Warning: Constant WP_MEMORY_LIMIT already defined in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/18-22/wp-config.php on line 46
'मामा' के रूप में मध्यप्रदेश में ही नहींं, देश में भी ख्यात हैं शिवराज - Sabguru News
होम Madhya Pradesh Bhopal ‘मामा’ के रूप में मध्यप्रदेश में ही नहींं, देश में भी ख्यात हैं शिवराज

‘मामा’ के रूप में मध्यप्रदेश में ही नहींं, देश में भी ख्यात हैं शिवराज

0
‘मामा’ के रूप में मध्यप्रदेश में ही नहींं, देश में भी ख्यात हैं शिवराज

भोपाल। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सोमवार रात चौथी बार शपथ लेने वाले शिवराज सिंह चौहान की ख्याति राज्य ही नहीं, पूरे देश में ‘मामा’ के रूप में है और वे राज्य में सबसे अधिक समय तक (तेरह वर्ष से अधिक) मुख्यमंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं।

जीवन के इकसठ बसंत देख चुके चौहान का जन्म सीहोर जिले के जैत गांव में साधारण किसान परिवार में पांच मार्च 1959 को हुआ। अपने पिता प्रेम सिंह चौहान और माता सुंदरबाई चौहान के लाड़ले चौहान की अधिकांश शिक्षा भोपाल में पूरी हुई और वे दर्शनशास्त्र में स्वर्ण पदक के साथ स्नातकोत्तर तक शिक्षित हैं।

पांच मई 1992 को विवाह बंधन में बंधने वाले चौहान की पत्नी का नाम साधना सिंह हैं और उनके दो पुत्र कार्तिकेय और कुणाल हैं। छात्र जीवन से ही राजनीति में आ चुके चौहान ने लगभग चार दशक के दौरान विधानसभा से लेकर संसद तक का सफर तय किया। तत्कालीन राजनैतिक हालातों के बीच चौहान 29 नवंबर 2005 को पहली बार मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए थे। उस समय बाबूलाल गौर के पद छोड़ने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था।

चौहान ने नवंबर दिसंबर 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को ऐतिहासिक बहुमत दिलाया और 12 दिसंबर 2008 को उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की। चौहान ने इस कार्यकाल में अनेक नवाचार करते हुए कदम उठाए और विरोधियों के आक्रामक तेवरों के बावजूद दिसंबर 2013 में संपन्न विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से भाजपा को ऐतिहासिक बहुमत दिलाया है। चौहान ने 14 दिसंबर को तीसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

अगले पांच वर्ष तक कार्य करने के बाद नवंबर दिसंबर 2018 में संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत के आकड़े 116 से सात सीट पीछे रह गई और उसे कुल 109 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। सबसे बड़े दल (114 सीट) के रूप में कांग्रेस उभरी और इसके चलते चौहान को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। चौहान कमलनाथ के शपथ लेने की तिथि 17 दिसंबर से एक दिन पहले यानी 16 दिसंबर तक मुख्यमंत्री रहे।

वर्ष 2003 से 2018 तक पंद्रह वर्षों की अवधि में भाजपा के शासनकाल में चौहान तेरह वर्षों से अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने लाड़ली लक्ष्मी योजना, तीर्थ दर्शन योजना और महिलाआें तथा बालिकाओं के कल्याण की अनेक योजनाओं की शुरूआत की। इन योजनाओं को अन्य राज्यों ने भी यथावत या किसी अन्य रूप में स्वीकार किया।

इन योजनाओं और अपने भाषण के दौरान महिलाओं और बच्चों से विशिष्ट शैली में संवाद के कारण सभी उन्हें ‘मामा’ के नाम से पुकारने लगे और वे स्वयं भी इस बात को जनसभाओं में स्वीकारते भी।

दिसंबर 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद जब चौहान ने त्यागपत्र दिया, तब उन्होंने कहा कि जनता ने कांग्रेस को भी बहुमत नहीं दिया है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत भाजपा की तुलना में कम है, अलबत्ता सीट कुछ अधिक होने पर वे कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर देते हैं। साथ ही वे कहते आ रहे थे कि कांग्रेस अपने अंतर्विरोधों के कारण सत्ता से चली जाएगी और भाजपा की फिर से वापसी होगी। लगभग पंद्रह माह में यह बात सही साबित हुई और चौहान ने आज चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की।

चौहान के पहले राज्य में सबसे अधिक समय लगातार दस वर्षों तक सत्ता पर काबिज रहने का कीर्तिमान कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के नाम पर दर्ज था, जो 1993 से 2003 तक मुख्यमंत्री रहे। इस कीर्तिमान को चौहान ने ही तोड़ा। नए कार्यकाल में चौहान के समक्ष लगभग दो दर्जन सीटों पर होने वाले उपचुनाव में पार्टी का बेहतर से बेहतर प्रदर्शन करने के साथ ही कोरोना का प्रकोप नियंत्रित करने की है।

चौहान वर्ष 1972 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए हैं। वे 1977 78 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन सचिव बने। वे परिषद के महासचिव और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य बनने के बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा में अनेक दायित्व निभाकर आगे बढ़ते रहे।

चौहान 1990-91 में पहली बार बुधनी से विधायक बने। इसके बाद वे 1991 में पहली बार दसवीं लोकसभा के लिए विदिशा से निर्वाचित हुए। वे लोकसभा के लिए चुनाव जीतते रहे और वर्ष 2004 में पांचवी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।

इस बीच 16 मई 2005 को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में उन्हें महत्वपूर्ण दायित्व मिला। तत्कालीन राजनैतिक परिस्थितियों के बीच 29 नवंबर 2005 को जब चौहान को पहली बार मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वे पीछे मुड़कर कभी नहीं देखेंगे। लगातार संवाद और सक्रिय बने रहने की आदत चौहान को भाजपा ही क्या, अन्य दलों के नेताओं से भी अलग बनाती है।