नई दिल्ली/जोधपुर। केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 50वें पृथ्वी दिवस मेजबान के अवसर पर ‘एक स्थायी भविष्य के लिए’ पर वेबिनार में कहा कि पृथ्वी को लेकर हमें खुद को बदलना होगा। हम सबको नहीं बदल सकते हैं। जैसे हम खुद के शरीर की चिंता करते हैं, वैसे ही हमें प्रकृति की चिंता करनी है। यही संस्कार बच्चों को देने की जरूरत है।
शिक्षाविदों, शिक्षकों और छात्रों से चर्चा करते हुए शेखावत ने कहा कि पृथ्वी को लेकर यदि हम अपने बच्चों में जाग्रति ला पाएंगे तो यह सही मायने में अर्थ डे होगा। एक छात्र के सवाल कि कोरोना महामारी के चलते हम दिनभर हाथ धोते हैं, जिसमें काफी पानी लगता है, इसे कैसे बचाया जाए? के जवाब में उन्होंने कहा कि हमारा घरेलू पानी का खर्च मात्र 5 प्रतिशत है, जबकि उद्योग करीब 6 प्रतिशत पानी उपयोग में लेते हैं। 89 प्रतिशत पानी की खपत खेती में हो रही है।
यदि हम खेती में इस्तेमाल हो रहे 10 प्रतिशत पानी को बचा लें तो अगले 50 साल हमारी घरेलू जरूरत का पानी मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि हाथ धोने में पानी इस्तेमाल की चिंता न करें क्योंकि उद्योगों के बंद होने से पानी की फिलहाल बचत ही हो रही है। जितना एक कार को धोने में पानी लगता है, उतने में एक परिवार दिन में 50 बार हाथ धो सकता है। लॉकडाउन के कारण गाड़ी गंदी नहीं हो रही तो पानी बच ही रहा है।
पृथ्वी पर हमारा अधिकार सबसे अंतिम
उन्होंने कहा कि धरती पर केवल हमारा अकेले का अधिकार नहीं है। हम चूंकि सबसे बाद में आए हैं तो हमसे पहले जीव-जंतुओं का इस पर अधिकार है। विकास की दौड़ में हमने सबको भूला दिया और हम पृथ्वी के मालिक बनने की कोशिश करने लगे हैं। उसी का परिणाम है कि आज हमारी धरती इस दशा में है। उन्होंने कहा कि जो हम नहीं कर सकते हैं और उसे न करें तो ये अपराध नहीं है, लेकिन यदि हम कुछ कर सकते हैं और उसे न करें तो वो आपदा है।
पृथ्वी को लेकर बच्चों को यदि हमने जाग्रत नहीं किया तो भविष्य में यह कोरोना से भी बड़ी आपदा होगी। शेखावत ने कहा कि हम विवशता के बजाय स्वयं को पृथ्वी का एक हिस्सा मानते हुए यह कार्य करें तो बेहतर होगा। एक शिक्षिका के सवाल कि बच्चों को विकास और प्रकृति में संतुलन की शिक्षा कैसे दें? के जवाब में उन्होंने कहा कि विकास भी जरूरी है और प्रकृति भी, लेकिन यह हमें जाग्रति लाने की जरूरत है। जितना हम प्रकृति से ले रहे हैं, उतना ही उसे लौटाएं भी।
भारत में जल प्रबंधन की जरूरत
उन्होंने कहा कि भारत में जल प्रबंधन की आवश्यकता है। हम पानी की कमी वाले राष्ट्र नहीं हैं। हमारे यहां प्रतिवर्ष 1168 एमएम बरसात होती है, जबकि इजरायल जैसे देश में यह मात्र 100 एमएम है। कमाल की बात है कि इजरायल में पीने का पानी सरप्लस है और वो जार्डन व सीरिया को पीने का पानी निर्यात करते हैं। उन्होंने पानी को लेकर सुझाव भी मांगे।
कोरोना पर हम विकसित देशों के लिए रोल मॉडल
शेखावत ने कहा कि स्वच्छता पर आज 30 से ज्यादा देश भारत को फॉलो करते हैं। जो पंक्ति में हमारे पीछे खड़े हैं। उनके लिए अमेरिका, जर्मनी आदि विकसित देश रोल मॉडल नहीं हैं, वो हमारी तरफ देखते हैं। वैसे आज कोरोना की स्थिति में अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस के लिए भी हम रोल मॉडल हैं।
जिन्होंने अर्थव्यवस्था बचाई, वो बर्बाद हो गए थे
शेखावत ने बताया कि 1918 में भी दुनिया में महामारी फैली थी। तब छह करोड़ लोगों की मृत्यु हुई थी, जिनमें दो करोड़ भारतीय थे। तब भी दुनिया में दो तरह विचार थे। एक वो थे, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को बचाने की कोशिश की, जबकि दूसरे वो थे, जिन्होंने मानवता को बचाने की कोशिश की थी। कुछ देश ऐसे भी थे, जिन्हें समझ नहीं आ रहा था कि किसे बचाना है।
उस वक्त जिन्होंने अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए काम किया, वो बर्बाद हो गए। जिन्होंने मानवता को बचाने के लिए काम किया, वो सुपर पॉवर बन गए। आज भी कुछ ऐसी ही परिस्थिति है। अमेरिका और यूरोप ज्यादा परेशानी में हैं, क्योंकि वो आज भी अर्थव्यवस्था को बचाने में लगे हैं। हम मानवता को बचाने में लगे हैं।