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Special on the birth anniversary of 10th Guru of Sikhs - Sabguru News
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वीर योद्धा के साथ कवि भी थे गुरु गोविंद सिंह

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वीर योद्धा के साथ कवि भी थे गुरु गोविंद सिंह
Special on the birth anniversary of 10th Guru of Sikhs
Special on the birth anniversary of 10th Guru of Sikhs
Special on the birth anniversary of 10th Guru of Sikhs

सिखों के 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह वीर योद्धा के साथ कवि भी थे। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े थे वह महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। गुरु गोविंद सिंह ने ‘खालसा पंथ’ की स्थापना भी की थी। आज गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती है। आज देशभर में गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती धूमधाम के साथ मनाई जा रही है। गुरु गोविंद सिंह अपने पिता गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी के एक मात्र पुत्र थे।

सिखों के 10वें गुरु गुरु गोविंद सिंह का जन्‍म श्री पटना साहिब में पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी यानि कि 26 दिसम्बर 1666 को हुआ था। इस बार यह तिथि नानकशाही कैलेंडर के मुताबिक 2 जनवरी यान‍ी कि आज है। आइए जानते हैं इन वीर योद्धा का कैसा गुजरा जीवन।

9 वर्ष की आयु में गुरु गोविंद जी गद्दी पर बैठे थे

बता दें कि जिस समय गुरु साहिब का जन्म हुआ, उस वक्त गुरु तेग बहादुर साहिब बंगाल व असम की यात्रा पर थे। असम में रह रहे गुरु तेग बहादुर साहिब जी के कुछ अनुयायियों ने गुरु जी को यह खबर दी कि असम में जातीय भेदभाव किया जा रहा है। इसके साथ लोगों में कई तरह का अंधविश्वास फैला हुआ है जिसे दूर करने की जरूरत है। यह सुनकर गुरु जी असम की ओर चल दिए।

यात्रा पर जाने के बाद माता गुजरी जी ने गुरु गोविंद सिंह जी को जन्म दिया और बाल गोविंद राय नाम दिया। आगे चलकर उनका नाम गुरु गोविंद सिंह रखा गया। गोविन्द जी का पूरा बचपन बिहार में बीता। जब 1675 में  तेगबहादुर जी दिल्ली में हिंदू धर्म की रक्षा के लिए लिए अपनी जान की कुरबानी दे दी उसके बाद मात्र नौ वर्ष की उम्र में गोविन्द जी ने गुरु की गद्दी धारण की।

1699 में ‘खालसा पंथ’ की स्थापना की

गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में  खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था। गुरु गोबिंद सिंह का उदाहरण और शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करता है। इन्होंने जीवन जीने के पांच सिद्धांत दिए, जिन्हें ‘पंच ककार’ के नाम से जाना जाता है। गोविंद सिंह के संदेश के अनुसार ही खालसा सिखों में पांच चीजों को अनिवार्य माना जाता है। ये पांच चीजें हैं, केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा। इस दिन घरों और गुरुद्वारों में कीर्तन होता है। खालसा पंत की झांकियां निकाली जाती हैं। इस दिन खासतौर पर लंगर का आयोजन किया जाता है।

गुरु गोविंद ने कई रचनाएं भी लिखी

गुरु गोविंद सिंह जी ने जाप साहिब, अकाल उस्तत, बिचित्र नाटक, चंडी चरित्र, शास्त्र नाम माला, खालसा महिमा, जफरनामा जैसे अनकों रचनाएं लिखीं। उनके दरबार में 52 कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था। इन्होंने जीवन को बेहतर बनाने के लिए अनेक उपदेश भी दिए। जीवन को अनुशासित बनाकर जीने के लिए गोविंद सिंह जी ने 4 चीजों को कुरहितों में शामिल किया है जिनमें एक है तंबाकू। गोविंद सिंह ने बताया कि तंबाकू का सेवन मत करना।

पटना साहिब में आज भी ये चीजें मौजूद गुरुद्वारा साहिब में आज भी वह चीजें मौजूद हैं, जो गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में थी। पानी भरने के लिए जिस कुएं का इस्तेमाल माता गुजरी जी करती थीं, वह आज भी यहां है। इसे देखने संगतों की भीड़ उमड़ी रहती है। आज भी इस गुरुद्वारे में गुरु गोविंद सिंह जी की छोटी कृपाण मौजूद है। यही वह कृपाण है जिसे गुरु गोविंद सिंह बचपन के दिनों में धारण करते थे। गुरु जी अपने केशों में जिस कंघे का इस्तेमाल करते थे, वह भी यहां है।

धर्म रक्षा के लिए लड़े थे 14 युद्ध

धर्म की रक्षा के लिए गुरु गोविन्द ने मुगलों से 14 युद्ध लड़े थे। साथ ही वह महान स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने ही मुगल शासकों के अत्याचार से मुक्ति पाने के लिए सिक्ख समुदाय के लोगों की मदद की थी।

गुरु गोविन्द सिंह जी की पत्नियां, माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी थीं। बिहार के पटना साहिब गुरुद्वारा में संगतों की भारी भीड़ उमड़ती है। यहां पर गुरु गोविंद जी के जयंती पर देश-विदेश से हजारों की संख्या में सिख समुदाय के लोग आते हैं।

महाराष्ट्र के नांदेड़ में गुरु गोविंद ने ली अंतिम सांस

महाराष्ट्र के नांदेड शहर में स्थित ‘हजूर साहिब सचखंड गुरुद्वारा’ में सिखों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने प्रिय घोड़े दिलबाग के साथ अंतिम सांस ली थी। ऐसा कहा जाता है कि यह हत्या धार्मिक तथा राजनैतिक कारणों से कराई गई थी। गुरु गोविन्द सिंह जी की यह इच्छा थी कि उनके मृत्यु के बाद भी उनके सहयोगियों में से एक नांदेड़ में ही रहें तथा गुरु के लंगर को निरंतर चलाएं तथा बंद न होने दें। गुरु की इच्छा के अनुसार यहां साल भर लंगर चलता है।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार