नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने पूरे देश को हिलाकर रख देने वाले निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या कांड के चारों दोषियों को अलग अलग फांसी नहीं दिए जाने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील पर मंगलवार को चारों दोषियों को नोटिस जारी किए।
न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की विशेष खंडपीठ ने केंद्र की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई करते हुए चारों दोषियों को नोटिस जारी किया तथा मामले की सुनवाई के लिए गुरुवार की सुबह साढ़े दस बजे का समय निर्धारित किया।
न्यायालय ने हालांकि, यह स्पष्ट कर दिया कि इस मामले में दोषियों को अलग अलग या एक साथ फांसी दिए जाने के कानूनी बिंदुओं पर विचार किया जाएगा और इस मामले के लंबित रहने का असर फिलहाल चारों दोषियों की कानूनी प्रक्रिया पर नहीं होगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विशेष खंडपीठ को एक चार्ट सौंपा कहा कि इसमें सभी दोषियों की विस्तृत जानकारी है।
मेहता ने कहा कि दोषी रणनीति के तहत केस को लंबा खींच रहे हैं। उन्होंने कहा कि दोषियों को एक साथ के बजाय अलग-अलग से फांसी पर लटकाने की इजाज़त दी जाए, क्योंकि तीन दोषी मुकेश, विनय और अक्षय के सभी न्यायिक उपचार खत्म ही चुका है।
सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा, बलात्कार के आरोपियों का मुठभेड़ होता है तो जनता खुशी मनाती है। हम इसका (मुठभेड़ का )समर्थन नहीं करते, लेकिन इससे एक बात सामने आती है कि लोगों का न्यायिक प्रणाली के प्रति विश्वास कम हो रहा है।
न्यायमूर्ति भूषण ने कहा, अगर हम केंद्र के इस पहलू को तय करेंगे तो मामले में और देरी होगी। अलग अलग याचिका दाखिल होगी। इससे बेहतर होगा कि आप निचली अदालत में जाये और डेथ वारंट जारी करने की मांग करे।
न्यायमूर्ति भूषण ने कहा, अगर किसी की दया याचिका लंबित नही है, तो आप डेथ वारंट जारी करने की मांग कर सकते हैं। अबतक दोषियों में से एक पवन ने उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी अपने न्यायिक उपचार का इस्तेमाल नहीं की, लेकिन आप उसे फोर्स तो नही कर सकते।
उन्होंने केंद्र से कहा कि वह डेथ वारंट के लिए निचली अदालत जा सकता है।
मेहता ने खंडपीठ को जेल मेनुअल के रूल 836 पर बहस करते हुए ये समझाने की कोशिश की कि दोषियों को अलग-अलग भी फांसी दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि कानून का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमे उसने कहा है कि चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं हो सकती।
गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि निर्भया के चारों दोषियों को अलग-अलग समय पर फांसी नहीं दी जा सकती जबकि केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि जिन दोषियों की याचिका किसी भी फोरम में लंबित नहीं है, उन्हें फांसी पर लटकाया जाए। एक दोषी की याचिका लंबित होने से दूसरे दोषियों को राहत नहीं दी जा सकती।