नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून पर विपक्ष का शोर थमा भी नहीं था कि मोदी सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए आज एनपीआर को कैबिनेट की मंजूरी दे दी। गौरतलब है कि एनपीआर का भी केरल व पश्चिम बंगाल में विरोध शुरू हो गया है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होगी जिसका मकसद देश के सामान्य निवासियों की व्यापक पहचान का डेटाबेस बनाना है। इस डेटा में जनसांख्यिकी के साथ बायोमेट्रिक जानकारी भी शामिल होगी।
नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में हर नागरिक की जानकारी रखी जाएगी। ये नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। पॉपुलेशन रजिस्टर में तीन प्रक्रियाएं होगी। पहले चरण यानी अगले साल एक अप्रैल 2020 लेकर से 30 सितंबर के बीच केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी घर-घर जाकर आंकड़े जुटाएंगे। वहीं दूसरे चरण में 9 फरवरी से 28 फरवरी 2021 के बीच पूरा होगा। तीसरे चरण में संशोधन की प्रक्रिया 1 मार्च से 5 मार्च के बीच होगी।
एनपीआर कि देश में 2010 में हो चुकी है शुरुआत
गौरतलब है कि एनपीआर की वर्ष 2010 में शुरुआत हुई थी। यह देश के सभी सामान्य निवासियों का दस्तावेज है और नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों के तहत स्थानीय, उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाता है। कोई भी निवासी जो 6 महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में निवास कर रहा है तो उसे एनपीआर में अनिवार्य रूप से पंजीकरण करना होता है।
एनआरसी और एनपीआर में यह रहेगा अंतर
एनआरसी के पीछे जहां देश में अवैध नागरिकों की पहचान का मकसद छुपा है, वहीं इसमें छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रहने वाले किसी भी निवासी को एनपीआर में आवश्यक रूप से पंजीकरण करना होता है। बाहरी व्यक्ति भी अगर देश के किसी हिस्से में छह महीने से रह रहा है तो उसे भी एनपीआर में दर्ज होना है। एनपीआर के जरिए लोगों का बायोमेट्रिक डेटा तैयार कर सरकारी योजनाओं की पहुंच असली लाभार्थियों तक पहुंचाने का भी मकसद है।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार