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श्रीमद् भागवत कथा : दृष्टिबाधित गोपियों संग कान्हां का महारास - Sabguru News
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श्रीमद् भागवत कथा : दृष्टिबाधित गोपियों संग कान्हां का महारास

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श्रीमद् भागवत कथा : दृष्टिबाधित गोपियों संग कान्हां का महारास

अजमेर। विश्वमित्र दृष्टिबाधित कन्या शिक्षण संस्थान एवं छात्रावास (लाडली घर) तथा सिद्धेश्वर महादेव मंदिर प्रबंध समिति की ओर से शास्त्री नगर स्थित भक्त प्रहलाद पार्क में श्रीमद् भागवत कथा के अनूठे आयोजन के पांच्रवे दिन मंगलवार को कथावाचक नीना शर्मा ने कान्हां द्वारा गोपियों के चीर हरण के प्रसंग की व्याख्या की।

उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण चिदानंदघन दिव्य शरीर हैं। गोपियां दिव्य जगत में भगवान की अंतरंग शक्तियां हैं। लीला इनके लिए भावभूमि है। मुरली के सुरीले सुर निकले तो गोपियां सब कुछ छोड़कर गोवर्धन के परसौली के हरे-भरे जंगल में दौड़ीं चली आईं। अपने आराध्य के सानिध्य में रसमयी रासक्रीड़ा करने लगीं। मगर, हर गोपी तो अपने प्रभु को सिर्फ और सिर्फ अपने सामीप्य ही चाहती थी।

श्रीमद भागवतजी के दशम स्कंध के 29 से 33वें अध्याय तक वर्णित रास पंचाध्यायी में प्रसंग आता है कि रास मंडल में श्रीकृष्ण गोपियों को दस श्लोक में वेद मर्यादा का उपदेश देते हैं। तो, गोपियां अपने प्रेम को परिभाषित करने के लिए ग्यारह श्लोक में श्रीकृष्ण की बात को खंडन कर रास प्रारम्भ करने का आग्रह करती हैं।

श्रीकृष्ण रास प्रारम्भ करते हैं। एक रूप में गोपियों की इच्छा पूर्ण न होते देख गोविंद ने गोपियों की गिनती के अनुसार ही अनेक रूप धारण किए और सभी गोपियों को अपने सामीप्य का अहसास कराया। महारास की यही खास बात है कि जितनी गोपियां, उतने कन्हैया के नृत्य करते हुए दर्शन होते हैं।

दृष्टिबाधित गोपियों संग कान्हां का महारास

लाडली घर की दृष्टिबाधित कन्याओं के कल्याणार्थ शास्त्री नगर के भक्त प्रहलाद पार्क में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान महारास प्रमुख आकर्षण रहा। दृष्टिबाधित गोपियों संग कान्हां के महारास का आनंद देखते ही मन रहा था। समूचा कथा पांडाल बृज मय हो गया। भगवान बांके बिहारी के जयकारों से आकाश गूंजायमान हो गया।

इस अवसर पर राष्ट्र संत कृष्णानंद गुरुदेव ने कहा कि ठाकुरजी के प्रेम को शब्दों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता, बस इसके अहसास को छूने का प्रयास किया जाता है। गोपियों के कृष्णमय हो जाने पर महारास में जीव के अंदर का संगीत गूंजता है। अगर भक्ति मेें प्रेम हो तो जीव और आत्मा का मिलन परमात्मा से हो जाता है। ​भक्तिमय भाव शुद्ध हो जाने से महारस में जीव को स्वयं के भीतर का ज्ञान हो जाता है। महारास प्रेम का उच्चतम और पवित्र शिखर है, जहां कई आत्माओं के एक दूसरे में समाहित होकर भी कामदेव विजय प्राप्त नहीं कर सके। महारास के दौरान भगवान श्रीकृष्ण की आभा ने तीनों लोकों को मुग्ध कर दिया था।