विजयलक्ष्मी सिंह
ढगेवाडी-महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव। आप में से शायद ज्यादातर ढगेवाडी नहीं गए होंगे, और बहुत संभव है इसका नाम तक न सुना हो। मगर 32 साल पहले एक दम्पती वहां पहुंचा और अपनी संकल्प शक्ति से इस गुमनाम से गांव की तस्वीर बदल दी।
बात 1985 की है महाराष्ट्र के अकोला नगर, जिला अहमदनगर से महज 35 किलोमीटर दूर बसे 55 घरों के छोटे से गांव में सारी जमीन बंजर थी, पानी के लिए महज़ एक छोटा सा तालाब था और वह भी गांव से 5 किलोमीटर दूर, तब मोहनराव घैसास व उनकी पत्नी स्मिता ने इस गांव को अपनी कर्म भूमि बनाया।
ढगेवाडी में उन दिनों न उगाने के लिए कुछ था और न ही कमाई का कोई अन्य साधन। आलम यह था कि सारे पुरुष साल के 9 माह रोजगार के लिए बाहर रहते थे, गांव में पीछे रह जाते थे बस बूढ़े, बच्चे व महिलाएं। मगर आज यहां चारों ओर हरियाली है। कभी पानी का संकट झेल रहे इस गांव में अब 26 कुएं, 35 चेक डैम हैं, व जिन लोगों ने कभी गोभी, टमाटर देखा नहीं था वहां से अब हर सप्ताह गोभी व टमाटर से लदा टैंपो शहर बिकने जाता है।
ये चमत्कार दरअसल सुयश चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा विकसित उन्नत कृषि टेक्नोलॉजी का कमाल है, जिसने हजारों किसानों की तकदीर बदल दी। घैसास दम्पती ने ट्रस्ट के माध्यम से शुरूआत वनवासी छात्रों को उन्नत खेती की ट्रेनिंग के साथ की। जब इन छात्रों के परिवार वर्ष में एक एकड़ बंजर जमीन से 40,000 कमाने लगे तो जैविक कृषि आधारित ये मॉडल उन्होंने आसपास बाकी गांवों में भी अपनाया।
मेलघाट गांव के बापू काले और श्याम बेलसरे ने अपने खेतों में प्रति एकड़ 10 कुंतल सोयाबीन और 1 कुंतल ज्वार की मिश्र कृषि कर कुल 47000 हज़ार की पैदावारी की। बापू काले बताते हैं आज उनकी बंजर भूमि उपजाऊ बन चुकी है। बिबा गांव के मोती लाल बावने ने एक चेक डैम का निर्माण कराया और चार किसानों ने सामूहिक रूप से इसका सिचाई हेतु प्रयोग किया और रबी की प्रति एकड़ 18000 हज़ार मूल्य की बम्पर फसल ली।
विहीर गांव के दादा राव खंगारे बताते हैं नवीन ढंग से खेती कर उन्होंने प्रति एकड़ 10.5 कुंतल कपास का रिकॉर्ड उत्पादन किया। आज ट्रस्ट के प्रयासों से महाराष्ट्र, ममध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और उड़ीसा में 2600 गांवों के एक लाख लोग गरीबी के अभिशाप से मुक्त हो चुके हैं।
सेवागाथा – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सेवाविभाग की नई वेबसाइट
इलेक्ट्रिकल के साथ ही मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री से लैस मोहनराव ने उस समय स्वप्न में भी नहीं सोचा था, कि संघ के स्वयंसेवक के रूप में अकोला के वनवासी कल्याण आश्रम के बच्चों के पालक की जिम्मेदारी उनके जीवन की दिशा बदल देगी। कई बरस पुणे नगर के संघचालक रहे मोहनराव की वनवासी छात्रों को इंडीपेंडेंट बनाने की सोच ने धीरे-धीरे गांवों के विकास की बुनियाद रखी।
ट्रस्ट के कार्यकर्ता किसानों को उन्नत बीज व जैविक खेती की ट्रेनिंग के साथ ही गोमूत्र से फ़र्टिलाइज़र बनाने की विधि भी सिखलाते हैं। इस पूरे प्रोजेक्ट के अंतर्गत ट्रस्ट द्वारा छोटे-छोटे चेक डैम बनाकर, कुएं खोदकर परम्परागत जल संरक्षण के जरिये गांव में पानी इकट्ठा किया जाता है।
मगर यह सब इतना आसान नहीं रहा, नासिक के उम्बरपाड़ा गांव का वाकया ही लें- पहली बार गांववालों ने ट्रस्ट कार्यकर्ताओं को बैठने देने तक से मना कर दिया था। गांववालों का कहना था यदि गाँव में पानी ला सकते हो तो ही हम आपकी बात सुनेंगे। आज इसी गांव के एकनाथ गायकवाड़ ने 3 एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती कर साल में 1,60,000 रूपए कमाने का रिकॉर्ड बनाया तो उनका इंटरव्यू लेने टीवी चैनल्स तक यहां पहुंच गए।
कई सालों तक तो बीज खरीदने से लेकर कुंआ खोदने तक ट्रस्ट से किसानों को पैसों की मदद दी जाती थी। जिसे वे फसल के पैसों से चुकाते थे। अब गांव–गांव में ये काम स्वयं सहायता समूह के जरिये होने लगा है। किसान अपनी ही बचत से आत्मनिर्भर हो रहे हैं। प्रथम नानाजी देशमुख पुरस्कार से सम्मानित पुणे के सुयश चैरिटेबल ट्रस्टने गौ-आधारित उन्नत खेती का नया मॉडल विकसित कर लाखों वनवासी परिवारों को आत्मनिर्भर बना उनके जीवन में समृद्धि के नए रंग भरने का काम कर रहा है।