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लॉकडाउन के एक माह बाद कोरोना को कितना रोक पाए - Sabguru News
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लॉकडाउन के एक माह बाद कोरोना को कितना रोक पाए

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लॉकडाउन के एक माह बाद कोरोना को कितना रोक पाए
How much could Corona be able to stop a month after the lockdown
How much could Corona be able to stop a month after the lockdown
How much could Corona be able to stop a month after the lockdown

भारत। 25 अप्रैल को हमारे देश में लॉकडाउन को पूरे एक माह हो गए हैं। लॉकडाउन से ही हम अभी तक कोरोना वायरस को बढ़ने से रोकने में बहुत हद तक सफल हो पाए हैं। भारत के लॉकडाउन की आज दुनिया के कई देश प्रशंसा भी कर रहे हैं। यह महामारी देश और दुनिया में कब तक रहेगी इसका जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। कोई 6 महीने कोई 1 साल तो कोई 2 साल कह रहा है। जो भी है मौजूदा समय में कोरोना वायरस की वजह से स्थित बहुत ही भयानक होती जा रही है। कोरोना वायरस के शुरुआती लक्षण को देखकर केंद्र सरकार ने देश में 25 मार्च को लॉकडाउन की शुरुआत की थी।

एक महीने पहले यानी 25 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया था, उस समय भारत में कोरोना संक्रमण के मामले 500 के आसपास थे। हालांकि इस बात के स्‍पष्‍ट संकेत थे कि कोरोना वायरस विकराल रूप धारण करने जा रहा है। 24 मार्च को देश भर में कोरोना से जुड़े मामलों का औसत दैनिक वृद्धिदर 21.6 पर्सेंट था जो अब घटकर 8.1 पर्सेट तक आ चुका है। अगर 21.6 पर्सेंट की दर से मामले बढ़ते रहते तो अब तक पूरे देश में कोरोना के 2 लाख से ज्‍यादा केस सामने आ चुके होते।

भारत में कोरोना वायरस बढ़ने का वृद्धि दर ये है

इस समय भारत में चल रहा 8.1 फीसदी दैनिक वृद्धिदर कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित देशों की तुलना में अभी भी ज्‍यादा है। लॉकडाउन का पांचवां हफ्ता चल रहा है। इतने समय में जर्मनी में कोरोना मामलों का वृद्धिदर 2 फीसदी जबकि अमेरिका में 4.8 फीसदी तक आ गया था। भारत में जो दैनिक वृद्धिदर अभी चल रहा है, उसके हिसाब से अगले हफ्ते के अंत तक हम करीब 40 हजार कोरोना केसेज के नजदीक पहुंच जाएंगे। अगले 15 दिनों में यह संख्‍या 70 हजार के आसपास और मई के अंत तक ढाई लाख के करीब पहुंच जाएगी। 5 पर्सेंट रहा वृद्धि दर तो 1 लाख से ज्‍यादा मामले नहीं हालांकि, कुछ राज्‍यों ने कोरोना केसेज के वृद्धि दर में कमी लाने में सफलता हासिल की है। जैसे केरल में वृद्धि दर 1.8 फीसदी है जो जर्मनी से भी कम है।

इनकी मदद से आने वाले दिनों में औसत वृद्धि दर नीचे जा सकता है। वृद्धि दर में थोड़ी कमी भी कुल कोरोना मामलों में बड़ा अंतर पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए, अगर भारत 6 फीसदी तक कोरोना वृद्धि दर कायम करने में सफल हो जाता है तो एक महीने बाद देश में करीब 1.3 लाख केस से निपटना होगा। इसी तरह, यदि वृद्धि दर 5 पर्सेंट तक है तो कोरोना के मामले एक लाख की संख्‍या नहीं पार कर पाएंगे। आपको बता दें कि शुक्रवार को कोरोना वायरस के मामलों में 1,752 की वृद्धि हुई जो भारत में अब तक एक दिन में सामने आए सर्वाधिक मामले हैं।

इसके साथ ही संक्रमण के कुल मामलों की संख्या लगभग 23,452 हो गई। सरकार का कहना है कि महामारी का प्रकोप नियंत्रण में है और यदि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू न किया जाता तो संक्रमण के मामलों की संख्या अब तक एक लाख तक पहुंच चुकी होती। सरकारी अधिकारियों ने महामारी के ‘नियंत्रण में होने’ का श्रेय लॉकडाउन और मजबूत निगरानी नेटवर्क तथा विभिन्न नियंत्रण कदमों को दिया।

डर और दहशत के बीच देश कब तक घरों में बैठा रहेगा?

देश में लॉकडाउन को लगाए 1 माह पूरे हो गए हैं ऐसे में अधिकांश लोग अपने घरों में बैठे लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि लोग ऐसे कब तक घरों में बैठे रहेंगे । क्‍या 3 मई को लॉकडाउन खत्‍म हो जाएगा? छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, हम सबके-हर तबके के मन में बस एक ही सवाल है। हर कोई यही जानना चाहता है कि क्‍या इस दिन लॉक डाउन वापस हो जाएगा, क्‍या वे पहले की तरह फिर से सामान्‍य जनजीवन जीने लगेंगे?

हालांकि देश-राज्‍य के ताजा सूरत-ए-हाल को देखकर ऐसा लग तो नहीं रहा और न ही इस बारे में कोई आधिकारिक जानकारी अब तक निकलकर सामने आई है। लगातार बिगड़ रहे हालातों के बीच कोरोना वायरस महामारी के देश-राज्‍य में लगातार बढ़ते मामले और व्‍यापक फैलाव को लेकर इसकी संभावना कमतर दिख रही है। लेकिन आने वाले दिनों में केंद्र सरकार से पाबंदियों में कटौती और कुछ विशेष रियायतों की अपेक्षा की जा सकती है।

दिल्ली, महाराष्‍ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्‍य प्रदेश में बहुतेरे कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या अधिक होती जाा रही। ऐसे में पिछले एक माह से घरों में कैद जनमानस अपनी सुरक्षा को लेकर खासा फिक्रमंद है। भले लॉकडाउन खुलने की अभी संभावना नहीं हो, लेकिन लोग अपनी जिंदगी से खिलवाड़ कतई नहीं करना चाहते। किसी भी कीमत पर वे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा और बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य चाहते हैं। जान की कीमत पर वे घरों से निकलना नहीं चाहते।

शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार