नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने विदेशों में फंसे भारतीयों को स्वदेश लाने वाली एयर इंडिया की उड़ानों में सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल न रखे जाने को लेकर केंद्र सरकार एवं सरकारी विमानन कंपनी को सोमवार को कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि क्या कोरोना वायरस को पता है कि उसे विमान में बैठे यात्री को संक्रमित नहीं करना है?
शीर्ष अदालत ने वंदे भारत अभियान के तहत भारतीयों को स्वदेश लाने वाली सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को गैर-निर्धारित अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में 10 दिनों तक बीच की सीटों पर भी यात्री बिठाकर लाने की अनुमति प्रदान करते हुए कहा कि उसके बाद एयर इंडिया को बॉम्बे उच्च न्यायालय के 22 मई के आदेश के अनुरूप बीच की सीटें खाली रखनी पड़ेगी।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने ईद-उल-फितर की छुट्टी के दिन अर्जेंट सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और एयर इंडिया की ओर से पेश हो रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि आपको जनता के स्वास्थ्य की चिंता नहीं है, आपको विमानन कंपनी के ‘सेहत’ की चिंता ज्यादा है।
मेहता को मुख्य न्यायाधीश की फटकार उस वक्त झेलनी पड़ी जब उन्होंने कहा कि बीच की सीटें खाली रखकर सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करने से बेहतर उपाय है यात्रियों की जांच करना एवं क्वारंटाइन में रखना। इस पर न्यायमूर्ति बोबडे ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आप कैसे कह सकते हैं कि बीच की सीटें भरी रहने से भी संक्रमण का कोई फर्क नहीं पड़ेगा? क्या (कोरोना) वायरस को पता है कि वह विमान में है, इसलिए उसे किसी को संक्रमित नहीं करना है? संक्रमण तो होगा, यदि एक-दूसरे के करीब बैठेंगे।
मेहता की टोकाटोकी के बीच न्यायालय ने अपना आदेश लिखवाया, जिसमें उसने स्पष्ट किया कि वह बॉम्बे उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश में हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं है, लेकिन सॉलिसिटर जनरल ने कुछ आपत्तियां दर्ज कराई हैं जिसे ध्यान में रखते हुए वह इन उड़ानों में 10 दिनों तक बीच की सीटों पर यात्रा की अनुमति दे रहा है, इसके बाद उस पर उच्च न्यायालय का 22 मई का आदेश लागू होगा।
मेहता ने सुनवाई के दौरान अंतरिम राहत की मांग करते हुए कहा था कि बीच की सीटों पर यात्रा की अनुमति नहीं देने से पहले से ही संकट में फंसे कई भारतीयों को आधे अधूरे परिवार के सदस्यों के साथ यात्रा करनी होगी। जिन यात्रियों को बीच की सीटें आवंटित की गई होगी उन्हें विमान से उतार दिया जाएगा और वे परिवार के साथ यात्रा नहीं कर पाएंगे। इससे परेशानी और बढ़ेगी।
शीर्ष अदालत ने इस बीच बॉम्बे उच्च न्यायालय से आग्रह किया कि वह इस मामले का त्वरित निपटारा करे। इस दौरान नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को मामला लंबित रहने के दौरान किसी भी मानकों में बदलाव पर विचार की पूरी अनुमति रहेगी।
गौरतलब है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कोरोना महामारी से बचाव को ध्यान में रखते हुए विदेश से आने वाली उड़ान में एयर इंडिया को बीच की सीट ख़ाली रखने का आदेश दिया है, जिसे केंद्र और एयर इंडिया ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी है।
एयर इंडिया के पायलट देवेन कनानी ने विमानों में बीच की सीट खाली ना रखे जाने को लेकर बॉम्बे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार के वंदे भारत मिशन के तहत विदेशों से भारतीयों को स्वदेश वापस लाने में अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में बीच की सीटें खाली नहीं रखी जा रही है, जो गत 23 मार्च के गृह मंत्रालय के सोशल डिस्टेंसिंग के आदेश का उल्लंघन है। इसके बाद उच्च न्यायालय ने बीच की सीटें खाली रखने का एयर इंडिया को निर्देश दिया था, जिसके खिलाफ केंद्र और एयर इंडिया शीर्ष अदालत पहुंचे हैं।