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अजमेर का गुजराती समाज सदियों से खेलता आ रहा है 'ताली गरबा रास' - Sabguru News
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अजमेर का गुजराती समाज सदियों से खेलता आ रहा है ‘ताली गरबा रास’

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अजमेर का गुजराती समाज सदियों से खेलता आ रहा है ‘ताली गरबा रास’

अजमेर। यूं तो नवरात्र के मौके पर देशभर में मां दुर्गा की आराधना में गरबा रास और डांडिया की धूम रहती है। समय के साथ डीजे की गूंज, आधुनिक वाद्ययंत्र भी इसका अभिन्न अंग बन गए। इस सबसे इतर गुजरात संस्कृति में गरबा रास अब भी परंपरागत तरीके से महफूज है।

अजमेर का गुजराती समाज सदियों से नवरात्र के दौरान परंपरागत गरबा रास करता रहा है। नवरात्र आरंभ के समय गुजराती समाज के लोग तांबे के कलश में माता की ज्योत की स्थापना करते हैं तथा नौ दिन तक माता के भजन गाते हुए गरबा रास खेलते हैं।


अजमेर शहर में गुजराती समाज के करीब 60 परिवार निवास करते हैं जो गुजराती संस्कृति के वाहक बने हुए हैं। गुजराती समाज के अध्यक्ष यशवंत भाई सोनीजी, सचिव नितिन भाई मेहता, सह सचिव राजेश अंबानी ने बताया किे अजमेर में गुजराती समाज की स्थापना सन 1925 में हुई थी तब से गरबा रास की परंपरा बरकरार है। गरबा रास में सिर्फ गुजराती समाज के लोग भाग लेते हैं।

अजमेर में गुजराती समाज के इतिहास का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि अजमेर में रेलवे मंडल कार्यालय होने के कारण गुजराती भी नौकरी के दौरान यहां आए और फिर परिवार समेत इसी शहर में बस गए। वर्ष 1925 में श्री गुजराती महामंडल अजमेर की स्थापना की गई। साल 1935 में नवरात्रि पर पहली बार गरबा रास की शुरुआत की गई। तब से लेकर आज तक गुजराती परंपरा के अनुसार हाथ ताली गरबा रास खेला जा रहा है।

बदलते समय के साथ अब गरबा रास के साथ डांडिया खेलने का चलन भी इसमें शामिल हो गया लेकिन गुजराती समाज परंपरागत गरबा रास को मूल रूप में संजोए हुए है। नवरात्र के पहले दिन तांबे के कलश में माता की जोत जलाकर स्थापित की जाती है। उसी कलश के चारों तरफ घूम कर गरबा रास किया जाता है।

उन्होंने कहा कि पूर्व में जब समाज के लोग संख्या में थे तब हाथी भाटा स्थित गुजराती गेस्ट हाउस में गरबा रास का आयोजन किया जाता था। समाज के लोगों की संख्या बढ़ने के बाद कचहरी रोड स्थित गुजराती स्कूल परिसर के प्रांगण में नवरात्र महोत्सव का आयोजन होता है।

अजमेर शहर में गुजराती समाज तीन धडों में बंटा है। एक पक्ष मदार गेट स्थित कस्तूरबा अस्पताल, दूसरा दौराई तथा तीसरा गुजराती स्कूल में गरबा रास का आयोजन करता है। भले ही धडे तीन हों लेकिन गरबा रास की परंपरा समान है।


इस परंपरा का निर्वहन करते समय समाज की एकजुटता नजर आती है। गुजराती समाज की महिलाएं ड्रेस कोड में गरबा खेलती है जिसे चानिया चौली कहा जाता है। नवरात्र के नौ दिन तक माता रानी की आराधना के लिए समूचा गुजराती समाज उत्साहित रहता है। नौ दिन तक गरबा रास और प्रसाद वितरण की परंपरा कायम है।

शरद पूर्णिमा पर विशेष आयोजन होता है तथा अष्टमी पर गरबा रास परवान पर होता है। इस दिन गुजराती परिवारों के सभी सदस्य धूमधाम से गरबा में शिरकत करते हैं। रावण दहन के पूर्व कलश विसर्जित करता है। विसर्जन प्रतिकात्मक होता है। कलश का उसके मूल स्थान से खिसकाकर अन्य स्थान पर रख देना विसर्जन माना जाता है।