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क्रांतिकारी व समाज सुधारक स्वातंत्र्यवीर सावरकर को कोटिशः नमन - Sabguru News
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क्रांतिकारी व समाज सुधारक स्वातंत्र्यवीर सावरकर को कोटिशः नमन

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क्रांतिकारी व समाज सुधारक स्वातंत्र्यवीर सावरकर को कोटिशः नमन

हे मातृभूमि तेरे लिए मरना ही जीना है,
और तुझे छोड़कर जीना ही मरना है
यह अभिव्यक्ति सुदूर अंडमान की सेल्यूलर जेल (काला पानी) की कोठरी नंबर 52 में दो आजन्म कारावास की सजा प्राप्त क्रांतिकारी वीर सावरकर के जीवन की संपूर्णता को प्रकट करती है। वे यहां 7 अप्रेल 1911 को आए व 10 वर्ष 9 माह रहे। कोठरी के सामने नीचे फांसी घर में आए दिन लगने वाली फांसी को देखकर मानो सावरकर मृत्यु से रोज साक्षात्कार करते हों।

भारत माता का यह महान सपूत जिसकी वाणी, उपस्थिति, नीति, विद्वता से अंग्रेज सरकार कांपती थी। सावरकर क्रांतिकारी के साथ-साथ लेखक, वक्ता, कवि भी थे। उन्होंने 1857 का स्वातंत्र्य संग्राम पुस्तक लिखी जो सामने आने से पूर्व प्रतिबंधित हो गई।

सावरकर का जहाज से समुद्र में कूदकर बचने का प्रयास व अंडमान की जेल में यातनाएं, क्रूरता के बीच कोठरी में दीवारों पर कंकर से 6000 पंक्तियां लिखकर कंठस्थ कर जेल से बाहर आकर उनको प्रकाशित करवाना इनके ह्रदय में देशभक्ति की धधकती आग का परिचायक है।

सावरकर ने भारतीय इतिहास के छह स्वर्णिम पृष्ठ, हिंदुत्व आदि पुस्तकें लिखकर इतिहास को व हिंदू को अलग नजरिए से प्रस्तुत किया व हिंदू की परिभाषा में उन्होंने कहा कि

आसिन्धु सिंधु पर्यंता यस्य भारत भूमिका
पितृभू पुण्यभुश्चेव स व हिन्दू रीति स्मृतः
(यानी देश को पितृभमि व पुण्य भूमि मानने वाला ही हिंदू है)

सावरकर ने जहां क्रांतिकारी युवकों को तैयार किया वहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आजाद हिंद फौज बनाकर संघर्ष करने का रास्ता बताया। वे स्वदेशी के घोर समर्थक थे।

सावरकर की क्रांति का अर्थ

सावरकर केवल सशस्त्र क्रांति के समर्थक ही नहीं थे बल्कि वह मानते थे की समाज की कुरीतियों व कमजोरियों को दूर कर सबल समाज खड़ा होना ताकतवर राष्ट्र के लिए जरूरी है। सावरकर के मन में जहां क्रांति की ज्वाला थी वहीं समाज के निर्धन व उपेक्षित वर्ग के प्रति संवेदना थी, वे महिलाओं को सबल बनाने के पक्षधर थे। अंडमान की जेल से रिहा होने के बाद 1924 से 1937 तक रत्नागिरी जिले में स्थानाबद्ध थे तब उनके द्वारा सामाजिक कार्य किए गए।

सावरकर के द्वारा समाज सुधार

मंदिर प्रवेश (1925) : हिंदू समाज में व्याप्त अस्पृश्यता को दूर करने के लिए रत्नागिरी के विट्ठल भगवान मंदिर में अस्पृश्यों का प्रवेश कराने हेतु वहां के ब्राह्मणों से वार्तालाप किया। मंदिर प्रवेश का विरोध कर रहे लोगों को सावरकर ने कहा की सभी काल में एक जैसी व्यवस्थाएं नहीं रहती वह बदलती रहनी चाहिए, विट्ठल भगवान के चरणों में जाने का सबको अधिकार है यह भी तो विट्ठल के भक्त हैं इनमें भी आप भक्तों जैसा खून है तो इनको मंदिर प्रवेश का अधिकार क्यों नहीं? सब सहमत हुए फिर सभी अस्पृश्य अभंग गाते हुए मंदिर गए। सावरकर मानते थे की जाति जाति के बीच व भक्त और भगवान के बीच दीवार नहीं रहनी चाहिए।

पतित पावन मंदिर (1931): दान में प्राप्त भूमि पर पतित पावन मंदिर बनाया जिसका भूमि पूजन पूज्य शंकराचार्य कुर्तकोटी महाराज द्वारा किया धार्मिक आयोजन के अंत में भोजन हुआ जिसमें अस्पृश्य शामिल थे। मंदिर में मुख्य पुजारी हरिजन को बनाया।

शिक्षा :- उन दिनों स्कूलों में अस्पृश्य छात्रों को कक्षा से बाहर रखा जाता था, सावरकर ने गांव-गांव जाकर वार्तालाप किया व उसके परिणाम स्वरूप कक्षा में सभी छात्र एक साथ बैठने लगे। वह मानते थे कि ऐसा करने से बचपन से ही उच्च और निम्न की भावना खत्म हो जाएगी। इस प्रयास से जिला शिक्षा बोर्ड ने प्रस्ताव पास कर यह नियम बनाया की आगे से सभी छात्र एक साथ बैठे।

उपनयन संस्कार :- अस्पृश्यों को उपनयन संस्कार से वंचित कर रखा था। सावरकर ने सामूहिक रूप से उपनयन संस्कार समारोह आयोजित किए उन्होंने कहा की शास्त्रों में ऐसा व्यवहार नहीं लिखा है।

सहभोज :- सावरकर मानते थे की समाज के सभी वर्ग के लोग एक साथ बैठकर सहभोज करें तो आपसी प्रेम बनेगा। उन्होंने स्थान स्थान पर बड़ी संख्या में सहभोज आयोजित किए।

थिएटर :- उन दिनों सिनेमा में अस्पृश्य को बैठने की अलग व्यवस्था होती थी। सावरकर ने टिकट व पास लेकर ऐसे लोगों को आगे बैठने की व्यवस्था की।

गणेश उत्सव:- सावरकर ने अनेक जिलों में गणेश उत्सव आयोजित किए जिसमें बड़ी संख्या में अस्पृश्य शामिल हुए इस आयोजन में सवर्ण भी थे।

सावरकर के प्रयास से इन कार्यक्रमों में समाज के गणमान्य लोग भी शामिल रहते थे इसका अच्छा प्रभाव पड़ता था। डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने 1936 में सावरकर को पत्र लिखकर उनके द्वारा किए कार्यों की प्रशंसा की। लेकिन भारत में केवल राजनीतिक हितों को ही महत्व देने वाले और सेकुलरिज्म की गलत धारणाओं से ग्रसित लोग व संस्थाएं सावरकर की महानता को समझना ही नहीं चाहती। भारत के महान क्रांतिकारी व समाज सुधारक स्वतंत्रवीर सावरकर को उनके जन्मदिन पर कोटिशः नमन।

सौजन्य : तुलसी नारायण