सबगुरु न्यूज। सदियों से आज तक भाग्य और कर्म के खेमे अलग-अलग रहे हैं। भाग्य अपना घोषणा पत्र जारी नहीं करता और कर्म हर तरह से संकल्प विकल्प तथा सभी तरह के दृष्टिकोणों को मद्देनज़र रखकर अपने मार्ग की ओर बढता है। वह हर तरह से मशक्कत करता हुआ अपने मकसद को सफ़ल करने के प्रयास करता है।
योग्यता के असले को लेकर कर्म युद्ध में संघर्ष करता है। कर्म युद्ध में सफल होगा या नहीं उसे कुछ भी पता नहीं होता है फिर वह साहसी बनकर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जुटा रहता है और अचानक घटनाक्रम उसके लक्ष्यों को रोक देते हैं और उस कर्म क्षेत्र में अदना सा व्यक्ति सफलता का ताज पहन लेता है। कर्म के घोषणा पत्र धरे रह जाते हैं और भाग्य अघोषित बनकर सफलता का ताज किसी ओर को पहना दिया जाता है।
पौराणिक काल का इतिहास ऐसी कहानियों से भरा हुआ है जहां देव और दानव भी यह नहीं जानते थे कि कब क्या घटित होगा, किसे कर्म के अखाडे में सफलता मिलेगी। कर्म से लिए गए हर वरदान भी अदृश्य भाग्य नाम की शक्ति ने धराशायी कर दिए। रामायण काल का इतिहास हो या महाभारत काल का। सभी में कर्म की प्रधानता को बल दिया और भाग्यवादी बनने से रोका तथा कर्म फल की चिंता से दूर रखा।
महाभारत के भीष्म पितामह की कथाएं बताती हैं कि उन्हें इच्छा मृत्यु वरदान मिला हुआ था ओर वे उस युग के महा योद्धा थे। युद्ध की भूमि को केवल ज़िन्दगी ओर मौत से लेना देना होता है, धर्म और अधर्म का वहां कोई स्थान नहीं होता है। जो युद्ध में जीत गया वही विजेता कहलाता है, अन्यथा दैत्यों की विजय कभी नहीं हो पातीं ना ही देवराज इन्द्र को बार बार हार का सामना करना पड़ता।
युद्ध की भूमि में कर्म के वीर भीष्म पितामह अपनी सेना को विजयी नहीं करा पाए और इच्छा मृत्यु वरदान के कारण वो मर नहीं पाए। वे इस युद्ध का परिणाम ही देखने के लिए जिन्दा रहे यह सब जमीनी हकीकत है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, महाभारत के महायुद्ध मे कर्म गुरू, ज्ञान गुरु और धर्म गुरू सभी कर्म करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए तथा अर्जुन के भी धराशायी होंने में कुछ भी नहीं बचा था। केवल जगत गुरू कृष्ण जी की कला थी कि उन्होंने अर्जुन को विजयी करवाया, केवल एक चमत्कारिक भाग्य विधाता बन कर।
इसलिए हे मानव, तू कर्म करने से पहले ही जीत या हार का सुख दुख मत कर क्योंकि कर्म के युद्ध में जिनके पास कुछ भी नहीं होता है उन्हें सब कुछ मिल जाता है और जिसके पास सब कुछ होता है वो भी लूट जाता है। अदृश्य शक्ति किसे भाग्य का ताज पहनाती है और किस कर्मवीर को परास्त कर देगी इसका अनुमान ही लगाया जा सकता है, भविष्यवाणी नहीं की जाती है। अनुमान रणनीति ओर भविष्यवाणी धरी रह जातीं हैं।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर