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ये सब देखकर आप भी कह उठते, ‘वाह! महेंद्र बाबू…’

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ये सब देखकर आप भी कह उठते, ‘वाह! महेंद्र बाबू…’
सिरोही में सभापति कार्यालय का उद्घाटन करते विधायक संयम लोढ़ा।
सिरोही में सभापति कार्यालय का उद्घाटन करते विधायक संयम लोढ़ा।

सबगुरु न्यूज-सिरोही।सिरोही नगर परिषद में सभापति कक्ष का कलेवर सोमवार को काफी बदला हुआ था। दीवारों पर नया रंग। नई तस्वीरें। गुलदस्तों से का डेकोरेशन। और इन सबसे इतर सभापति के बैठने के लिए नई आफिस चेयर और टेबल।

नव नियुक्त सभापति महेंद्र मेवाड़ा खुद नई नई कार से नगर परिषद पहुंचे। सबकुछ नया नया देखकर एक बार तो किसी की भी एशियन पेंट के उस विज्ञापन की पांच लाइन दोहराने की इच्छा हो जाये कि ‘वाह, महेंद्र बाबू!नई गाड़ी, नई टेबल नई कुर्सी।’
लाल कार, लाल शर्ट और लाल कार्पेट उनके शगुन अपशकुन की मान्यता की ओर इशारा कर रहे थे, लेकिन सबगुरु न्यूज के सवाल पर उन्होंने ये मान लिया कि जब भी नई जगह पर जाते हैं वहां पर कुछ नया करना भारतीय परंपरा रही है। ये बदलाव भी उसी के तहत है।
ये कहने से पहले नव नियुक्त सभापति ये भूल गए कि वो एक ऐसी जवाबदेही वाले पद पर आ गए हैं जिसका एक एक पैसा जनता की गाढ़ी कमाई के टेक्स का है। जिसे उनके शकुन अपशकुन की मान्यता केलिए बर्बाद नहीं किया जा सकता।
पुरानी कुर्सी टेबल बदहाल नहीं थी। इसके बावजूद जनधन की सिर्फ शकुन अपशकुन के लिए दुरुपयोग किसी सूरत में सराहा तो नहीं जा सकता। नव नियुक्त सभापति खुद एक व्यवसायी हैं। संभवतः उनके लिए बदलाव में खर्च हुआ पैसा हाथ का मैल हो लेकिन, आम जनता के लिए ये फिजूल खर्च संदेश है कि उन्होंने नेतृत्व कैसे हाथ में दिया है। इसी फिजूल खर्च से आजिज आकर इस कुर्सी पर बैठने वाले पुराने लोगों को बदला था, वर्ना नाम और सूरत तो उनके भी खराब नहीं थे।
पूजा पाठ और शकुन अपशकुन तो उनसे पूर्व के कार्यभार ग्रहण करने वाले सभापतियों ने भी कम नहीं किये होंगे, लेकिन उनके कर्म फल ने उन्हें कहाँ पहुंचा दिया ये किसी से छिपा नहीं है। बहरहाल, सत्ता बदलने के बाद जो एक बड़ा बदलाव और देखने को मिला व्व तस्वीरों का है।

सभापति कक्ष की दीवरों ओर जहां पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, दीन दयाल उपाध्याय, श्यामा चरण मुखर्जी की तस्वीरें थी वहां अब इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जैसे कांग्रेस के आइकन की फ़ोटो लग चुकी है। नहीं बदलें हैं तो गांधी, जिन्होंने इसी दीवार पर लटके हुए दो सभापतियों को सुदृढ़ भारत के अपने सपनों को तोड़ने का आरोप झेलते देखा है। और अब शायद उसी दीवार से टकटकी लगाये अपनी ही पार्टी के सभापति को इस आशा से देख रहे हैं कि वो उनके मितव्ययिता और सुदृढ़ स्थानीय निकाय के सपने को साकार वो करेगा।
इनका कहना है….
नया कार्य शुरू करने पर सब कुछ नया रखने
की भारतीय परम्परा है। ये परिवर्तन उसी कारण किया है इसे शकुन, अपशकुन, शुभता कुछ भी कह सकते हैं।
महेंद्र मेवाड़ा
सभापति, नगर परिषद सिरोही।