नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने लॉकडाउन के कारण मासिक किस्त पर रोक की अवधि के चक्रवृद्धि ब्याज लेने के मुद्दे पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से एक बार फिर विचार करने को बुधवार को कहा।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमआर शाह की खंडपीठ ने मामले में अगली सुनवाई के लिए अगस्त के पहले सप्ताह की तारीख मुकर्रर करते हुए इंडियन बैंक एसोसिएशन से पूछा कि क्या किस्त पर रोक की अवधि के मुद्दे पर नए दिशानिर्देश लाए जा सकते हैं?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि बैंकों से लिया गया ऋण छोटी-मोटी राशि नहीं हैं और न ही छोटी अवधि के ऋण हैं। ये 500 करोड़ से 2000 करोड़ रुपए तक की राशि के हैं, इस पर खंडपीठ के सदस्य न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि यह जानकारी यहां उपयुक्त नहीं है।
सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि बैंकों को भी अपने ग्राहकों को भी चक्रवृद्धि ब्याज देने के लिए बाध्य होना पड़ता है। इस पर न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि क्या आप कर्जदारों की किस्त पर रोक लगाकर उन पर अहसान कर रहे हैं? देश की यह विडंबना है कि हजारों करोड़ रुपए गैर-निष्पादित खातों में चले जातें हैं, लेकिन आप उससे ब्याज जरूर लेंगे जो समय पर किस्त भरते हैं।
उन्होंने कहा कि यदि ब्याज नहीं लिया जाता है तो उसके परिणामों के बारे में भी उन्हें पता है, परंतु यह महामारी का समय है, न कि कोई सामान्य स्थिति। मेहता ने कहा कि यह मामला बैंकों और ग्राहकों के बीच का मामला है, इस पर न्यायमूर्ति भूषण ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार इस मामले में पीछे नहीं हट सकती।
केंद्र यह कहकर नहीं बच सकता कि यह बैंकों और ग्राहकों के बीच का मसला है। अगर केंद्र ने यह घोषणा की है, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ग्राहकों को उद्देश्यपूर्ण तरीके से लाभ दिया जाए।