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दुनिया का एक मात्र मंदिर जहां महिला पुजारी ही करती हैं पूजा - Sabguru News
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दुनिया का एक मात्र मंदिर जहां महिला पुजारी ही करती हैं पूजा

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दुनिया का एक मात्र मंदिर जहां महिला पुजारी ही करती हैं पूजा
The only temple in the world where only women priests worship
The only temple in the world where only women priests worship
The only temple in the world where only women priests worship

जैसलमेर राजस्थान में जैसलमेर के स्थानीय लोक देवता क्षेत्रपाल (खेतपाल) का मंदिर अपनी अनूठी संस्कृति और परम्पराओं के जाना जाने वाला एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां महिला पुजारी ही पूजा करती हैं। यह मंदिर अनूठा और सांप्रदायिक सद्भाव की मिशाल है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि यहां पूजा के लिये महिला पुरुष को जोड़े में आना जरूरी है। दूसरा, इस मंदिर की पूजा अर्चना और अन्य रस्में महिला पुजारी ही करती हैं, जो परम्परागत रूप से माली समाज की होती हैं।

करीब एक हजार वर्ष पुराना यह मंदिर जैसलमेर शहर से करीब छह किलोमीटर दूर बड़ाबाग में स्थित है। देश के हर हिस्से से लोग यहां पूजा करने के लिए आते हैं। मंदिर पूजा के लिए श्रद्धालु जोड़े में ही आते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार यह क्षेत्रपाल और भैरव का मंदिर है, जो उनके खेत, क्षेत्र और इलाके की रक्षा करते हैं। प्रचलित मान्यता के अनुसार यहां पुराने समय में सिंध से सात बहनें यहां आकर बसी थीं, जो देवियों के रूप में जैसलमेर के विभिन्न इलाकों में विराजित हैं। खेतपाल भैरव उन्हीं के भाई माने जाते हैं।

नवविवाहित जोड़े शादी के तुरंत बाद यहां पूजा के लिए पहुंचते हैं। यहां वर वधु के बीच बांधा जाने वाले वाला विवाह बंधन सूत्र जिसे स्थानीय भाषा में कोकण डोरा कहा जाता है, इसी मंदिर में आकर खोला जाता है। जो लोग शादी के बाद यहां नहीं आ सकते, वे पूजा के लिए एक नारियल अलग रख देते हैं, जिसे बाद में भैरव को समर्पित कर दिया जाता है। जहां स्थानीय वाशिंदे विवाह सूत्र बंधन खोलने आते हैं। इस मंदिर में अब तक लाखों वर वधु धोक देकर कोंकण डोरा खोल चुके हैं।

इस मंदिर की पूजा परम्परागत रूप से माली समाज की महिलाएं करती हैं। दुल्हा दुल्हन से विधिवत पूजा पाठ महिला पुजारी कराती है। पूजा पाठ के बाद नव दम्पति के विवाह सूत्र बंधन क्षेत्रपाल को मान कर खोले जाते हैं, ताकि क्षेत्रपाल दादे की मेहर ताउम्र दूल्हा दुल्हन पर बनी रहे। जैसलमेर राज्य की स्थापना के साथ यह परंपरा शुरू हुई थी जो आज भी निर्विवाद रूप से प्रचलित है। इस मंदिर में जैसलमेर के हर जाति धर्म के लोग धोक देते हैं।

क्षेत्रपाल को श्रध्दालु इच्छानुसार सवा किलो से ले कर सवा मन तक का चूरमा का भोग देते हैं। जैसलमेर में हर जाति, धर्म में होने वाली शादी के बाद तीसरे या चौथे दिन नव विवाहित जोड़े को कोंकण डोरे खोलने के लिये इस मंदिर में परिजनों के साथ आना होता है। इसके बाद ही नव विवाहितों का विधिवत वैवाहिक जीवन का सफर शुरू होता है। मंदिर में सिंधी मुस्लिम भी पूजापाठ के लिए नियमित आते हैं। स्थानीय मुस्लिम भी निकाह के बाद की परम्पराएं इसी मंदिर में पूर्ण करते हैं।

इस मंदिर में फिलहाल माली समाज की पचास वर्षीय महिला किशनी देवी पूजा पाठ का जिम्मा संभाल रही हैं। किशनी देवी ने बताया की क्षेत्रपाल मंदिर बड़ा चमत्कारिक और इच्छा पूरी करने वाला है। जैसलमेर में होने वाले हर विवाह के कोंकण डोरा क्षेत्रपाल को साक्षी मानकर ही खोले जाते हैं। उन्होंने गत तीन वर्षों में सैंकड़ों नव दम्पतियों के विवाह बंधन सूत्र विधिवत पूजा पाठ करने के बाद वैवाहिक कोंकण डोरा खुलवाए हैं। उन्होंने बताया कि जैसलमेर के निवासी दुनिया में कहीं भी रहते हों, वे भी कोंकण डोरा खोलने क्षेत्रपाल मंदिर जरूर आते हैं। क्षेत्रपाल को चूरमे का भोग चढ़ता है। किसी की मन्नत पूरी होने पर पशु बलि भी दी जाती है। पहले मंदिर परिसर में बलि दी जाती थी, लेकिन अब परिसर में इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

उन्होंने बताया की मंदिर की पूजा बड़ा बाग़ के स्थानीय माली परिवार ही करते हैं। इसके लिए निविदा जारी होती हैं जो ज्यादा विकास के लिए बोली लगाते हैं, उसे ही क्षेत्रपाल की पूजा का अधिकार मिलता है। उन्हें दो लाख सत्रह हज़ार में निविदा तीन साल पूर्व मिली थी। मंदिर में पूजा परम्परागत रूप से महिलाए ही करती आई हैं। मंदिर में जो भी चढ़ावा आता है उससे उनके परिवार का भरण पोषण होता है।