कोलकाता। माहेश्वरी पुस्तकालय ने हिन्दी दिवस का पालन करते हुए, माहेश्वरी सभा सभागार में कोलकाता के वरिष्ठ जनवादी लेखक, आलोचक, रचनाकार, सम्पादक, अरुण माहेश्वरी को हिन्दी सेवी सम्मान से सम्मानित किया।
समारोह अध्यक्ष विश्वम्भर नेवर ने उत्तरीय पहनाकर, सभा उपमंत्री, अशोक चाण्डक ने श्रीफल भेंट कर, गोपाल दास डागा ने स्मृति-चिन्ह के रूप में कलाकृति प्रदान कर और पुस्तकालय के उपाध्यक्ष, राधेश्याम झंवर ने सम्मान-पत्र सौंप कर अरुण माहेश्वरी का हिन्दी सेवी के रूप में सम्मान किया।
इस अवसर पर अरुण माहेश्वरी की सहधर्मिणी सरला माहेश्वरी के प्रतिनिधि काव्य संकलन, ज़िन्दग़ी का पाठ का लोकार्पण परचम के संस्थापक मुकुंद राठी ने किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में विचार व्यक्त करते हुए रंगकर्मी कवि महेश जायसवाल ने कहा कि माहेश्वरी पुस्तकालय ने अरुण माहेश्वरी को सम्मानित कर, घर का जोगी जोगड़ा इस कहावत को गलत सिद्ध किया है।
फेसबुक की इबारतें पुस्तक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक पुस्तक, अरुण माहेश्वरी के कृती व्यक्तित्व को, उनके विचारों को सम्पूर्णता में प्रकाशित कर रही है। इससे अरुणजी का पूरा परिचय मिलता है।
कथाकार, आलोचक परशुराम ने मिथक के सन्दर्भ में अरुण माहेश्वरी के लेखन को रेखांकित करते हुए, उनकी रचनाओं के माध्यम से उनके विविध आयामों की चर्चा की और कहा कि हिन्दी सेवी सम्मान के साथ ही हिन्दी दिवस मनाया जाना चाहिए।
वयोवृद्ध आलोचक विमल वर्मा ने अरुण माहेश्वरी के साथ अपने सम्पर्क-संवाद की चर्चा करते हुए, उनकी लेखकीय यात्रा के विकास के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखी। अपने पारिवारिक स्तर पर माहेश्वरी परिवार के सम्पर्कों की बात बताते हुए उन्होंने अरुण-सरला के विवाह प्रसंग से जुड़ी घटनाएं साझा कीं।
संचालन करते हुए माहेश्वरी पुस्तकालय के मंत्री संजय बिन्नाणी ने इस अवसर पर कवि हरीश भादाणी, शंकर माहेश्वरी, एस.नारायण और ग्रुप थियेटर के सम्पादक-प्रकाशक रमण माहेश्वरी को याद किया। सबका स्वागत, पुस्तकालय के उपाध्यक्ष, राधेश्याम झंवर ने किया।
इस अवसर पर संजय उपाध्याय, शांतिलाल जैन, लहक के सम्पादक, निर्भय देवयांश, बड़ाबाजार संवाद के सम्पादक, शिव शारडा, सभामंत्री पुरुषोत्तम दास मूंधड़ा, उपसभापति किशनलाल सोनी सहित गण्यमान्य जन समारोह के साक्षी बने।
समारोह को सफल बनाने में जयन्त डागा, डा. सरला बिन्नाणी, अशोक लढ्ढा, महेश दम्माणी, विजय बागड़ी, शिव बिन्नाणी, विजय दम्माणी, सुनील बागड़ी, गोपाल डागा आदि सक्रिय रहे।