अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक चली मैराथन सुनवाई आखिरकार 16 अक्टूबर बुधवार को खत्म हो गई । सुनवाई के आखिरी दिन वकीलों की गर्मागर्मी के बीच पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है । चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में सुनवाई पूरी होने से अब गोगोई के रिटायर होने से पहले ही फैसला आना तय हो गया है । यहां हम आपको बताना चाहेंगे कि यह संविधान नियम भी है अगर चीफ जस्टिस किसी केस की सुनवाई पूरी कर चुके होते हैं तो फैसला उन्हें ही सुनाना पड़ता है । गौरतलब है कि गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं ।
‘अयोध्या किसकी होगी’ इसका फाइनल फैसला 15 नवंबर के आसपास आ सकता है । हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से किसी तारीख का एलान नहीं किया है । हम आपको यहां बता रहे हैं 16 अक्टूबर यानी सुनवाई के 40वें दिन सर्वोच्च अदालत में क्या-क्या हुआ । अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 40 दिन तक विस्तार से सभी पक्षों को सुना । यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई है । सबसे लंबी सुनवाई का रिकॉर्ड 1973 के केशवानंद भारती केस का है, जिसमें 68 दिनों तक सुनवाई चली थी । अयोध्या विवाद सुनवाई के 40वें दिन चीफ जस्टिस गोगोई ने कहा कि अब बहुत हो गया, इस मामले में सुनवाई आज ही पूरी होगी । 16 अक्टूबर सुबह करीब 10:35 पर जब चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच बैठी, तो यह साफ कर दिया कि आज शाम पांच बजे तक सुनवाई हर हाल में पूरी कर ली जाएगी । मामले में अलग से अर्जी दाखिल करने वाले कुछ पक्षकारों को जिरह के लिए वक्त देने से मना करते हुए चीफ जस्टिस ने कहा बहुत हो चुका, इस मामले पर अब और सुनवाई नहीं हो सकती ।
हम समझते हैं कि सभी पक्ष अपनी बातें कह चुके हैं । आज शाम जब हम दिन की कार्यवाही खत्म करके ही उठेंगे । अयोध्या विवाद की सुनवाई के आखिरी दिन कई पक्षों ने दलील सुने जाने के लिए और अधिक समय की मांग की, जिसे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने ठुकरा दिया । गोगोई ने कहा कि पिछले 39 दिनों में सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपने-अपने पक्ष रखे हैं । इसके बाद सभी पक्षकारों ने तेजी से अपनी बात रखनी शुरू कर दी । रामलला विराजमान पक्ष के सी एस वैद्यनाथन ने मुस्लिम पक्ष की बातों का जवाब देते हुए कहा, “पैगंबर मोहम्मद ने एक बार कहा था कि किसी को मस्जिद उसी जमीन पर बनानी चाहिए जिसका वह मालिक हो ।
मुस्लिम पक्ष अयोध्या की जमीन पर मालिकाना हक साबित नहीं कर पाया है । कुछ समय नमाज पढ़े जाने को आधार बनाकर जमीन का मालिक बनने की कोशिश कर रहा है । हिंदू पक्ष ने दावा किया कि यहां रामलला का जन्म हुआ था इस कारण इस जमीन पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए । वहीं मुस्लिम पक्ष यहां मस्जिद बनाने की मांग कर रहा है । मध्यस्थता पैनल ने एक सेटलमेंट रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल की है । मालूम हो कि । साल 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में 2.77 एकड़ भूमि को तीन पक्षों (सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान) में बांटने का आदेश दिया था । इसी फैसले के खिलाफ सभी पक्ष सुप्रीम कोर्ट चले गए । सुप्रीम कोर्ट इस मसले पर अपना फैसला 15 नवंबर के आसपास सुना सकती है ।
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील और अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष के पैरोकार राजीव धवन ने नक्शा फाड़ा
विकास सिंह ने पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की किताब ‘अयोध्या रिविजिटेड’ का हवाला देना चाहा । मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन में इसका यह कहते हुए विरोध किया कि किताब कोर्ट के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है । इसके बाद विकास सिंह ने उसी किताब में छपे अयोध्या के एक नक्शे को कोर्ट में रखा । इस नक्शे को दूसरे दस्तावेजों से मिलाते हुए सिंह विवादित जगह पर ही भगवान राम का जन्म स्थान होने की दलील देना चाहते थे । लेकिन धवन ने उन्हें सौंपी गई नक्शे की कॉपी को फाड़ दिया ।
उन्होंने कहा कि नक्शा उसी किताब से लिया गया है जो रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं । पांच जजों की बेंच धवन को ऐसा करते हुए हैरानी से देखती रही । चीफ जस्टिस ने रंजन गोगोई ने तंज भरे लहजे में कहा इतने ही क्यों, आप और टुकड़े कर दीजिए । इसके बाद मामले में 1950 में याचिका दाखिल करने वाले पहले याचिकाकर्ता स्वर्गीय गोपाल सिंह विशारद के लिए रंजीत कुमार, महंत धर्मदास के लिए जयदीप गुप्ता जैसे वकीलों ने अपनी बातें रखीं । अखिल भारतीय हिंदू महासभा की तरफ से विकास सिंह जिरह के लिए खड़े हुए तो विवाद की स्थिति बन गई ।
हिंदू महासभा के वकील विकास सिंह ने कहा, मुस्लिम जमीन के मालिक नहीं
अयोध्या विवाद की सुप्रीम कोर्ट में 40वें दिन सुनवाई के दौरान विकास सिंह ने विवादित इमारत के बाहर 1858 में अंग्रेजों के रेलिंग बना देने का जिक्र किया । उन्होंने कहा, “तिरुपति के मंदिर में जब हम जाते हैं, तो एक तय सीमा से आगे बढ़ने की इजाजत नहीं होती । हम एक तय दूरी से ही भगवान बालाजी की पूजा करते हैं और लौट जाते हैं । उसी तरह से हिंदू रेलिंग के बाहर खड़े होकर जन्म स्थान की पूजा किया करते थे । इमारत के बनने या बाद में रेलिंग के बन जाने से उनकी आस्था पर कोई असर नहीं पड़ा था । विकास सिंह की जिरह के दौरान बीच-बीच में बोल रहे दूसरे वकीलों पर चीफ जस्टिस ने नाराजगी जताई । उन्होंने कहा सब का यही रवैया रहना है तो हम सुनवाई को पूरी हुई मान लेते हैं । हमें नहीं लगता कि सुनवाई की जरूरत है । जिसे जो कहना हो, लिख कर दें ।
हालांकि विकास सिंह ने जब कोर्ट से सुनवाई जारी रखने का आग्रह किया तो जज फिर से सुनवाई करने लगे । वहीं निर्मोही अखाड़े के तरफ से वकील सुशील कुमार जैन ने एक बार फिर वहां अखाड़े के सेवादार होने के दावे को दोहराया । उन्होंने यह भी कहा कि विवादित इमारत के बन जाने के बाद भी निर्मोही अखाड़ा लगातार वहां पूजा कर रहा था । वह जगह निर्मोही अखाड़े को ही दी जानी चाहिए । सुनवाई के अंत में मुस्लिम पक्ष के वकील धवन ने एक बार कहा कि एक बार बनी मस्ज़िद किसी को नहीं सौंपी जा सकती । उन्होंने ढांचा गिराए जाने से पहले की स्थिति बहाल किए जाने की भी मांग की ।
अयोध्या विवाद की सुप्रीम कोर्ट में 6 अगस्त से शुरू हुई थी सुनवाई
पांच जजों की बेंच इस मामले पर लगातार सुनवाई कर रही थी । चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने 6 अगस्त से इस मामले की सुनवाई शुरू की थी । बेंच में जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं । सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या मामले पर फैसला आने से पहले और दिवाली को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने शहर में धारा 144 लगा दी है ।
सुनवाई के दौरान मध्यस्थता रिपोर्ट पर नहीं हुई कोई चर्चा
मध्यस्थता पैनल की तरफ से एक रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी गई । इसके मुताबिक यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित ज़मीन के बदले कोई और जगह लेने को तैयार है । इसके बदले में वह चाहता है कि भविष्य में बाकी किसी मस्ज़िद को लेकर इस तरह की मांग न हो । मध्यस्थता समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला कर रहे थे, इसमें आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के संस्थापक श्री श्री रवि शंकर तथा वरिष्ठ अधिवक्ता और प्रख्यात मध्यस्थ श्रीराम पंचू शामिल हैं ।
अयोध्या से जुड़ा ये है विवाद, देश में पहली बार वर्ष 1813 में उठा था राम मंदिर का मुद्दा
वर्ष 1813 में पहली बार हिंदू संगठनों ने दावा किया था कि साल 1528 में बाबर ने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी, तब दोनों पक्षों में हिंसा भी हुई थी । 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित जगह पर तार की बाड़ बनवाई थी । 1885 में पहली बार महंत रघुबर दास ने ब्रिटिश अदालत में मंदिर बनाने की अनुमति मांगी थी । उसके बाद वर्ष 1934 में विवादित क्षेत्र में हिंसा हुई थी । पहली बार विवादित हिस्सा तोड़ा गया । 23 दिसंबर 1949 को हिंदुओं ने केंद्रीय स्थल पर रामलला की मूर्ति रखी और पूजा शुरू कर दी । हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं, जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहां रख दीं ।
इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया और वह कोर्ट चले गए । वर्ष 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत से रामलला की पूजा अर्चना की विशेष अनुमति मांगी थी । उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभभाई पंत से इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने को कहा। यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं के भड़कने के डर से इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई । हालांकि नायर के बारे में माना जाता है कि वह कट्टर हिंदू थे और मूर्तियां रखवाने में उनकी पत्नी थी ।
बाद में दिसंबर 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने और दिसंबर 1961 में उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया था । इस तरह आजाद भारत में या बड़ा मुद्दा बनना शुरू हो गया था । बाद में वर्ष 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने, रामजन्म स्थान को स्वतंत्र कराने और विशाल मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू कर दिया था, जगह-जगह देशभर में प्रदर्शन भी किए गए । भारतीय जनता पार्टी ने भी इस अयोध्या विवाद को हिंदू अस्मिता से जोड़ते हुए संघर्ष शुरू किया था ।
नाराज मुस्लिमों ने वर्ष 1986 में बाबरी एक्शन कमेटी गठित की
फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने साल 1986 में पूजा की इजाजत दी । रामलला के ताले दोबारा खोले गए इससे नाराज मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की । बाद में 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने ढांचा ढहा दिया था और अस्थाई राम मंदिर बनाया गया । इसके बाद पूरे देश में अराजकता जैसी स्थिति बन गई थी । अयोध्या विवाद को लेकर वर्ष 1992 में ही लिब्रहान आयोग गठित किया गया । वर्ष 2002 में अयोध्या विवाद की हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर हाईकोर्ट के 3 जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की मार्च से अगस्त 2003 में हाईकोर्ट के निर्देश पर पुरातत्व सर्वेक्षण ने खाेदाई की । पुरातत्व ने दावा किया था कि मस्जिद नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले थे ।
वर्ष 2011 में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादित क्षेत्र को रामलला विराजमान निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को बराबर तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया था । सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथ ने कहा था कि भगवान राम के जन्मस्थान पर संयुक्त कब्जा नहीं हो सकता क्योंकि जन्मस्थान स्वयं देवता हैं । उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि संयुक्त कब्जे से देवता का विभाजन होगा जो संभव नहीं है । फरवरी वर्ष 2011 में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई । बाद में मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच ने अयोध्या विवाद की सुनवाई शुरू की । अयोध्या विवाद की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017-19 तक मध्यस्थता की भी पहल की थी, जो विफल रही । आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त 2019 से अयोध्या विवाद की रोज सुनवाई शुरू की जो कि 40 दिनों तक चलती रही । 16 नवंबर काे अयोध्या मामले की मैराथन सुनवाई पूरी हुई । अब अयोध्या किसकी होगी पूरे देश को इसके फैसले का इंतजार है, जो कि संभवत: 15 नवंबर के आसपास आ सकता है ।
उत्तर प्रदेश में 30 नवंबर तक योगी सरकार ने सभी अफसरों की छुट्टियां रद की
अयोध्या के फैसले को देखते हुए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सभी पुलिस और प्रशासनिक अफसरों की छुट्टियां 30 नवंबर तक रद कर दी है । सभी अफसरों को मुख्यालय में रहने के निर्देश दिए गए हैं । अयोध्या में 10 दिसंबर तक धारा 144 लागू कर दी गई हैं । प्रदेश के डीजीपी ओम प्रकाश सिंह ने अयोध्या में 7 एएसपी, 20 सीअाे, 20 इंस्पेक्टर 70 सब इंस्पेक्टर और 500 सिपाही और भेजने के निर्देश दिए हैं । हालांकि अयोध्या में वैसे ही हर दिन कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रहती है । सुरक्षा के लिहाज से अयोध्या को तीन जोन में बांटा गया है रेड जोन, येलो जोन और ब्लू जोन । अयोध्या में दाखिल होने के सभी रास्तों, घाटों और सरयू नदी की निगरानी के लिए प्रशासन ने सैकड़ों सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं । अयोध्या में दाखिल होने वाले सभी प्रवेश द्वारों पर बैरिकेडिंग भी की गई है । यही नहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अयोध्या को लेकर हर रोज पुलिस प्रशासनिक अफसरों के साथ बैठक करने में जुट गए हैं ।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार