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एक अधूरा सफर : कलेजा कंपकंपा देने वाला चरखी दादरी विमान हादसा - Sabguru News
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एक अधूरा सफर : कलेजा कंपकंपा देने वाला चरखी दादरी विमान हादसा

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एक अधूरा सफर : कलेजा कंपकंपा देने वाला चरखी दादरी विमान हादसा
1996 Charkhi Dadri mid-air collision
1996 Charkhi Dadri mid-air collision

विप्लव विकास
हर सफर अपनी मंजिल तक जाकर ही खत्म हो ऐसा हमेशा जरूरी नहीं होता, कुछ सफर अधूरे ही रह जाते हैं। 12 नवंबर 1996 की शाम को भी ऐसा ही कुछ हुआ। हरियाणा का चरखी दादरी जिला एक भीषण हादसे का साक्षी बना। कलेजा कंपा देने वाली आवाज के साथ भयानक बिजली चमकी और देखते ही देखते भयंकर आग के गोले तीव्र गति से गांव के खेतों में बरसने लगे। ये आग के गोले कोई उल्का पिंड नहीं, दिल्ली से अरब जा रहे यात्री विमान और दिल्ली आ रहे कज़ाकिस्तान एयरलाइंस के मालवाहक विमान के टुकड़े थे।

दोनों वायुयानों की टक्कर के बाद धरती पर गिरा एक नुकीला टुकड़ा तो धरती में 16 फीट नीचे गड्ढे में घुस गया था। हाय रे नियति! क्षण भर में सऊदी विमान के 312 और कज़ाकिस्तानी विमान के 37 लोग काल के गाल में समा गए। चरखी दादरी के आसपास चार-पांच किलोमीटर में ढाणी फौगाट, खेड़ी सोनावाल और मालियावास गांव के खेतों में जली-अधजली चित्थड़ों में तब्दील 351 लाशें बिखर गईं। हादसे की खबर मिलते ही सरकारी अमले से भी पहले पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक।

टुकड़े-टुकड़े बिखरी मौत के बीच जिंदगी की तलाश करने भिवानी जिले के तत्कालीन संघचालक जीतरामजी स्वयंसेवकों के साथ वहां पहुंचे तो उनका कलेजा मुंह को आ गया। बिना एक पल गंवाए घंटे भर के अंदर पेट्रोमैक्स, जनरेटर, पानी इत्यादि आवश्यक सामग्रियों का इंतजाम कर लिया गया।

ठंडी रात के नीरव अंधकार में जब एक हाथ को दूसरा हाथ नहीं सूझ रहा था तब पेट्रोमैक्स की रोशनी में स्वयंसेवकों ने जीवित लोगों को खोजना शुरू किया। मगर सिर्फ दो लोग ही मौत से जूझते मिले। परंतु उन्हें भी मौके पर पहुंची हेडगेवार चिकित्सालय की टीम बचा न सकीं।

सेवागाथा – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सेवाविभाग की नई वेबसाइट

23 वर्ष पहले देखे उस भयावह मंजर की बात निकलते ही जिले के तत्कालीन संघचालक जीतरामजी अब भी भावुक हो जाते हैं। वे बताते हैं कि कैसे स्थानीय किसान चंद्रभानजी के ट्रैक्टर में स्वयंसेवकों ने बुरी तरह जले हुए शवों को उठाया। शवों को सड़ने से बचाने के लिए रात को 11 बजे बर्फ के कारखाने चालू करवाए गए। भिवानी,झज्जर एवं रेवाड़ी जैसे आसपास के इलाकों से बर्फ की सिल्ली मंगवाई गई। मौके पर मौजूद एसपी साहब भी मुसलमान थे।

उनकी मदद से दाह संस्कार के लिए आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाई गई। गांव वालों के सहयोग से दाह-संस्कार के लिए रात में ही कफन की व्यवस्था की गई। मरने वाले अधिकतर यात्री या तो मुस्लिम थे या इसाई इसलिए भिवानी के स्वयंसेवक संतरामजी की फैक्ट्री में आरा मशीन से ताबूत बनवाए गए।

सुबह के 5:00 बजने तक 159 शव सिविल हॉस्पिटल, भिवानी पहुंच चुके थे। तब तक जीतरामजी के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने ‘विमान दुर्घटना पीड़ित सहायता समिति’ का गठन भी कर लिया। इसमें विश्व हिंदू परिषद्, आर्य समाज, विद्यार्थी परिषद एवं गुरूद्वारा समिति सहित अनेक सामाजिक संस्थाओं के लोगों को शामिल कर युद्ध स्तर पर कार्यारम्भ हो गया।

सुबह होते ही यह समाचार दावानल की तरह फैला तो घटनास्थल पर मृतकों के संबंधी, मीडिया व पुलिस प्रशासन भी पहुंच गया। समिति ने सबके लिए चाय, पानी एवं भोजन इत्यादि की व्यवस्था उपलब्ध कराई। जिन यात्रियों का कोई सगा संबंधी नहीं पहुंच सका उनको दफनाने का कार्य भी स्वयंसेवकों ने ही किया। इसमें स्थानीय मौलवी व दिल्ली से आए इस्लामिया प्रतिनिधि मंडल की भी मदद ली गई।

समिति के कार्यकर्ताओं ने तीन दिनों तक रात-दिन काम किया। मौके पर मौजूद तत्कालीन क्षेत्र प्रचारक प्रेमजी गोयल के अनुसार पहली बार किसी मस्जिद में स्वयंसेवकों का चरखी दादरी के स्थानीय मुस्लिम समाज द्वारा सम्मान किया गया। इस अवसर पर वहां के मौलवी मुहम्मद हमीद के शब्दों में कहें तो उन्होंने स्वयंसेवकों की खैरियत की दुआ करते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवक सिर्फ और सिर्फ इंसानियत के लिए काम करते हैं। इतना ही नहीं दुर्घटना की खबर मिलने के बाद घटनास्थल पर पहुंचे उस समय के केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री इब्राहिम ने स्वयंसेवकों की तारीफ करते हुए कहा कि ये सभी जाति धर्म से परे मानवता के पुजारी हैं।