सबगुरु न्यूज। पुरानी कहावत है हर बार इंसान की इच्छाएं पूरी नहीं होती है। ऐसा ही देश की राजनीति में होता आया है कब किस नेता का कद बढ़ जाए और किसका घट जाए, कोई नहीं जानता है। इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान साथ भी देखा जा रहा है। आज हम आपसे बात करेंगे मध्य प्रदेश की राजनीति और सत्ता की। इसी वर्ष मार्च महीने में भाजपा आलाकमान ने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरा कर शिवराज सिंह चौहान को राज्य की कमान तो दे दी लेकिन सत्ता की असली चाबी अपने पास रख ली। शिवराज सिंह को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने ‘100 दिन’ पूरे हो गए हैं लेकिन अभी तक वह अपने मंत्रिमंडल और सत्ता में पकड़ नहीं बना पा रहे हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की परफॉर्मेंस जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी थी। तभी भाजपा से राज्य में लगातार 15 वर्षों का भाजपा का शासन भी उखड़ गया था। आखिरकार भाजपा के दांव-पेच से कांग्रेस की सरकार गिर गई। उसके बाद राज्य में मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हो गए थे। जिनमें ब्राह्मण लॉबी से नरोत्तम मिश्रा और शिवराज सिंह चौहान के बीच सीएम पद को लेकर टकराव भी बढ़ गया था।
आखिरकार शिवराज सिंह चौहान के अनुभवों को देखते हुए आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी। बाद में नरोत्तम मिश्रा को राज्य का ग्रहमंत्री बनाया गया लेकिन दोनों के बीच मतभेद अभी भी खत्म नहीं हुए हैं। पिछले कई दिनों से शिवराज सिंह चौहान अपना मंत्रिमंडल विस्तार करना चाहते थे इसी को लेकर पिछले 3 दिनों से दिल्ली में डेरा जमाए हुए थे। इस बीच नरोत्तम मिश्रा को भी राजधानी बुलाया गया। शिवराज सिंह चौहान का 30 जून यानी आज मंत्रिमंडल विस्तार होना था लेकिन एक सहमति न बन पाने के कारण एक बार फिर से टाल दिया गया और आखिरकार शिवराज सिंह मायूस होकर आज सुबह भोपाल लौट आए हैं।
भाजपा संगठन शिवराज सिंह चौहान के प्रस्तावित मंत्रिमंडल को लेकर सहमत नहीं है
तीन दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर दिल्ली बुलाया गया था। लेकिन राज्य कैबिनेट में शामिल होने वाले नामों पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। चौहान लगातार दिल्ली में केंद्रीय नेताओं के साथ माथापच्ची करते रहे। कैबिनेट विस्तार को लेकर शिवराज सिंह ने गृह मंत्री अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की।
केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन वाले विधायकों को भी मंत्रिमंडल में अच्छी खासी हिस्सेदारी हो। इसी बात पर शिवराज सिंह ने असहमति भी व्यक्त की है। भाजपा आलाकमान राज्य में पुराने लोगों को कम तरजीह देना भी चाहता है। इसी को लेकर अभी तक पेच उलझा हुआ है। केंद्रीय नेतृत्व कोई रास्ता निकालने में जुटा हुआ है लेकिन हाल फिलहाल मंत्रिमंडल के विस्तार पर मुहर नहीं लग सकती है। 30 जून को प्रस्तावित मंत्रिमंडल का गठन एक फिर टाल दिया गया है।
सिंधिया और नरोत्तम मिश्रा का बढ़ता कद शिवराज सिंह के लिए बना सिरदर्द
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने 3 महीने से अधिक हो गए हैं लेकिन अभी तक वह राज्य में कई स्वतंत्र फैसले नहीं ले पाए हैं । इससे पहले अपने तीन बार के मुख्यमंत्री काल में शिवराज सिंह चौहान का एकछत्र राज हुआ करता था। शिवराज सिंह चौहान आम और खास जनता के बीच ‘मामा’ नाम से प्रसिद्ध हुए थे। लेकिन इस बार मध्य प्रदेश के मामा का ज्योतिराज सिंधिया और राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सिर में दर्द कर रखा है।
इन दोनों से शिवराज सिंह चौहान तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। सिंधिया और नरोत्तम मिश्रा के बढ़ते कद की वजह से ही शिवराज सिंह की प्रस्तावित मंत्रिमंडल की सूची को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने रिजेक्ट कर दिया है। इसके साथ नए नामों को लेकर कवायद तेज हो गई है। यह भी संभव है कि राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के विधायकों को मंत्रिमंडल में अच्छी खासी जगह दी जा सकती है।
इस बार मध्य प्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं शिवराज सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान इस बार राज्य के चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं। उमा भारती के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद। शिवराज सिंह पहली बार 29 नवंबर 2005 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद चौहान 12 दिसंबर 2008 में दूसरी बार सीएम बने। 8 दिसंबर 2013 को शिवराज ने तीसरी बार सीएम पद की शपथ ली थी। एक समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कद इतना बड़ा हो गया था कि कई लोग उन्हें वह वर्ष 2013 के आखिरी में प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी बताने लगे थे।
लेकिन मध्यप्रदेश में हुए व्यापम घोटाला उनकी गले में फांस बनता चला गया। इस घोटाले में राज्य भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की देशभर में छवि धूमिल हुई थी। इसी के बाद शिवराज सिंह का पार्टी संगठन में रुतबा घटता चला गया। दूसरी ओर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य में भाजपा की सरकार न बन पाना भी मध्यप्रदेश में चौहान के विकास कार्यों पर सवाल खड़े किए गए थे। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान की केंद्रीय नेतृत्व में धीरे-धीरे पकड़ कम होती चली गई।
शंभू नाथ गौतम, वरिष्ठ पत्रकार