सबगुरु न्यूज। भूत ने जमकर ठहाका लगाया और दिल खोल कर हंसते हुए कहने लगा कि हे मानव तू मुझ से डर मत, मुझे जीभर कर प्यार कर तथा मेरा ऐतबार कर। इस जगत में तू कुछ भी कर ले लेकिन बिना मेरे ध्यान के तुझे किसी भी कार्य में सिद्धि नहीं मिलेगी भले ही लक्ष्यों को भेदन करने के लिए तेरी बुद्धि कितनी भी मजबूत क्यो ना हो। भले ही तू सूरमा हो या तीस मारखा या विशिष्ट पहचान का हो या सामान्य पहचान का।
जिस दुर्बल ने भी मेरा ध्यान कर लिया है और मेरे में आस्था बनाए रखी, मैंने ही उस मानव को भी राजा बना दिया और जिसने मुझ से बहुत कुछ पाकर तथा अपना मिश्रण बनाकर मेरे साथ अति करना शुरू कर दिया, मैंने भी उसके मिश्रण के साथ ही उसकी बग़ावत करा उसका समूल नष्ट कर दिया। उसे मेरे साम्राज्य के एक कोने में डाल कर यह दिखाने के लिए छोड़ दिया की इसने मेरी विद्या का अपमान कर दिया इसलिए यह अब आने वाली पीढ़ी इसकी बेवफाई जैसे गुण धर्मों से बचती रहेगी।
मैं उन भूतों में से नहीं हूं जो शमशान, चौराहों और सुनसान जगह में पूजा जाऊं। भले ही यह सब स्थान मेरे ही हैं। यहां के भूत तो मानव का एक डर है जो अज्ञात भय और अज्ञात हानि की आशंका के लिए कुछ लोगों के द्वारा पूजे जाते हैं। यह भूत अंजाना होता है जो मन की मनोवृत्ति के कारण उत्पन्न होता है और इस मनोवृत्ति से पीड़ित हुए लोगों के इलाज भी इससे सम्बन्धित मानव द्वारा बनाई भूत विद्या से ही होता है।
यह मन के भय के कारण सृजित हुआ भूत अकारण ही लोगों को लग जाता है। डोरे, ताबीज़, गंडे, उतारे और जो भी क्रिया की जाती है उससे ही उस पीड़ित लोगों की मनोवृत्ति फिर से मजबूत होती है भले ही कोई लाख उसे कहे कि तू डर मत इस विज्ञान के युग में भूत प्रेत कुछ नहीं होते हैं और ना ही यह किसी का कुछ बिगाड़ सकते हैं।
मैं इस तरह का भूत नहीं हूं। मुझे समझने के लिए परिपक्व बुद्धि, मजबूत मन और गंभीर सोच और दर्शन होना जरूरी होता है। ऐसे तो दुनिया का तमाम मानव मुझे जानता है और एक बीता हुआ कल समझ कर ही मुझे मेरे हवाले छोड़ देता है। मैं महाबली भूत हूं और तमाम वर्तमान को भूत बनाकर रोज मैं शक्तिशाली बन जाता हूं।
असलियत में मेरे बीते हुए कल को जो तुम्हारे सामने वर्तमान में है उसके तंत्र को समझकर ही भावी योजनाएं चाहे वह सियासत की हो या अर्थशास्त्र की हो या धर्म शास्त्र की हो उसे बना कर काम करने वाला ही मेरी सिद्धी को प्राप्त कर लेता है और जहां कच्चे कलवे जैसी कार्यो में विध्न डालने वाली शक्तियों को लड झगडकर नहीं पर उन्हें उचित भेंट पूजा अर्पण कर शांत किया जा सकता है नहीं तो मेरी भूत विद्या की वैशाखी से राज करने वाले या धन कमाने वाले या किसी भी क्षेत्र में क्यों ना हो वहां सब उन शमशान वाली भूत विद्या की तरह बन जाएगी।
विज्ञान की नींव मेरे ही आधार पर खड़ी है और वह मेरे बीते हुए कल को देख कर ही अपने नूतन आविष्कार करती है। मेरी भूत विद्या को यदि विज्ञान नहीं समझता तो वह कभी भी अंधविश्वास का अंत नहीं कर सकता था। इसलिए मैं भूत विद्या राजघरानों से लोकतंत्र तक पूजती आ रही हूं। बस, मेरा गलत उपयोग ही सभी के पतन का कारण बन जाता है। बीते हुए कल के हर ज्ञान के आधार पर आज और आने वाले कल की योजना को बनाना ही भूत विद्या है।
‘आस्था वालीं भूत विद्या’ भी मेरे काल में फली फूली और वह सब लठैत की तरह आज के युग में भी प्रवेश कर गई लेकिन उसका जमीनी हकीकत नहीं होने के कारण यह भावी हानि की आशंका के भय से ही ग्रसित करतीं रही। अगर भूत विद्या शमशान वाली होती तो निश्चित रूप से यह विश्व अपार समस्याओं से आज जरूर राहत पाता। आस्था के ठिकानों पर ही यह विद्या पलती है और अपने स्वरूप में विस्तार करती है।
संत जन कहते हैं कि हे मानव, बीता हुआ कल अपना इतिहास छोड़ जाता है और उसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या धार्मिक दर्शन कैसा रहा, किस शासक ने कैसे शासन किया और क्या अर्थव्यवस्था का स्वरूप रहा, धर्म तथा विज्ञान की क्या भूमिका रही। इन सब भूत विद्या के आधार पर शासक अपने आप तैयार कर उस ही अनुसार अपना काम करने लग जाता है और ऐसा लगता है कि भूत अपने काल से बाहर निकल आया है और अपनी बचे हुए कामों को निपटा रहा है।
आस्था वाली भूत विद्या केवल मन की ही मनोवृत्ति को कमजोर करती है और पुराने भूत काल के इतिहास वर्तमान के कमजोर सोच के मानव में घुस जाते हैं और अपना परचम शमशानी भूत विद्या की ओर ले जाते हैं।
इसलिए तू मन को मजबूत बना और इस विज्ञान के युग में तू निर्भय हो कर जी। भले ही भूत काल में रहे अच्छे लोगों का अनुसरण कर लेकिन जो नकारात्मक और छोटी सोच के भूत काल के इतिहास है उन्हें त्याग। शमशानी भूत विद्या तो तेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ेगी लेकिन जो भूतकाल में नकारात्मक सोच के लोग हैं उनकी विचारधारा बहुत कुछ बिगाड़ देगी। इसलिए हे मानव, तू अपनी आस्था के घर में केवल मानववादी सोच जो सभी का कल्याण करे उसे ही जगह दे।
सौजन्य : ज्योतिषाचार्य भंवरलाल, जोगणियाधाम पुष्कर