अजमेर। बचपन से जिन संस्कारों को मानव अपनी आदतों में ढाल लेता है वही संस्कार उसका स्वभाव बन जाते हैं। अच्छी आदतों को किशोरावस्था में ही अंगीकार कर लिया जाता है तो पूरा जीवन सफल और प्रभावी हो जाता है। जीवन में प्रोएक्टिव होना अर्थात पहल करना। जब हम अंतिम लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए कार्य करना सीखने लगते हैं तो कार्य की समझ, दूसरों के दृष्टिकोण का अनुभव तथा समूह में मिलकर कार्य करने जैसे गुण स्वमेव ही विकसित होने लगते है।
स्वामी विवेकानन्द ने इसी को मनुष्य में छिपे हुए देवत्व के प्रगटीकरण का मार्ग बताया है। उक्त विचार विवेकानन्द केन्द्र के जीवनव्रती कार्यकर्ता दीपक खैरे ने विवेकानन्द शिला स्मारक के 50 वें वर्ष के अवसर पर मयूर स्कूल में आयोजित विद्यार्थी संपर्क कार्यशाला के दौरान व्यक्त किए।
नगर प्रमुख अखिल शर्मा ने बताया कि विद्यालय के प्राचार्य अधिराज सिंह से भेंट कर विवेकानन्द केन्द्र के संस्थापक एकनाथ रानडे के जीवन एवं शिला स्मारक की विजयगाथा के बारे में भी बताया गया। विवेकानन्द केन्द्र के रविन्द्र जैन, कुसुम गौतम, बीना रानी, अंकुर प्रजापति, कुलदीप कुमावत तथा मयूर स्कूल से सिंधु चतुर्वेदी, रसल एन्थोनी, शीलू रामचंदानी तथा करूणा टण्डन का सहयोग रहा।