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The labour's child smiled after seeing bread - Sabguru News
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रोटी तो जैसे खिलौना थी, हाथ में आते ही खिलखिला उठा मजदूर का मासूम

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रोटी तो जैसे खिलौना थी, हाथ में आते ही खिलखिला उठा मजदूर का मासूम
सिरोही में नगर परिषद के बाहर खाना देख खिलखिलाता मासूम।
सिरोही में नगर परिषद के बाहर खाना देख खिलखिलाता मासूम।
सिरोही में नगर परिषद के बाहर खाना देख खिलखिलाता मासूम।

-परीक्षित मिश्रा

सिरोही। आठ दिन से तपती सडकों पर अपने गांव जाने के लिए संघर्ष करते मजदूर का परिवार बुधवार को सिरोही पहुंचा तो भूख उसके बच्चों को डसने को आतुर थी। जैसे ही 4 साल के मासूम बच्चे ने रोटी देखी तो ऐसे खिलखिला उठा जैसे उसे खिलौना मिल गया हो। कभी छोटे छोटे हाथों से रोटी को उठाता फिर अपने चेहरे के पास लाकर खिलखिलाता, फिर उसे सब्जी खाली कर रहे पिता की थाली में रखकर खुशी से उछलता।

लॉकडाउन के दौरान भारत की सड़कें ऐसी हजारों दिल को झकझोर देने वाले और सुकून देने वाली हकीकत का रंगमंच बन चुकी हैं। सिरोही नगर परिषद कार्यालय के बाहर हाई मास्ट लाइट की चांदनी में गरीब मजदूरों की मजबूरी की अमावस की हकीकत का रंगमंच बिखरा था।

राजसमन्द जिले के आमेट तहसील के एक मजदूर परिवार आठ दिन पहले पालनपुर से साईकल से निकला। पति-पत्नि के साथ तीन मासूम बच्चे भी थे। सबसे बड़ा बच्चा बमुश्किल 4 साल का होगा। सनावड़ा के पास किसी वाहन ने उसकी तीन पहिया साइकिल को टक्कर मार दी।

साइकिल पर काफी सामान भी था और तीन मासूम बच्चे भी। सब सामान के साथ वहीं बेबस पड़े हुए थे तो एक किसान की नजर पड़ी। वह उन्हें अपने ट्रेक्टर से सिरोही ले आया और नगर परिषद के बाहर उन्हें छोड़ दिया।

यहां तैनात होमगार्ड और एक युवक वालो की नजर उन पर पड़ी तो उन्होंने कांतिलाल माली को फोन कर खाना मंगवाया। खाना देखते ही बच्चों की आंखे चमक गई। जैसे ही होमगार्ड और युवक ने खाना थाली में परोसा, बच्चे ने रोटी उठाई और खिलखिला उठा।

उसके चेहरे की चमक और खिलखिलाहट शायद भूख को ये अहसास करा रही थी कि देख देश के भाग्य विधाताओं ने भले ही भाषण को ही राशन समझकर उन्हें तेरे आगे परोस दिया हो लेकिन हमारे भाग्य विधाता ने मदद के लिए कई हाथ भेज दिए। फिलहाल रात को वहीं ठहर गए। पुलिस की मेहरबानी रही तो रात निकाल कर सुबह फिर सिरोही से आमेट के बीच संघर्ष का एक और सफर शुरू हो जाएगा।

पुणे से लौटे, अब नहीं जाएंगे

तीन बत्ती चौराहे पर पैदल जाते दो युवक मिल गए। वे शिवगंज तहसील के अपने गांव खंदरा पैदल जा रहे थे। सिरोही के अनादरा चौराहे पर ये लोग पुणे की बस से उतरे थे।

दोनो भाई पुणे में मंदिर का काम करते थे। इसी मानस से आए हैं कि वापस नहीं जाना है। इनके पीछे इसके 6 और सहयात्री थे, जो एसीबी कार्यालय के बाहर खड़े थे। इनमे कुछ दुकानों पर कार्य करते थे। ये भी इसी मानस से आए हैं कि फिलहाल वापस नहीं जाना है। अपने स्वाभिमान के लिए गांव से कमाने के लिए परदेस गए इन लोगों को लॉकडाउन की तकलीफ के दौरान अपने आत्मसम्मान को भी तार तार होते देखा।

अधिकारियों ने इनके स्वाभिमान को जिस तरह कुचला वो दर्द उन्हें अभी भी सता रहा है। इन लोगों का साफ कहना था कि प्रधानमंत्री के कल के लॉकडाउन बढ़ाने के संकेत के बाद पुणे से भी प्रवासी तेजी से निकल रहे हैं। इन लोगों में सरकारी अनदेखी के प्रति जबरदस्त गुस्सा दिखा।