नई दिल्ली। काशी-मथुरा जैसे मंदिर विवादों पर एक हिन्दू पुजारी संगठन द्वारा उच्चतम न्यायालय में संबंधित कानून को चुनौती दिए जाने के बाद एक मुस्लिम संगठन ने भी इसमें हस्तक्षेप याचिका दायर की है।
जमीयत उलेमा ए हिंद ने वकील एजाज मकबूल के माध्यम से अर्जी दायर करके हिंदू पुजारियों की याचिका का विरोध किया है। जमीयत की वादकालीन याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत हिन्दू पुजारियों के संगठन विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की याचिका पर नोटिस जारी न करें।
जमीयत का मानना है कि हिन्दू पुजारी संगठन की याचिका पर नोटिस जारी करने से गलत संदेश जाएगा। खासतौर से अयोध्या विवाद के बाद अब मुस्लिम समुदाय के लोगों के मन में अपने पूजा स्थलों के संबंध में भय पैदा होगा, जिससे देश का धर्मनिरपेक्ष ताना बाना नष्ट होगा। जमीयत ने न्यायालय से अनुरोध किया है कि उसे संबंधित मामले में पक्षकार बनाया जाए।
गौरतलब है कि विश्वभद्र पुजारी पुरोहित महासंघ ने पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को उच्चतम न्यायालय में गत शुक्रवार को चुनौती दी। यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। यह कानून कहता है कि 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के समय धार्मिक स्थलों का जो स्वरूप था, उसे बदला नहीं जा सकता हालांकि, अयोध्या विवाद को इससे बाहर रखा गया था, क्योंकि उस पर कानूनी विवाद पहले से चल रहा था।
याचिकाकर्ता ने काशी विश्वनाथ एवं मथुरा मंदिर विवाद को लेकर कानूनी प्रक्रिया फिर से शुरू करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि इस अधिनियम को कभी चुनौती नहीं दी गई और न ही किसी अदालत ने न्यायिक तरीके से इस पर विचार किया। अयोध्या विवाद पर फैसले में भी उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने इस पर सिर्फ टिप्पणी की थी।