लखनऊ। अयोध्या में राम जन्मभूमि के मुकदमे में सुप्रीमकोर्ट में पैरवी करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश हरि नाथ तिलहरी का निधन हो गया है।
सेवानिवृत्त होने के बाद 81 साल के तिलहरी ने वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में उच्चतम न्यायालय में राम जन्मभूमि के मुकदमे में मंदिर पक्ष की ओर से पैरवी की थी। राजधानी के न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोगों ने उनके निधन को अपूर्णीय क्षति बताई है।
वर्ष 1997 में उन्होंने ‘तीन तलाक’ के खिलाफ पहला फैसला दिया था। इससे पहले वर्ष 1993 में राम जन्मभूमि दर्शन मामले में उन्होनें हिन्दू श्रद्धालुओं को दर्शन की अनुमति के साथ मूर्तियों एवं ढहाए गए गए ढांचे की ऐतिहसिक और पुरातात्विक महत्व वाली सामग्री को सुरक्षित रखने के निर्देश दिए थे। इसके अलावा अन्य कई संवैधानिक तथा समाजिक मामलों में अहम फैसले दिए थे।
वर्ष 1953 में चारबाग के अस्तबल मोहल्ले में जन्मे जस्टिस तिलहरी लखनऊ विश्वविद्यालय से विधि स्नातक होने के बाद 1961 से वकालत शुरु की और 1992 में इलाहबाद उच्च न्यायालय के जज बने।
वर्ष 1994 में स्थानांतरित होकर कर्नाटक उच्च न्यायालय में न्यायामूर्ति के रूप में कार्यरत रहे। उनके बड़े पुत्र न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति हैं और दूसरे पुत्र शिव नाथ तिलहरी हाईकोर्ट में राज्य सरकार के अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम हैं। पुत्री सुनीता तिलहरी अधिवक्ता हैं और जिला उपभोकता फोरम कानपुर की सदस्य हैं।