जयपुर। नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी भाजपा सरकार ने पास करा लिया है नागरिकता संशोधन बिल को लेकर विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस की भूमिका जिस प्रकार है वह कतई सराहनीय नहीं कही जा सकती है। बुधवार को राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह के नागरिकता संशोधन बिल पेश करते हुए कांग्रेस के नेताओं ने संसद में जैसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं वह देश हित में नहीं कही जा सकती है।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तो इस बिल को बिना समझे ही कहा कि है देश का सबसे बड़ा काला दिन है। वही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की प्रमुख ममता बनर्जी भी इसके खिलाफ काफी उग्र नजर आईं। ममता बनर्जी ने तो खुलेआम कह दिया कि वह अपने राज्य में यह बिल लागू नहीं होने देगीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने तो इस बिल को लेकर पाकिस्तान की भाषा बोल रहें हैं। देश में कुछ भागों में खासकर आसाम में नागरिकता संशोधन बिल का जो विरोध हो रहा है उसके लिए कांग्रेस पार्टी और उसके नेता ही जिम्मेदार है। जिस प्रकार कांग्रेस और कुछ विपक्ष के नेता मुस्लिमों को लेकर रहनुमा बने हुए हैं उनको पहले नागरिकता संशोधन बिल वास्तविक है क्या, यह समय लेते तो बेहतर रहता। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने तो सारी हदें पार कर दी हैं। सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में इस बिल के खिलाफ याचिका भी दायर कर खुलेआम कहा है कि मैं यह लड़ाई मुस्लिमों के लिए लडूंगा। सही मायने में देश में अशांति कांग्रेस के नेता और कुछ विपक्षी पार्टी ही फैला रही है।
कांग्रेस ने बिल को पास न कराने पर लगा दिया था जोर, लेकिन बात नहीं बनी—
मोदी सरकार इस बार नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद से पास कराने में कामयाब हो गई है। गृहमंत्री अमित शाह बुधवार को इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया तो कांग्रेस सहित कई विपक्ष दलों ने कड़ा विरोध किया। मोदी सरकार राज्यसभा में बहुमत न होने के बाद भी इस बिल को पास कराने में कामयाब रही है।
राज्यसभा में बीजेपी के महज 83 सांसद हैं, लेकिन वोटिंग के दौरान विधेयक के पक्ष में 125 वोट पड़े यानी 42 सदस्यों का उसे समर्थन मिला। राज्यसभा में कुल सदस्य 245 हैं। लेकिन फिलहाल पांच सीटें रिक्त हैं। जिसके चलते राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 240 है। वहीं, स्वास्थ्य कारणों की वजह से 5 राज्यसभा सदस्यों ने छुट्टी मंजूर कराई थी। ऐसे में उच्च सदन के सदस्यों की कुल संख्या घट कर सिर्फ 235 रह गई और बहुमत का आंकड़ा 118 रह गया था। वोटिंग के दौरान पक्ष में 125 वोट और विरोध में 99 वोट पड़े।
शिवसेना और बसपा ने इस बिल का विरोध करते हुए वॉकआउट किया?
नागरिकता संशोधन विधेयक पर लोकसभा में समर्थन करने वाली शिवसेना ने राज्यसभा में वॉकआउट किया। बसपा भी बिल का विरोध करते हुए राज्यसभा से वॉकआउट कर गई थी। जबकि, बसपा ने लोकसभा में बिल के खिलाफ वोटिंग की थी। वहीं, जेडीयू और वाईएसआर कांग्रेस ने लोकसभा की तरह राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में वोटिंग की। इसी तरह से टीडीपी भी राज्यसभा में बिल पर सरकार के समर्थन में रही। इससे भाजपा सरकार को पूरा फायदा मिला। अब नागरिकता विधेयक को संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गई है । इसके बाद विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा।
असम के निवासियों को ‘1985 का असम समझौता’ भी याद रखना होगा—
नागरिकता संशोधन बिल के पास हो जाने के बाद असम में प्रदर्शनकारी बिना मतलब के ही हिंसा फैला रहे हैं। जबकि वहां के निवासियों को 1985 के असम समझौता भी याद रखना होगा। आइए जानते हैं यह समझौता क्या है– 1979 के लोकसभा उपचुनाव में मंगलदोई सीट पर वोटरों की संख्या में अत्यधिक इजाफा हुआ था। जब पता किया गया तो जानकारी मिली कि ऐसा बांग्लादेशी अवैध शरणार्थियों की वजह से हुआ है । इसके बाद असम के मूल निवासियों ने अवैध शरणार्थियों के खिलाफ हिंसक धरना-प्रदर्शन शुरू किया। ये प्रदर्शन और विरोध 6 साल तक चले । इन प्रदर्शनों में 885 लोग मारे गए थे। मामला तब शांत हुआ जब उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1995 में असम समझौता किया था। समझौते में कहा गया था कि 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश ने बाहर निकाला जाए। दूसरे राज्यों के लिए यह समय सीमा 1951 थी।
जबकि, नागरिकता संशोधन बिल-2019 में नई समय सीमा 2014 तय की गई है। इसी बात पर प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नई समय सीमा से असम समझौते का उल्लघंन हो रहा है। नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 को लेकर असम में हिंसक प्रदर्शन चल रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने दिसपुर में सचिवालय को घेर रखा है। इन प्रदर्शनों के चलते कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा है। यहां तक कि अब राज्य में सेना तैनात कर दी गई है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 साल 1985 में हुए असम समझौता का उल्लघंन है। इससे वहां के मूल निवासियों की भावनाओं और हितों को नुकसान पहुंचा है।
असम में एनआरसी की जारी सूची में 19 लाख लोग अवैध पाए गए थे—
असम समझौते में कहा गया था कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंश (एनआरसी ) को लागू किया जाएगा। ताकि विदेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकाला जा सके । हालांकि, 35 सालों तक एनआरसी पर कोई काम नहीं हुआ। जब 31 अगस्त 2019 को असम एनआरसी पर काम शुरू हुआ तो उसकी सूची में से 19 लाख लोगों के नाम इससे बाहर हो गए थे। जो लोग बाहर हुए उसमें ज्यादातर हिंदू और मूल आदिवासी समुदाय के लोग थे। अब असम के प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता बिल आने से एनआरसी का प्रभाव खत्म हो जाएगा। इससे अवैध शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी।
नागरिकता संशोधन बिल-2019 के तहत नागरिकता के लिए भारत में निवास की समयसीमा 2014 तय है। वहीं, प्रदर्शनकारियों का कहना है कि असम में 1951 से 1971 तक लाखों शरणार्थी आए अब वह और शरणार्थियों का बोझ नहीं उठा सकता। असम में अशांति फैलाने का मुख्य कार्य कांग्रेस के नेता कर रहे हैं। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह बार-बार कह रहे हैं कि इस नागरिकता संशोधन बिल में मुस्लिमों को कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी। लेकिन क्या करें विपक्ष है, सरकार के हर अच्छे कार्यों में अड़ंगा लगाना उसकी फितरत है। लेकिन फिर भी कांग्रेस को पाकिस्तान और बांग्लादेश की भाषा बोलने से पहले देशहित याद रखना होगा।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार