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Putrada Ekadashi today donations and bathing bring children and virtue - Sabguru News
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पुत्रदा एकादशी आज, दान-स्नान करने से ‘संतान और पुण्य’ की होती है प्राप्ति

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पुत्रदा एकादशी आज, दान-स्नान करने से ‘संतान और पुण्य’ की होती है प्राप्ति
Putrada Ekadashi today donations and bathing bring children and virtue
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सबगुरु न्यूज। पुत्रदा एकादशी आज है। हिंदू पांचांग के मुताबिक हर साल पौष महीने के शुक्ल पक्ष में आने के कारण इस एकादशी व्रत को पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। सनातन धर्म में पुत्रदा एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। आज के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। बता दें कि साल में 24 एकादशियां पड़ती हैं, जिनमें से दो को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह तिथि एक महीने में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद।

पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। पुत्रदा एकादशी श्रावण और पौष शुक्‍ल पक्ष में पड़ती हैं। दोनों एकादशियों का विशेष महत्‍व है। मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान की प्राप्‍ति होती है। यही नहीं दान-स्नान और तप करने से पुण्य की भी प्राप्ति होती है। कल सुबह 4 बजकर तीन मिनट तक एकादशी रहेगी। हालांकि पुत्रदा एकादशी व्रत आज किया जाएगा।

इस एकादशी की यह है मान्यता

अगर आप बच्चे की इच्छा से इस व्रत को रख रहे हैं तो भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप और भगवान श्री नारायण की उपासना करें। ऐसा कहा गया है कि इस तरह व्रत करने वालों को अवश्य लाभ होता है। साथ ही मन में अगर सच्ची श्रद्धा हो तो प्रभु जरूर आपकी बात सुनते हैं। आपको पता होगा कि साल में 24 एकादशी आती हैं और इनमें चावल का सेवल वर्जित बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत होता है। माना गया है कि अगर आप भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हैं तो आचार विचार, खान पान आदि में शुद्धता और सात्विक्ता बरतनी चाहिए। सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का काफी महत्व है और व्रत रखने वाले को गुस्सा नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए।

पुत्रदा एकादशी पर व्रत कथा का महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बांधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था। वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूंगा।

जिस घर में संतान न हो उस घर में सदैव अंधेरा ही रहता है। इसलिए संतान उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए। इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्‍णु की आराधना की जाती है। कहते हैं कि जो भी भक्‍त पुत्रदा एकादशी का व्रत पूरे तन, मन और जतन से करते हैं उन्‍हें संतान रूपी रत्‍न मिलता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो कोई भी पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसे स्‍वर्ग की प्राप्‍ति होती है।

भगवान विष्णु की करें पूजा-अर्चना

एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्‍णु का स्‍मरण करें। फिर स्‍नान कर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। घर के मंदिर में श्री हरि विष्‍णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्‍प लें और कलश की स्‍थापना करें। विष्‍णु को धूप-दीप दिखाकर पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें। दूसरे दिन ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और यथा सामर्थ्‍य दान देकर व्रत का पारण करें। जो लोग पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहते हैं उन्‍हें एक दिन पहले यानी कि दशमी के दिन से व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। दशमी के दिन सूर्यास्‍त के बाद भोजन ग्रहण न करें और रात में सोने से पहले भगवान विष्‍णु का ध्‍यान करें।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार