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Conflict in politics once again on electoral bond - Sabguru News
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‘चुनावी बॉन्‍ड’ पर एक बार फिर सियासत में घमासान

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‘चुनावी बॉन्‍ड’ पर एक बार फिर सियासत में घमासान
Conflict in politics once again on 'electoral bond'
Conflict in politics once again on 'electoral bond'
Conflict in politics once again on ‘electoral bond’

एक बार फिर राजनीतिक दलों के ‘चुनावी चंदे‘ को लेकर राजनीति में घमासान मचा हुआ है। संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस ने इसी मामले को लेकर भाजपा पर आरोप लगाए हैं। चुनावी बॉन्‍ड को औपचारिक भ्रष्टाचार का स्रोत बताते हुए कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने संसद में हंगामा किया।

भारतीय जनता पार्टी भी ने इसका पलटवार करते हुए कहा है कि विपक्षी दल इसे बेवजह का मुद्दा बना रहे हैं। आइए जानते हैं यह चुनावी फंडिंग या चुनावी चंदा क्या है। केंद्र सरकार ने देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में चुनावी बॉन्‍ड शुरू करने का एलान किया था।

संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस ने किया हंगामा

संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान कांग्रेस ने सदन में इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा उठाया। दोनों सदनों में कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे को उठाया। वहीं लोकसभा में मनीष तिवारी ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि चुनावी बॉन्ड जारी करने के कारण सरकारी भ्रष्टाचार को स्वीकृति दे दी गई है। मनीष तिवारी ने कहा कि 2017 से पहले इस देश में एक मूलभूत ढांचा था। उसके तहत जो धनी लोग हैं उनका भारत के सियासत में जो पैसे का हस्तक्षेप था उस पर नियंत्रण था।

लेकिन 1 फ़रवरी 2017 को सरकार ने जब यह प्रावधान किया कि अज्ञात इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाएं जिसके न तो दानकर्ता का पता है और न जितना पैसा दिया गया उसकी जानकारी है और न ही उसकी जानकारी है कि यह किसे दिया गया। उससे सरकारी भ्रष्टाचार पर अमलीजामा चढ़ाया गया है।

उन्होंने कहा कि “इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम सिर्फ चुनावों तक सीमित थी, लेकिन 2018 में एक आरटीआई में सामने आया कि सरकार ने इल्क्टोरल बॉन्ड को लेकर आरबीआई के विरोध को भी दरकिनार कर दिया गया, इस पर केंद्र सरकार जवाब दे। इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर कांग्रेसी सांसद शशि थरूर ने कहा कि इसके जरिए कारोबारी और अमीर लोग सत्ताधारी पार्टी को चंदा देकर राजनीतिक हस्तक्षेप करेंगे। उन्होंने कहा जब ये बॉन्ड पेश किए गए थे, तो हममें से कई लोगों ने गंभीर आपत्ति जताई थी।

इलेक्टोरल बॉन्ड बड़ा घोटाला: कांग्रेस

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा, “इलेक्टोरल बॉन्ड का 95 फ़ीसदी पैसा बीजेपी को गया, क्यों गया, ये क्यों हुआ। 2017 के बजट में इलेक्टोरल बॉन्ड पर जो रोक लगाई थी उसे ख़त्म कर दिया गया। बजट में यह रोक लगाई थी कि कोई भी कंपनी अपने लाभ के 15 फ़ीसदी से अधिक ज़्यादा पैसा नहीं लगा सकती। लेकिन अब उसे हटा लिया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को को इस पर जवाब देना होगा। वहीं कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड एक बहुत बड़ा घोटाला है, देश को लूटा जा रहा है। कांग्रेस को जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा कि यह मुद्दा इतिहास बन चुका है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस यह बेवजह मुद्दा उठा रही है।

केंद्र सरकार ने जारी किए थे इलेक्टोरल बॉन्ड

दरअसल भारत में राजनीतिक दलों को भले ही अपनी आय का ब्योरा सार्वजनिक करना होता है लेकिन उनकी फंडिंग को लेकर पारदर्शिता नहीं होती। बीते वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए थे जिनके ज़रिए उद्योग और कारोबारी और आम लोग अपनी पहचान बताए बिना चंदा दे सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को लेकर क्या कहा था

चुनावी बॉन्ड पर रोक नहीं लगेगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अंतरिम आदेश जारी किया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसे सभी दल, जिनको चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा मिला है वो सील कवर में चुनाव आयोग को ब्योरा देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी राजनीतिक दल चुनावी बॉन्ड के जरिये मिली रकम की जानकारी सील कवर में चुनाव आयोग के साथ साझा करें।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार