लखनऊ। संक्षिप्त क्रिकेट करियर में दिग्गजों को अपनी प्रतिभा का लोहा मनमाने वाले उत्तर प्रदेश में क्रिकेट के ‘भीष्म पितामह’ कहे जाने वाले रोहित चतुर्वेदी ने सोमवार को दुनिया को अलविदा कह दिया।
यूपीसीए की चयन समिति के अध्यक्ष और क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी जैसे अहम पदों के जरिये राज्य क्रिकेट को अंतर्राष्ट्रीय मुकाम दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले 80 साल के बुजुर्ग क्रिकेटर ने लखनऊ में डालीगंज क्षेत्र के बाबूगंज मोहल्ले में स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। भैसाकुंड शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस मौके पर खेल की दुनिया की कई नामचीन हस्तियां मौजूद थी।
करीब एक दशक तक यूपी रणजी टीम के सदस्य रहे अशोक बांबी ने बुजुर्ग क्रिकेटर को याद करते हुए कहा कि दो साल पहले तक जो स्विंग भुवनेश्वर कुमार या इससे पहले प्रवीण कुमार की गेंदबाजी में दिखती थी, उससे कई गुना ज्यादा खतरनाक इन स्विंग चतुर्वेदी साहब कराते थे जिसके बीच-बीच में शानदार लेग कटर बल्लेबाजों के गिल्लियों को झटके से बिखेर देती थी। बल्लेबाज के दिमाग को जल्द पढ़ने की महारथ हासिल करने वाला यह दिग्गज हालांकि अपने करियर के दौरान ज्यादातर राजनीति का शिकार रहा।
बांबी ने कहा कि यूं तो चतुर्वेदी ने 1953 में पाकिस्तान की स्कूली टीम के खिलाफ गेंद और बल्ले से लाजवाब प्रदर्शन करते हुए सुर्खियां बटोरी थी लेकिन सही मायनो में उनकी प्रतिभा को पहली बार 1957 में कर्नल सीके नायडू ने पहचाना जब वह एक शिविर में लखनऊ आए थे। उन्होंने चतुर्वेदी को आउट स्टैंडिंग क्रिकेटर का दर्जा दिया था।
उन्होंने बताया कि उस जमाने में क्रिकेट में राजनीति बहुत आम थी और उत्तर प्रदेश के क्रिकेटरों को नेशनल टीम में तो क्या, राज्य स्तर पर भी जगह बनाने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पडती थी। चतुर्वेदी भी 1959-60 के दौरान यूपी टीम में चयनित हुए लेकिन उनके एक्शन को संदिग्ध करार देते हुए टीम से बाहर कर दिया गया।
इससे उनके स्वाभिमान को धक्का लगा और उन्होंने करीब छह साल तक क्रिकेट नहीं खेला लेकिन इस बीच खेल पत्रकार के आर रिजवान ने उनकी मदद की और 1966-67 में एक बार फिर उन्होंने यूपी रणजी टीम का नेतृत्व किया।
पूर्व टेस्ट खिलाड़ी गोपाल शर्मा के अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण का श्रेय चतुर्वेदी को जाता है जिन्होंने एक शिविर के दौरान शर्मा को आफ स्पिन गेंदबाजी के लिए प्रेरित किया। इससे पहले शर्मा मध्यम तेज गेंदबाज थे। उन्होंने सलाह दी कि यदि वह आफ स्पिन पर ध्यान देंगे तो ज्यादा सफल हो सकते हैं।
लखनऊ के प्रतिष्ठित शीशमहल क्रिकेट टूर्नामेंट को याद करते हुए बांबी ने बताया कि 1971 में प्रतियोगिता में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की कई नामचीन हस्तियां खेल रही थी। एक मैच में उस समय के स्टार सलामी बल्लेबाज चेतन चौहान बैटिंग करने आए और गेंद चतुर्वेदी के हाथों में थी। उन्होंने करीब पौन घंटे तक धाकड़ बल्लेबाज को एक छोर पर बांधे रखकर एक भी रन नहीं लेने दिया और आखिरकार उनका विकेट झटक लिया।
उन्होंने कहा कि कई मौकों में चतुर्वेदी ने विपक्षी टीम को 50 से भी कम स्कोर पर आउट किया था। 1965 में दिल्ली की टीम के खिलाफ उन्होने 12 रन देकर आठ विकेट झटके थे। हालांकि अपने करियर में वे कई मर्तबा चयनकर्ताओं के पक्षपातपूर्ण रवैये का शिकार बने और उनको गेंद के बजाय बल्ले से योगदान देने के लिए सराहा गया।