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शरद पूर्णिमा पर आसमान से धरती पर बरसता है अमृत, चांदनी उत्सव में खीर खाने की रही है सदियों पुरानी परंपरा - Sabguru News
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शरद पूर्णिमा पर आसमान से धरती पर बरसता है अमृत, चांदनी उत्सव में खीर खाने की रही है सदियों पुरानी परंपरा

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शरद पूर्णिमा पर आसमान से धरती पर बरसता है अमृत, चांदनी उत्सव में खीर खाने की रही है सदियों पुरानी परंपरा

आज शरद पूर्णिमा है। इस रात चंद्रमा अपने पूरे यौवन पर रहता है, चांदनी पूरी रात उत्सव करती है। आसमान से बरसते अमृत के बीच हमारे देश में खीर खाने की सदियों पुरानी परंपरा रही है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन से शीत ऋतु की शुरुआत भी होती है।

शरद पूर्णिमा का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसे कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पूर्णिमा अन्य पूर्णिमा की तुलना में काफी लोकप्रिय है। मान्यता है कि यही वो दिन है जब चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत की वर्षा करता है। कहा जाता है कि श्री हरि विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने 16 कलाओं के साथ जन्म लिया था, जबकि भगवान राम के पास 12 कलाएं थीं।

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी और विष्णु की पूजा का विधान है। साथ ही शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखा जाता है। फिर 12 बजे के बाद उसका प्रसाद ग्रहण किया जाता है। कहा जाता है कि इस खीर में अमृत होता है और यह कई रोगों को दूर करने की शक्ति रखती है। शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण के मंदिराें गर्भगृह में शरद का खाट सजाया जाता है। खाट पर चौसर और शतरंज की झांकी भी सजाई जाती है। चंद्रमा की शीतल चांदनी में रखी खीर का भोग भी ठाकुरजी को अर्पण किया जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी से गोपियां खिंची चली आईं थी

श्रीमद्भगवद्गीता के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने ऐसी बांसुरी बजाई कि उसकी जादुई ध्वनि से सम्मोहित होकर वृंदावन की गोपियां उनकी ओर खिंची चली आईं। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण ने उस रात हर गोपी के लिए एक कृष्ण बनाया। पूरी रात कृष्ण गोपियों के साथ नाचते रहे, जिसे ‘महारास’ कहा जाता है। मान्यता है कि कृष्ण ने अपनी शक्ति के बल पर उस रात को भगवान ब्रह्म की एक रात जितना लंबा कर दिया। ब्रह्मा की एक रात का मतलब मनुष्य की करोड़ों रातों के बराबर होता है।

इस रात जागने वाले व्यक्ति को मां लक्ष्मी उपहार भी देती हैं

शरद पूर्णिमा को ‘कोजागर पूर्णिमा’ कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन धन की देवी लक्ष्मी रात के समय आकाश में विचरण करतीं हैं । कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति शरद पूर्णिमा के दिन रात में जगा होता है मां लक्ष्मी उन्हें उपहार देती हैं। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इस वजह से देश के कई हिस्सों में इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिसे ‘कोजागरी लक्ष्मी पूजा’ के नाम से जाना जाता है।

शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं

शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जो विवाहित स्त्रियां इसका व्रत करती हैं उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। जो माताएं इस व्रत को रखती हैं उनके बच्चे दीर्घायु होते हैं। शरद पूर्णिमा का चमकीला चांद और साफ आसमान मानसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधिय गुण मौजूद रहते हैं जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है।

शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है

शरद पूर्णिमा के दिन खीर का विशेष महत्व है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं ये युक्त होकर रात 12 बजे धरती पर अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है और फिर उसका प्रसाद वितरण किया जाता है। इस खीर को रात 12 बजे के बाद खाया जाता है।

शंभूनाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार