनाये रखेंगे और तिब्बत आने वाले भारतीयों को घर जैसा अहसास कराने के लिए हम जो कुछ भी कर सकते हैं, अवश्य करेंगे।”
उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सरकारें खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस दिशा में ध्यान दे रहे हैं। बहुत सारे कदमों के क्रियान्वयन की प्रतीक्षा है। हमें विश्वास है कि दोनों सरकारों के प्रयासों से भविष्य बेहतर होगा।